यूपी का चुनाव...एक्सप्रेस वे के उद्घाटन, महिलाओं के लिए अलग घोषणा पत्र, कई जगह खुलते मेडिकल कॉलेज. लगता है कि देश के सबसे बड़े राज्य की चुनावी फिजा बदली-बदली दिखाई पड़ रही है. सिर्फ विकास पर जोर है और इसी के नाम पर वोट पड़ने जा रहे हैं. लेकिन ये यूपी चुनाव की सिर्फ आधी तस्वीर है, पूरी पिक्चर तो जाति-धर्म के तड़के के बाद देखने को मिलेगी. इस ओर सभी पार्टियों ने काम करना शुरू भी कर दिया है. शुरू सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किया, इंटरवल तक पहुंचाने का काम कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की अयोध्या पर लिखी किताब ने किया और अब इस पिक्चर को क्लाइमेक्स पर ले जाने का काम कर रही है बीजेपी.
यूपी की चुनावी पिक्चर क्या कहती है?
चुनाव कहने को अभी कुछ महीने दूर हैं, लेकिन बीजेपी की सियासी पिच एकदम तैयार दिख रही है. हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का रास्ता पूरी तरह खुल चुका है. कुछ हद तक बीजेपी ने इस ओर कदम बढ़ाए थे, अब सपा और कांग्रेस ने भी इस काम को आसान कर दिया है. बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है- जिन्ना को मुस्लिम और पाकिस्तान प्रेम से जोड़ा जा रहा है, हिंदुत्व पर विवादित बयान को हिंदुओं के अपमान से. दोनों ही घटनाओं में एक धर्म को पूरी तरह अपने पक्ष में करने की जुगत है. ये बीजेपी का सबसे पुराना चुनावी फंडा है जिसके दम पर चुनाव जीते भी गए हैं और कई राज्यों तक पार्टी ने अपना विस्तार भी किया है. लेकिन 2022 के यूपी चुनाव में बीजेपी के लिए ये हिंदूवादी पिच कैसे तैयार हुई, इस पर नजर डालना जरूरी है. इस चुनावी फिल्म के कई ऐसे किरदार हैं जिन्होंने अनजाने में ही सही, बीजेपी को एक बड़ा मौका दे दिया है.
अखिलेश और जिन्ना वाला बयान, बीजोपी को कितना फायदा?
बात सबसे पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की होनी चाहिए जिन्होंने कहने को अपना प्राइम फोकस विकास पर रखा. पूरी कोशिश रही कि सिर्फ कानून व्यवस्था, बेरोजगारी और अपने पुराने काम के दम पर फिर सत्ता वापसी की जाएगी. लेकिन फिर सपा की राजनीति में मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री हो गई. इस एंट्री ने चुनावी मुद्दे बदले, समीकरण तोड़े और बीजेपी को निशाना साधने के लिए एक खुला मैदान दे दिया. तारीख थी 31 अक्टूबर, अखिलेश यादव हरदोई में रैली को संबोधित कर रहे थे. भीड़ अच्छी थी, ऐसे में उत्साह भी साफ देखने को मिला.
उस रैली में अखिलेश ने जमकर योगी सरकार पर निशाना साधा, कई मुद्दों पर घेरा लेकिन फिर एक विवादित बयान आया. बयान था जिन्ना को लेकर. कह गए कि उन्होंने आजादी दिलवाई थी, संघर्ष किया था. जिन्ना का नाम अखिलेश ने सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू जैसी शख्सियतों के साथ जोड़ दिया. वो बयान था- सरदार पटेल, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और जिन्ना एक ही जगह से पढ़कर आए थे. सभी बैरिस्टर भी बने. उन्होंने हमे आजादी दिलवाई थी. हमारे लिए संघर्ष किया था. अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लौहपुरुष सरदार पटेल और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ भारत में विभाजनकारी माने जाने वाले जिन्ना का नाम लिया गया. ये विवाद शायद ज्यादा बड़ा नहीं होता लेकिन सपा संग गठबंधन करने वाले ओमप्रकाश राजभर ने एक कदम आगे बढ़कर जिन्ना को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने वाली बात कह डाली.
