उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस लेकर बड़ा सियासी दांव चला है. किसान आंदोलन के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने वाली आरएलडी का सपा के साथ गठबंधन तय है, लेकिन सीट बंटवारे पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है. आरएलडी के प्रभाव वाले पश्चिम यूपी की कई सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों दलों के बीच बात फंसी हुई है. इसके चलते सपा-आरएलडी का गठबंधन का ऐलान उलझा हुआ है?
यूपी में आरएलडी की डिमांड
यूपी चुनाव में सपा और आरएलडी मिलकर लड़ने के लिए रजामंद हैं. आरएलडी ने शुरू में 65 से 70 सीटों की डिमांड रखी थी, लेकिन सपा दो दर्जन से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी. ऐसे में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने पिछले दिनों काफी देर तक फोन पर बात की और आखिर में 3 दर्जन सीटों पर समझौते का फॉर्मूला निकला, लेकिन करीब एक दर्जन करीब सीटों पर दोनों ही पार्टियों की दावेदारी से गठबंधन का गणित उलझा हुआ है.
यूपी की इन सीटों पर फंसा पेच
अमरोहा की नौगांवा, मेरठ की सिवालखास, बिजनौर की चांदपुर, सहारनपुर की गंगोह, बागपत की बड़ौत, मथुरा की मांट व छाता, शामली की थानाभवन, बुलंदशहर की शिकारपुर के अलावा मुजफ्फरनगर की चरथावल व मीरापुर सीट पर सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टियां दावेदारी कर रही हैं. पश्चिम यूपी की इन सीटों पर सपा-आरएलडी के बीच सहमति नहीं बन पा रही है, जिसके चलते गठबंधन का ऐलान नहीं हो पा रहा है.
सपा संरक्षक मुलायम सिंह के जन्मदिन पर सोमवार को सपा-आरएलडी के गठबंधन के आधिकारिक ऐलान की तारीख तय थी, लेकिन एक दर्जन सीटों पर रस्साकशी के चलते गठबंधन की घोषणा को टाल दिया गया. हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना के 'कश्यप सम्मेलन' में आरएलडी के साथ गठबंधन का संकेत दिया था. इसके बावजूद अभी तक गठबंधन का ऐलान नहीं हो सका है.
अखिलेश-जयंत के बीच बनेगी बात?
अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद सीटों की संख्या पर तकरीबन आपसी सहमति बन चुकी है. लेकिन करीब एक दर्जन सीटों पर जो पेच फंसा हुआ है, जिसके सुलझने के बाद गठबंधन की आधिकारिक घोषणा के पक्ष में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी हैं. वहीं, कृषि कानून वापसी के बाद सपा की शंका है कि आरएलडी कहीं अब बीजेपी के साथ न चली जाए, इसीलिए गठबंधन की जल्द से जल्द घोषणा की जाए.
सीटों के गणित में क्यों उलझा गठबंधन?
सूत्रों की मानें तो मुजफ्फरनगर की चरथावल और मीरापुर सीट शामिल है, जिस पर सपा दावेदारी कर रही है. मीरापुर सीट पर सपा पिछले चुनाव में बहुत मामूली वोट से हारी थी. ऐसे में सपा का तर्क है कि आरएलडी को उसके पसंद की बुढ़ाना दी जा रही है तो चरथावल और मीरापुर सीट उसे मिलनी चाहिए. ऐसे ही बागपत जिले की बड़ौत सीट पर सपा अपना दावा कर रही, लेकिन आरएलडी तैयार नहीं है. ऐसे में यहां पर सपा ने अपना प्रत्याशी आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ाने का फॉर्मूला दिया है.
मथुरा की मांट और बुलंदशहर की शिकारपुर सीट पर भी सपा-आरएलडी दोनों दलों के अपने-अपने दावे हैं. मांट सीट पर अखिलेश के करीबी संजय लाठर चुनाव लड़ने की तैयारी में है तो शिकारपुर सीट पर आरएलडी से गुड्डू पंडित दावेदारी कर रहे हैं.
गठबंधन के पेच सुलझाने की कवायद
आरएलडी पूर्वांचल और तराई बेल्ट की कई सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जहां किसान वोटर निर्णायक भूमिका में है. लखीमपुर खीरी की पलिया और बस्ती सदर सीट पर भी आरएलडी चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जिस पर सपा किसी भी तरह सहमत नहीं हो पा रही है.
ऐसे में सपा और आरएलडी एक दूसरे के प्रत्याशी को एक दूसरे के पार्टी से चुनाव लड़ाने की दिशा में सोच रही हैं. सपा-आरएलडी के बीच जिन सीटों पर सहमति नहीं बन पा रही है, उन सीटों पर इस फॉर्मूले के जरिए समंजस्य बनाने की कवायद चल रही है.