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गोरखपुर, अयोध्या या मथुरा... योगी आदित्यनाथ का कहां से लड़ना होगा बीजेपी के लिए फायदेमंद?

प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये कहकर सियासी हलचलें बढ़ा दी हैं कि पार्टी कहेगी तो वे भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं. योगी के इस संकेत के बाद ही सियासी पंडित उनकी भावी सीट को लेकर अनुमान लगाने में जुट गए हैं.

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सीएम योगी आदित्यनाथ ( पीटीआई)
सीएम योगी आदित्यनाथ ( पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सीएम योगी के लिए 'सुरक्षित' सीट तलाशने में जुटी बीजेपी
  • गोरखपुर, अयोध्या और मथुरा पर मंथन, फैसले पर सस्पेंस

उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव यानी समीकरण साधने की जुगत, सोशल इंजीनियरिंग पर जोर और जीतने योग्य प्रत्याशियों की तलाश. चुनौती बड़ी है लेकिन राजनीतिक पार्टियां एक्शन मोड में हैं. हर जिताऊ मुद्दे पर फोकस किया जा रहा है, समीकरण सुधारे जा रहे हैं और प्रत्याशियों की लिस्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है. प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये कहकर सियासी हलचलें बढ़ा दी हैं कि पार्टी कहेगी तो वे भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं.

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योगी के इस संकेत के बाद ही सियासी पंडित उनकी भावी सीट को लेकर अनुमान लगाने में जुट गए हैं. सवाल उठ रहे हैं कि वे अपने गृहक्षेत्र गोरखपुर से ही ताल ठोंकेंगे या अयोध्या, मथुरा अथवा काशी की किसी सीट से चुनाव लड़कर विपक्ष को वैसे ही चौंकाएंगे जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने वाराणसी से मैदान में उतरकर चौंकाया था. खैर गोरखपुर हो या अयोध्या या फिर मथुरा अथवा काशी हर सीट की अपनी कहानी है और अपना इतिहास है. हर सीट पर अलग सोशल इंजीनियरिंग काम करती है और सियासी संदेश भी अलग रहते हैं.

गोरखपुर सुरक्षित सीट, चुनाव पर कितना असर?

गोरखपुर सीट से सीएम योगी पांच बार लगातार सांसद रहे हैं. गोरखपुर मठ के महंत की भूमिका भी वहीं निभा रहे हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता जबरदस्त है. 2017 में भी उन्हीं के दम पर बीजेपी ने सिर्फ एक विधानसभा सीट को छोड़कर सभी पर कमल खिला दिया था. इस बार भी योगी यहां से खड़े होकर बीजेपी को एक आसान जीत दिलवा सकते हैं. 

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गोरखपुर के सियासी समीकरण को समझने का प्रयास करें तो यहां पर 78 फीसदी हिंदू आबादी है तो 21 फीसदी मुसलमान है. ये बीजेपी के चुनावी गणित के हिसाब से मुफीद है लेकिन यहां जातियों का समीकरण इस गणित को गड़बड़ाने की क्षमता भी रखता है. गोरखपुर में ब्राह्मण और कायस्थ के साथ-साथ ओबीसी की यादव, निषाद और कुछ अतिपिछड़ी जातियां अहम भूमिका में हैं.  

 (गोरखनाथ मंदिर)

योगी गोरखपुर से लड़ेंगे या नहीं ये तो वक्त बताएगा लेकिन यहां पर योगी के लड़ने से बीजेपी को पूरे यूपी में ज्यादा फायदा नहीं होने वाला. योगी आदित्यनाथ की जिस तरह से हिंदूवादी छवि है, उसमें गोरखपुर से जीतने से खास इजाफा नहीं होगा. बीजेपी और संघ के एजेंडे को ध्यान में रखें सीएम योगी कोई ऐसी सीट चुन सकते हैं जिससे पूरे यूपी के सियासी समीकरण को साध सकें और देश के भी संदेश दिया जा सके. ऐसा काम अयोध्या या फिर मथुरा से किस्मत आजमा कर ही किया जा सकता है.