राजभर ने कह दिया कि अगर जिन्ना देश के पहले प्रधानमंत्री बनते तो बंटवारा नहीं होता. अपनी बात को मजबूती देने के लिए उन्होंने अडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के बयानों का भी सहारा ले लिया. ऐसे में सपा और उसके सहयोगी साथियों ने स्पष्ट कर दिया कि वे पीछे नहीं हटने वाले हैं. अपने स्टैंड पर भी कायम हैं और इस बयान पर भी. ऐसे में बीजेपी ने इस गलती को खुले दिल से स्वीकार किया. शुरुआत बीजेपी नेताओं ने की लेकिन इस मुद्दे को अंजाम तक सीएम योगी पहुंचा गए.
सीएम योगी ने एक रैली में कहा कि एक पार्टी के नेता ने कुछ दिन पहले सरदार पटेल की तुलना जिन्ना से कर दी थी. सरदार पटेल जिन्होंने देश को जोड़ा था, उनकी तुलना देश को बांटने वाले से कर दी गई. जनता को ऐसे शर्मनाक बयानों को खारिज कर देना चाहिए. इन लोगों की मानसिकता समझिए, कैसे हैं ये लोग जो सरदार और जिन्ना को एक साथ जोड़ रहे हैं. सरदार हमारे राष्ट्रनायक हैं, जिन्ना ने तो भारत को तोड़ दिया था. शुरुआती शिक्षा सही नहीं होने से लोगों को नायक और देशद्रोही में फर्क नहीं पता चलता. ये भटकाव तभी शुरू होता है जब व्यक्ति एक ही तराजू में मित्र और शत्रु को तौलने लगते हैं. ये तालिबानी मानसिकता को दर्शाता है.
सोच-समझकर दिए जा रहे 'चुनावी बयान'
अब यहां पर ये जानना जरूरी हो जाता है कि सीएम योगी अपनी हर रैली में अखिलेश पर हमला करते हुए 'तालिबानी मानसिकता' और 'तुष्टीकरण' वाली राजनीति का जिक्र कर रहे हैं. दो कदम आगे बढ़कर वे इसी के साथ कब्रिस्तान और उसकी दीवारों पर खर्च होने वाले पैसों पर भी बात करते हैं. अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि बीजेपी सरकार अब कब्रिस्तान पर नहीं बल्कि मंदिरों के निर्माण और सौंदर्यीकरण पर पैसा खर्च करती है. बयान जरूर अयोध्या में दिया लेकिन संदेश पूरे यूपी के लिए था. ऐसे में मंदिर-कब्रिस्तान वाले बयानों ने बीजेपी की हिंदूवादी पिच पहले ही तैयार कर रखी है, उसमें जिन्ना वाला बयान सिर्फ मजबूती को और ज्यादा बढ़ाने का काम कर रहा है.
लेकिन सपा अकेले ये मजबूती नहीं दे रही है. उसको देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का भी पूरा साथ मिल गया है. कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने एक किताब लिखी है. नाम है- सनराइज ओवर अयोध्या. किताब अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर के ऊपर है. सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. कई बारिकियों को भी खूबसूरती से समझा दिया गया है. 421 पेज की किताब है, कई मुद्दों पर विस्तार से बात है लेकिन विवाद सिर्फ एक चैप्टर की एक लाइन पर है.
