उत्तर प्रदेश की सियासत में 2017 के बाद 2022 के चुनावी रण में एक बार फिर 'यूपी के लड़कों' का सियासी जलवा देखने को मिल सकता है...पिछले चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी से मुकाबला करने के लिए सपा-कांग्रेस साथ आई थी तो अखिलेश यादव-राहुल गांधी की जोड़ी को 'यूपी के लड़के' का नाम दिया गया था, दोनों ने सूबे की सड़कों पर जमकर प्रचार किया था. इसके बावजूद अखिलेश-राहुल की जोड़ी सफल नहीं रही.
वहीं, पांच साल के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश के चुनावी संग्राम में यूपी के लड़के उतर रहे हैं, लेकिन किरदार और जोड़ी थोड़ी अलग है. इस बार सपा-कांग्रेस नहीं बल्कि सपा-आरएलडी गठबंधन कर चुनाव में उतर रहे हैं तो अखिलेश-जयंत की जोड़ी को यूपी के लड़के पार्ट-2 की तरह देखा जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि जयंत-अखिलेश की जोड़ी क्या बीजेपी को चुनावी मात दे सकेगी.
पश्चिमी यूपी में सपा गठबंधन
2022 के चुनाव के लिए सपा बड़े दलों के बजाय छोटे दलों से गठबंधन करने में लगी है. पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से हाथ मिलाने के बाद अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में अपने समीकरण को दुरुस्त करने के लिए जयंत चौधरी की आरएलडी से गठबंधन फाइनल कर लिया है. अखिलेश-जयंत के बीच मंगलवार की मुलाकात के बाद सपा-आरएलडी ने गठबंधन की पुष्टि कर दी.
बढ़ते कदम, बदलाव की ओर...
अखिलेश से मुलाकात के बाद आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने 'बढ़ते कदम' कैप्शन के साथ अपनी और अखिलेश की तस्वीर ट्वीट की, जिसमें वो एक दूसरे का हाथ पकड़े खड़े दिख रहे है. वहीं, अखिलेश यादव ने भी जयंत चौधरी के साथ एक तस्वीर साझा की और कैप्शन लगाया, 'जयंत चौधरी के साथ बदलाव की ओर.' सपा अध्यक्ष से मिलने के बाद जयंत ने कहा कि दोनों दलों के बीच चुनाव लड़ने पर सहमति बन गई है. हालांकि, दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला सामने नहीं आया, लेकिन आरएलडी के 36 सीटें मिलना तय है.
अखिलेश-जयंत चौधरी के मिलकर चुनावी मैदान में उतरने से पश्चिम यूपी के सियासी समीकरण बदल सकते हैं. पश्चिम यूपी की सियासत में जाट और मुस्लिम काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम. ऐसे में अखिलेश ने अपने साथ जयंत को जोड़कर मुस्लिम-जाट वोटों का मजबूत कॉम्बिनेशन बनाने की कवायद की है.
बीजेपी के लिए होगी कड़ी चुनौती
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि 2013 से पहले पश्चिम यूपी में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं रहा था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय को जोड़कर उसने अपनी सियासी जमीन मजबूत कर ली. वहीं, किसान आंदोलन से आरएलडी को सियासी संजीवनी मिली. किसान आंदोलन से एक बार फिर जाट-मुस्लिम सहित किसान जातियां साथ आई हैं, जो बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है.
वह कहते हैं कि किसानों की नाराजगी और पश्चिम यूपी के समीकरण को देखते पीएम मोदी को कृषि कानूनों रद्द करने के लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन यूपी के किसान सिर्फ तीन कृषि कानूनों में सिमटे नहीं हैं, बल्कि गन्ना के भुगतान व मूल्य बढ़ोत्तरी, खाद की किल्लत और बिजली महंगी जैसी समस्याएं भी उन्हें परेशान कर रही हैं. जयंत चौधरी इन्हीं सारे मुद्दों को लेकर पश्चिम यूपी में सक्रिय हैं और अब अखिलेश के साथ गठबंधन कर और मजबूत हो गए हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी में बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है.
पश्चिमी यूपी की सीटों का समीकरण
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की कुल 136 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी ने जीती थीं जबकि 20 सीटें सपा के खाते में आई थीं. कांग्रेस 2 सीटें और बसपा 3 सीटें जीती थीं. वहीं, एक सीट आरएलडी ने जीती थी, जिसने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया. यह सिलसिला 2019 लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा, लेकिन 2014 के मुकाबले सपा और बसपा ने मुस्लिम बहुल सीटों पर जरूर जीत दर्ज करने में सफल रही थी.
सपा-आरएलडी में वोट ट्रांसफर चुनौती
वरिष्ठ पत्रकार अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव, मायावती और चौधरी अजित सिंह के साथ ऐसा ही समीकरण बनाकर उतरे थे, पर सपा और आरएलडी से ज्यादा बसपा को फायदा मिला था. हालांकि, किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में माहौल बीजेपी के खिलाफ बन रहा है और जयंत चौधरी का ग्राफ भी बढ़ता दिख रहा है.
वह कहते हैं कि सपा-आरएलडी के गठबंधन भले ही कर लिया है, लेकिन वोट ट्रांसफर कराना आसान नहीं होगा. पश्चिमी यूपी में सपा का कोर वोटबैंक यादव नहीं है, लेकिन मुस्लिम बड़ी संख्या में है. ऐसे में मुस्लिम वोटर आरएलडी के साथ जा सकते हैं, पर जाट वोटर सपा के साथ जाएगा यह कहना मुश्किल है.
पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण
पश्चिमी यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं. एक दौर ऐसा था जब जाट और मुस्लिम समुदाय करीब थे, लेकिन मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के बाद दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट आ गई. जाट और मुस्लिम बिखर गए, जिसका बीजेपी को सीधा फायदा मिला. हालांकि, किसान आंदोलन के चलते जाट-मुस्लिम पास आए हैं. इसीलिए अखिलेश सत्ता में वापसी के लिए जयंत के सहारे पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं.
136 सीटों पर जाट-मुस्लिम का प्रभाव
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी है जबकि पश्चिम यूपी में यह 20 फीसदी के आसपास है. वहीं, मुस्लिम आबादी यूपी में भले ही 20 फीसदी है, लेकिन पश्चिमी यूपी में 35 से 50 फीसदी तक है.
जाट और मुस्लिम समुदाय सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, बागपत और अलीगढ़-मुरादाबाद मंडल सहित पश्चिमी यूपी की 136 विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं. सूबे की 136 विधानसभा सीटों में 55 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट-मुस्लिम मिलकर 40 फीसदी से अधिक हो जाते हैं.
चौधरी चरण सिंह के फॉर्मूले पर जयंत
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह देश में जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे. उन्होंने प्रदेश और देश की सियासत में अपनी जगह बनाने और राज करने के लिए 'अजगर' (अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) और 'मजगर' (मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत) फॉर्मूला बनाया था.
चौधरी चरण सिंह जाट और मुस्लिम समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करते रहे. पश्चिम यूपी में इसी समीकरण के सहारे आरएलडी किंगमेकर बनती रही है और अब एक बार फिर से उसेे अमलीजामा पहनाने के लिए जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाया है, जो बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी में बड़ी चुनौती बन सकती है.