राम की नगरी अयोध्या, ध्रुवीकरण करेगा मदद

पहले नजर राम की नगरी अयोध्या पर. इस सीट पर भी बीजेपी का बोलबाला रहा है. हर गली में धर्म पर सियासत है, हर गली में धर्म के नाम पर वोट है. राम मंदिर के निर्माण ने तो इस 'धर्म वाली राजनीति' को और धार दे दी है और बीजेपी ने ये माहौल अच्छे से परख लिया है. अयोध्या में 93 फीसदी हिंदू हैं और मात्र 6 प्रतिशत मुसलमान. अयोध्या यूपी के अवध क्षेत्र में पड़ता है और यहां से विधानसभा की 82 सीटें निकलती हैं.

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ऐसे में सीएम योगी का अयोध्या से चुनाव लड़ना अवध क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के सियासी समीकरण पर असर डाल सकता है. अयोध्या के पड़ोसी जिले अंबेडकरनगर, आजमगढ़, जौनपुर और रायबरेली में बीजेपी 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बाद भी विपक्षी दलों की तुलना में बेहतर सफलता नहीं हासिल कर सकी थी. ऐसे में योगी अयोध्या से लड़ते हैं तो आसपास के जिलों के सियासी प्रभाव डाल सकते हैं. 

राजनीति के लिहाज से भी अयोध्या सीएम योगी की छवि को एकदम सूट करती है. सूबे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके कई दौरे अयोध्या के रहे हैं. दीपावली पर तो उन्होंने दीपोत्सव वाला जो कार्यक्रम शुरू करवाया है, उसने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी हैं. हर साल दीप प्रज्वलित करने का नया रिकॉर्ड बनाया जा रहा है. साधु-संतों से लेकर बीजेपी नेता भी योगी से अयोध्या से चुनाव लड़ने की अपील कर रहे हैं, लेकिन राम मंदिर के पुजारी उनके पक्ष में नहीं है.

 (राम मंदिर का निर्माण जारी)

राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने आजतक के पंचायत कार्यक्रम में कहा था, 'बीजेपी के लोग और योगी अपने हिसाब से चुनाव लड़ने के लिए स्थान तय करेंगे. जहां तक अयोध्या की बात है तो अयोध्या एक मत में या एक पार्टी के अंतर्गत नहीं है. इसलिए मैं तो मुख्यमंत्री के प्रति समर्पित हूं. ऐसी स्थिति में उन्हें यहां से चुनाव लड़ने पर विचार नहीं करना चाहिए. योगी जी को गोरखपुर में ही किसी स्थान से चुनाव लड़ना चाहिए. अयोध्या की स्थिति भी अन्य जगहों जैसी है. वो यहां पर कुछ ऐसे काम करेंगे और कर रहे हैं, जिससे बहुत लोगों का नुकसान हो रहा है. इससे बहुत सारे लोग परेशान भी हैं.' 

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राममंदिर निर्माण के चलते अयोध्या भले ही सुर्खियों में है, लेकिन यहां निर्माण कार्य की वजह से काफी दिक्कतें भी खड़ी हुई हैं. इसके अलावा अयोध्या सीट पर ब्राह्मण, वैश्य और यादव वोटर काफी बड़ी संख्या में है, जिन्हें बीजेपी अगर एक साथ लाने में सफल नहीं होती है तो उनके लिए सियासी चुनौती भी कड़ी हो सकती है. सपा पूर्व मंत्री पवन पांडेय के जरिए ब्राह्मण कार्ड खेलने की तैयारी में है. सीएम योगी को पूरे राज्य के चुनाव पर भी फोकस करना है, जिसके चलते वो खुद को अयोध्या तक सीमित नहीं रखना चाहेंगे? 

मथुरा के जरिए नया आंदोलन, पश्चिमी यूपी में फायदा?

अयोध्या राम की नगरी है तो मथुरा कृष्ण जन्मभूमि है. यहां का भी पुरानी सियासी इतिहास है. यहां भी मंदिर वाली राजनीति है. यहां भी धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण रहता है, लेकिन जातीय समीकरण को नकारा नहीं जा सकता. बीजेपी के दिग्गज नेता कह रहे हैं कि अयोध्या-काशी के बाद अब मथुरा की बारी है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य इशारा कर चुके हैं, संजीव बलियान ने एजेंडा साफ कर दिया है और बीच-बीच में सीएम योगी भी इस मुद्दे को हवा देने से नहीं चूक रहे हैं. अब बीजेपी का मथुरा की सीट पर इतना फोकस देना हैरान नहीं करता है. 

