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UP Election: बीजेपी के लिए कैसे सिरदर्द बना 'जाटलैंड', फिर काम आएगी शाह नीति?

यूपी चुनाव से पहले जाट बिरादरी को अपने पाले में करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ा दांव चल दिया है. उन्होंने खुद चुनावी मैदान में कूद 100 से ज्यादा जाट नेताओं संग बैठक की है. उनकी नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है.

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जाटों को लुभाने के लिए एक्शन मोड में अमित शाह ( पीटीआई)
जाटों को लुभाने के लिए एक्शन मोड में अमित शाह ( पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2019 में 91 फीसदी जाट वोट बीजेपी की झोली में गए
  • पश्चिमी यूपी में मुस्लिम और जाटों की 50 फीसदी हिस्सेदारी

जाट लैंड यानी पश्चिमी यूपी का वो इलाका जहां पिछले तीन चुनावों में बीजेपी ने जाटों के वोट से जीत का झंडा बुलंद किया है. क्या इस बार जाट नाराज़ हैं? बीजेपी की मानें तो ऐसा नहीं है. मगर बीजेपी सांसद परवेश वर्मा के घर गृह मंत्री अमित शाह सौ से अधिक जाट नेताओं से मिल रहे हैं. इसे नाराज जाटों को मनाने की मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है.

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नाराज क्यों चल रहे जाट?

यूपी में बीजेपी की जीत का रास्ता जाटलैंड से गुजरता है. ये बात 2014, 2017 और 2019 के चुनावी नतीजों से साबित हो चुकी है. इन चुनावों में जाटों ने बीजेपी के लिए लगभग एकतरफा वोटिंग की. मगर इस बार किसान आंदोलन के बाद से ही जाटों की नाराजगी बीजेपी से बढ़ गई है. लिहाजा गृह मंत्री अमित शाह ने इस बार फिर कमान खुद संभाली है.

दरअसल, अमित शाह के लिए ये कोई पहला मौका नहीं है. जब वो जाटों के साधने की मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं.हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले जाट आरक्षण का मुद्दा बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गया था. तब चुनावों से ठीक पहले अमित शाह ने केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के घर जाट नेताओं के साथ मैराथन बैठक की थी. अब यूपी चुनाव से पहले फिर से वैसी ही परिस्थितियां हैं. जिन्हें अमित शाह हर हाल में बीजेपी के पक्ष में करना चाहते हैं.

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पिछले चुनावों का ट्रेंड क्या है?

आंकड़े बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पश्चिमी यूपी की 29 सीटों में से बीजेपी ने जाट वोट के दम पर 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. 2019 में 29 में से 21 सीटों पर जीत मिली क्योंकि तब समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लोकनीति CSDS के मुताबिक 2014 में जहां 77 फीसदी जाटों ने बीजेपी को वोट दिया वहीं 2019 में 91 फीसदी जाट वोट बीजेपी की झोली में गए.

इस बार किसान आंदोलन, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमे, MSP पर कानून, गन्ना के दाम और सही समय पर भुगतान के साथ ही आवारा जानवरों की समस्या से जाट नाराज़ हैं. इसी नाराजगी को दूर करने का बीड़ा अमित शाह ने उठाया है. यूपी में चुनावों कमान संभालने के बाद अमित शाह ने जाटों को साधने का पुराना फॉर्मूला आजमाया. कैराना से चुनाव प्रचार की शुरुआत इसी रणनीति के तहत की गई थी. जहां उन्होंने पलायन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया.

शाह की रणनीति क्या है?

पश्चिमी यूपी में मुस्लिम और जाटों को मिला दें तो मतदाताओं में हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा हो जाती है. इस क्षेत्र के 17 फीसदी वोटर जाट हैं. इस क्षेत्र के 26 में से 18 जिलों में जाट बिरादरी बेहद प्रभावशाली है. 80 सीटों के नतीजों पर उनका वोट निर्णायक साबित होता है. कुछ केंद्रीय मंत्रियों के मुताबिक कृषि कानूनों की वापसी के बाद जाटों की नाराजगी कुछ कम हुई है लेकिन SP और RLD के गठबंधन से बीजेपी सतर्क है. वहीं जाट नेताओं से मुलाकात के अगले ही दिन अमित शाह पश्चिमी यूपी में फिर से मतदाताओं के बीच मौजूद रहेंगे.

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वैसे मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद जाटलैंड में जाटों और मुसलमानों के बीच दूरी बनी हुई थी. उस पर ध्रुवीकरण ने जाटों को बीजेपी के पक्ष में खड़ा कर रखा था. इस बार मामला एकतरफा नहीं है. वजह है आवारा पशुओं और गन्ना की कीमतों जैसे मुद्दे पर किसानों की नाराजगी जिससे संजीव बालियान भी इत्तेफाक रखते हैं. मगर कानून-व्यवस्था और गुंडागर्दी के मुद्दे उठाकर बीजेपी फिर से सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है.

सपा-आरएलडी की क्या चुनौती?

पश्चिमी यूपी में अखिलेश यादव जाटों और मुसलमानों के बीच संतुलन बनाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. इस बीच एक के बाद एक उनके उम्मीदवारों के वायरल वीडियो उनकी कोशिशों में पलीता लगाते दिख रहे हैं. कुछ प्रत्याशियों के ऐसे  भड़काऊ बयान सामने आ गए हैं जिस वजह से बीजेपी उन पर गुंडागर्दी फैलाने का आरोप लगा रही है और मौका मानकर चल रही है कि ये मुद्दा उठा जाटों को फिर पार्टी के पक्ष में किया जाएगा.

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