छोटे चम्बल के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश की मानिकपुर विधानसभा में एक समय में हर चुनाव में जीत-हार डकैत ही तय करते थे. यहीं के डकैत ददुआ के बेटे वीर सिंह इस बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. डकैतों का आतंक हालांकि बीहड़ो में चम्बल और बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा माना जाता था. एक समय था कि जब ये डकैत ही तय करते थे कि आखिर किसको जिताना और किसको हराना है. डकैतों की तरफ से फरमान जारी हुआ तो उसके बाद उस प्रतियाशी की जीत लगभग तय मानी जाती थी.
'बुंदेलखंड के वीरप्पन' थे ददुआ
'बुंदेलखंड के वीरप्पन' के नाम से मशहूर डैकत ददुआ के एक इशारे में ये तय हो जाता कि वोट किसको जाना है. एक समय में ददुआ ही चित्रकूट ,बांदा, हमीरपुर समेत 11 जिलों में राजनीति की दिशा तय करता था. तब मानिकपुर विधानसभा ददुआ का गढ़ माना जाता था.
'अब लोकतंत्र में जनता फैसला करती है'
यहां के पाठा के जगलों में रहकर के अपना साम्राज्य चलाने वाले ददुआ के बेटे वीर सिंह इस बार मानिकपुर सीट से समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं. 2005 में वीर सिंह को जिला चेयरमैन का पद निर्विरोध मिला था लेकिन तब ददुआ जिंदा था. वीर सिंह कहते हैं कि पहले और अब में बहुत अंतर है. अब चुनाव किसी के कहने पर तय नहीं होते बल्कि जनता खुद तय करती है. ददुआ के बेटे कहते हैं अब पहले की तरह हालात नहीं हैं, लोकतंत्र में जनता ही फैसला करती है. पहले क्या होता था वो बात पुरानी है.
'मोहर लगेगी इस प्रत्याशी पर वरना गोली पड़ेगी छाती पर'
एक समय में यहां डकैतों का स्लोगन था- चुनाव से ठीक पहले मोहर लगेगी इस प्रत्याशी पर वरना गोली पड़ेगी छाती पर और लाश मिलेगी घाटी पर. चुनाव से पहले पार्टी का नाम या प्रत्याशी का नाम जोड़ कर पर्चे बांटे जाते थे. ददुआ के गुरू डैकत जनार्धन बताते हैं कि ददुआ और हम ही तय करते थे कि किसको जिताना और किसको हराना है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ बिहार में भी कुछ इलाकों में ददुआ ही ये सब तय करता था.अब चुनाव में प्रत्याशी केवल जनता के भरोसे हैं. ददुआ के जाने के बाद यहां चुनाव जनता के हाथ में है और प्रत्याशी जनता दरबार में.