उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे बसपा को एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं. छह महीने पहले बसपा प्रमुख मायावती ने जिस शाह आलम (गुड्डू जमाली) को लालजी वर्मा की जगह विधानमंडल दल का नेता बनाया था, उन्होंने भी गुरुवार को बसपा का साथ छोड़ दिया. 2022 चुनाव से ठीक पहले गुड्डू जमाली का बसपा छोड़ना मायावती के लिए क्यों झटका माना जा रहा है?
जमाली ने बसपा को अलविदा कहा
मायावती को पत्र लिखकर गुड्डू जमाली ने विधानमंडल दल के नेता और विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. गुड्डू जमाली 2012 व 2017 विधानसभा और 2014 लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए मायावती का अहसान जताते हुए कहा कि दोनों विधानसभा चुनाव जीता और एक हारा. मायावती के साथ 21 नवंबर को हुई बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि मीटिंग में मैंने महसूस किया है कि आप मेरी पार्टी के प्रति पूरी निष्ठा और ईमानदारी के बावजूद संतुष्ट नहीं हैं. अब मैं आप या पार्टी पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहता.
मायावती ने भी पत्र जारी कर बताया गया कि गुड्डू जमाली ने पार्टी इसलिए छोड़ी है, क्योंकि उनकी कंपनी में काम करने वाली एक युवती ने उनके चरित्र पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया है. मामले में विवेचना चल रही है और गुड्डू दबाव बना रहे थे कि मुख्यमंत्री से कहकर मामला रफादफा करा दिया जाए. वहीं, जमाली ने कहा कि मुझे कोर्ट पर भरोसा है और मेरे खिलाफ दर्ज मुकदमा बेबुनियाद है. रहा सवाल मुकदमा खत्म कराने की बात का, क्या मायावती मुख्यमंत्री हैं, जो मैं उनसे मदद की गुहार लगाऊंगा.
बता दें कि बसपा प्रमुख ने बीती जून में ही लालजी वर्मा को पार्टी से बाहर करने के बाद आजमगढ़ जिले की मुबारकपुर सीट से दो बार के विधायक गुड्डू जमाली का विधानमंडल दल का नेता बनाया था. मायावती ने मुस्लिम वोटों को जोड़ने के लिए जमाली पर दांव लगाया था. छह महीने भी नहीं गुजरे कि उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया है. गुड्डू जमाली ने बसपा का साथ ऐसे समय छोड़ा है, जब चुनाव सिर पर है और मायावती को उनकी सख्त जरूरत थी.
जमाली का सियासी कद
गुड्डू जमाली पूर्वांचल के आजमगढ़ जिले से आते हैं, जो सपा का गढ़ माना जाता है. मुबारकपुर सीट से 2012 में पहली बार वो विधायक बने और 2017 में दूसरी बार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं. यह दोनों ही चुनाव बसपा के लिए काफी चुनातीपूर्ण रहे, लेकिन मुबारकपुर सीट पर जमाली के विजयरथ को न तो सपा की लहर रोक सकी और न ही मोदी का जादू. जमाली ने मुबारकपुर ही नहीं बल्कि आजमगढ़ इलाके में अपनी सियासी पकड़ को मजबूत बनाया है.
2014 लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी के तौर पर गुड्डू जमाली ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को कड़ी टक्कर दी थी. सीएम रहते हुए अखिलेश यादव सहित सपा के तमाम दिग्गज नेता और मंत्रियों को आजमगढ़ में डेरा जमाए रखने के लिए जमाली ने मजबूर कर दिया था. आखिरी टाइम में मुस्लिम वोट अगर सपा के साथ नहीं गया होता तो मुलायम की हार और जमाली की जीत तय थी.
देश के बड़े कारोबारी हैं जमाली
गुड्डू जमाली बसपा नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के अमीर विधायकों में से एक हैं. वो पूर्वांचल प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के सीएमडी हैं. एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक जमाली के पास 118 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है. इसमें 1.11 अरब की चल व 6.92 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति है. गुड्डू जमाली चुनाव में बसपा के लिए आर्थिक मदद करने वाले नेताओं में गिने जाते थे. ऐसे में जमाली का बसपा से अलविदा कहना मायावती के लिए 2022 के चुनाव में बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि इस बार के चुनाव में बसपा नेता आर्थिक चंदा बहुत नहीं आ पा रहा है.
मायावती से मुस्लिमों का मोहभंग
यूपी चुनाव से पहले एक के एक कर तमाम मुस्लिम नेता बसपा का साथ छोड़कर सपा का दामन थाम रहे हैं. पश्चिम यूपी से लेकर पूर्वांचल तक मुस्लिम नेता मायावती के साथ नहीं खड़े दिख रहे हैं. बसपा में एक समय मुस्लिम चेहरा रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं तो पिछले दिनों पूर्वांचल के अंसारी बंधु भी सपा में शामिल हो गए हैं. ऐसे में पूर्वांचल के कद्दावर नेता माने जाने वाले गुड्डू जमाली भी अब मायावती का साथ छोड़ दिया है और माना जा रहा है कि सपा में एंट्री कर सकते हैं.
पूर्व सांसद कादिर राणा, शाहिद अखलाक से लेकर तमाम बसपा के मुस्लिम विधायक और नेता मायावती का साथ छोड़कर सपा के साथ खड़े दिख रहे हैं. ऐसे में अब बसपा में ऐसे कोई भी कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं बचा है जो 2022 के चुनाव में मुसलमानों को साध सके.
बीजेपी-सपा के बीच सिमटता चुनाव
विधानसभा चुनाव सपा और बीजेपी के बीच सिमटता जा रहा है. सपा इस कोशिश में काफी हद तक सफल दिख रही है कि बीजेपी से बसपा नहीं बल्कि सपा का मुकाबला है. बसपा को मुख्य लड़ाई से बाहर दिखाने के लिए पार्टी सुप्रीमो मायावती के बीजेपी के प्रति नरम रुख दिखाने वाले बयान अहम कारण बने हैं. इससे मुस्लिम समुदाय में दुविधा न होने पर वे एकजुट होकर सपा के साथ खड़ा दिख रहा है तो सत्ताधारी भाजपा से नाराज लोगों का रुझान भी सपा की ओर हो रहा है. जमाली का ऐसे में बसपा छोड़ना निश्चित रूप से मायावती के लिए सियासी चिंता खड़ी कर रही.
बसपा के अस्तित्व का चुनाव
बसपा का 2012 से लगातार सियासी ग्राफ डाउन हुआ है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी 19 सीटें जीती थी, लेकिन आज बसपा के पास महज 4 विधायक बचे हैं बाकी पार्टी छोड़कर सपा या बीजेपी में शामिल हो गए हैं. मायावती अपने मूल वोट बैंक को बचाने के साथ-साथ कुछ ब्राह्मण मतदाताओं पर काम कर रही हैं. एक बात बिल्कुल साफ है कि मायावती के लिए यह चुनाव अपनी पार्टी के भविष्य का भी चुनाव होगा.
मायावती के सामने इस बार चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं. इसीलिए मायावती लगातार चुनावी समीक्षा बैठक कर रही हैं, पत्रकारों से पहली बार बातचीत कर रही हैं और सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव हो चुकी हैं. साथ ही मायावती मीडिया पर लगा रही हैं कि बीएसपी को लड़ाई में कमजोर दिखाया जा रहा है. इन आरोपों के साथ मायावती ने बीएसपी का एक फोल्डर भी जारी किया है, जिसमें 2007-12 के दौरान उनकी सरकार के कामकाज की जानकारी है और अपने काडर तक इसे पहुंचाने के निर्देश दिए हैं.