खुर्शीद का हिंदुत्व पर बयान, बीजेपी को तोहफा
चैप्टर नंबर छह- द सैफरन स्काई. इस चैप्टर में सलमान खुर्शीद ने बिना नाम लिए बीजेपी की राजनीति पर निशाना साधा. ऐसी बात लिख गए कि राजनीति में भूचाल आ गया और कांग्रेस को अपने ही नेता की बातों से खुद को दूर करना पड़ गया. खुर्शीद ने लिखा है कि हिंदुत्व साधु-सन्तों के सनातन और प्राचीन हिंदू धर्म को किनारे लगा रहा है, जो कि हर तरीके से ISIS और बोको हरम जैसे जिहादी इस्लामी संगठनों जैसा है. अब हिंदुत्व के साथ ISIS और बोको हरम को जोड़ना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सेल्फ गोल साबित हुआ है. चुनाव हिंदी हार्टलैंड में है, वहां पर बड़ी संख्या में हिंदू आबादी और उस बीच सलमान खुर्शीद की किताब में लिखा ये बयान.
राशिद अल्वी ने विवाद को कैसे बढ़ाया?
वैसे इस बयान को कांग्रेस किसी तरह डिफेंड कर भी लेती, लेकिन कांग्रेस के ही दूसरे नेता राशिद अल्वी के हिंदुत्व पर दिए एक और बयान ने विवाद को और ज्यादा बढ़ा दिया है. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में राशिद कहते दिख रहे हैं कि इन दिनों जय श्रीराम बोलने वाले कुछ लोग संत नहीं है, बल्कि राक्षस हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया कि जब संजीवनी बूटी लेने के लिए हनुमानजी हिमालय जा रहे थे और संत के वेष में एक राक्षस ने रचा था.
सलमान ख़ुर्शीद के बाद अब कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी जय श्री राम कहने वालों को निशाचर (राक्षस) बता रहे हैं।
— Amit Malviya (@amitmalviya) November 12, 2021
राम भक्तों के प्रति कांग्रेस के विचारों में कितना ज़हर घुला हुआ है। pic.twitter.com/kHG3vXSpDW
ऐसे में अब आगे की प्रिडिक्शन करना मुश्किल नहीं है. बीजेपी का हर नेता हर रैली में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाला है. टीवी डिबेट में प्रवक्ताओं ने माहौल बनाना शुरू कर दिया है, अब रैलियों में भी ये मुद्दा उठने जा रहा है. इस मुद्दे पर गेंद पूरी तरह बीजेपी के पाले में पड़ी है, हिंदुओं का ध्रुवीकरण करने का आसान तरीका मिल चुका है. इस सब के अलावा सीएम योगी अपनी रैलियों में अवैध बूचड़खाने, कैराना पलायन जैसे मुद्दो को भी लगातार हवा दे रहे हैं. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी खुलकर मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहते हैं. वे सिर्फ 20 प्रतिशत मुस्लिम मतों पर अपनी निगाहें लगाए बैठे हैं. मुस्लिमों को लेकर उनके इस आक्रमक तेवर ने भी बीजेपी को कुछ हद तक मदद दी है.
यूपी में बीजेपी का सियासी समीकरण क्या है?
बीजेपी पूरी तरह यूपी के सियासी समीकरण को समझती है. अगर सपा-बसपा-कांग्रेस और AIMIM जैसे दल मुस्लिम वोटबैंकप पर खासा जोर दे रहे हैं तो वहीं बीजेपी भी पचास प्रतिशत वाली लड़ाई खेल रही है. सीएसडीएस और राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक यूपी में अनुसूचित जाति 21.1% है, अनुसूचित जनजाति 0.1%, हिंदू ओबीसी 41.47%, हिंदू सामान्य वर्ग 18.92% है. ऐसे में ओबीसी मतों को अपने पक्ष में करना किसी भी पार्टी को सत्ता पर काबिज कर सकता है. 2017 में बीजेपी ने 47 प्रतिशत ओबीसी वोट हासिल किए थे. इस बार भी उस अजय फॉर्मूले को अमलीजामा पहनाने की तैयारी है. बस इस काम में बीजेपी को जिन्ना, तालिबान, बोको हराम जैसे बयानों से भी पूरी मदद हासिल हो रही है.