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2017 में भी पांच में से चार सीटें भाजपा ने अपने नाम कर ली थीं. यहां पर 82 फीसदी हिंदू हैं तो 17 प्रतिशत मुसलमान की आबादी है. अब यहां ये बात समझना जरूरी है कि मंदिर आंदोलन ने बीजेपी को 2 सीटों से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका दिया है. उसी आंदोलन की वजह से बीजेपी ने कई सालों तक अपनी राजनीति को चमकाया है. अब क्योंकि राम मंदिर बन रहा है, ऐसे में कुछ सालों बाद ये मुद्दा उतना बड़ा नहीं रहेगा. ऐसे में एक नए आंदोलन की जरूरत है. फिर लोगों को इकट्ठा करने की कवायद है.

बीजेपी और संघ के विश्व हिंदू परिषद के लिए वो मुद्दा मथुरा का कृष्ण मंदिर है. जैसे राम मंदिर को लेकर आंदोलन चलाया गया है, ऐसा ही आंदोलन मथुरा में कृष्ण मंदिर को लेकर भी रहा है. फर्क इतना है कि अभी तक बीजेपी ने अपना फोकस अयोध्या और राम मंदिर पर रखा. अब जब वो उदेश्य पूरा हो गया है. ऐसे में हिंदू संगठन मथुरा को लेकर नेरेटिव सेट करने में जुटे हैं. 

योगी आदित्यनाथ ऐसे में मथुरा सीट से किस्मत आजमाने के लिए उतर सकते हैं. हालांकि मथुरा सीट अयोध्या और गोरखपुर की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण वाली मानी जा रही है. यहां पर कई और ऐसे सियायी मुद्दे हैं जिनके आधार पर वोटर का मूड तय होता है. मथुरा सीट का सियासी समीकरण भी योगी आदित्यनाथ को सूट नहीं करेगा, क्योंकि यहां ब्राह्मण, जाट और यादव वोटर काफी अहम भूमिका में है. ये तीनों ही जातियों किसी न किसी कारण से बीजेपी से नाराज बताई जा रही हैं. ऐसे में सीएम योगी अगर उन्हें साधने में सफल नहीं हुए तो मथुरा सीट से जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा. 

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हालांकि, सीएम योगी यहां से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला करते हैं तो एक नए आंदोलन के जरिए ना सिर्फ यूपी की सियासत में अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं बल्कि पूरे देश में भी सीएम योगी की छवि को और ज्यादा 'हिंदूवादी' बनाया जा सकता है. मथुरा सीट के जरिए योगी पश्चिमी यूपी का माहौल भी बदल सकती है. ये यूपी का वहीं क्षेत्र है जहां पर 17 प्रतिशत जाट है. 2017 में इस समुदाय की वजह से बीजेपी ने पश्चिमी यूपी में क्लीन स्वीप किया था. 71 में से 51 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत वाली सरकार भी बनाई थी. इस बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी संग गठबंधन कर जाटों को अपनी तरफ करने की बड़ी पहल कर दी है. ऐसे में मथुरा से सीएम योगी को उतारकर पश्चिमी यूपी की कई दूसरी सीटों पर भी बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है. 

काशी में साथ मोदी-योगी?

गोरखपुर, अयोध्या और मथुरा का सियासी समीकरण तो समझ लिया गया लेकिन एक और सीट और है जो सीएम योगी व बीजेपी के लिए सुरक्षित मानी जा रही है और वो है वाराणसी. कुछ गलियारों में ऐसी चर्चा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ वाराणसी की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. इस फैसले के पीछे भी कई कारण हो सकते हैं. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने से पीएम मोदी ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को और मजबूत करने का काम किया है. 

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वहीं, सीएम योगी ने भी इस प्रोजेक्ट पर अपना काफी टाइम लगाया है. हर मौके पर उन्होंने खुद काशी जाकर प्रोग्रेस पर पैनी नजर रखी है. ऐसे में उन्होंने अपना जनाधार इस क्षेत्र में भी कामय रखा है. लेकिन जितनी सुरक्षित ये सीट मानी जा रही है, इसके साथ एक ऐसा तथ्य भी जुड़ा है जो सीएम योगी की इस सीट से विधायकी को कमजोर कर सकता है. ऐसा हमेशा देखा गया है कि बीजेपी और संघ दोनों किसी भी जगह पर दो पॉवर सेंटर्स को नहीं जन्म लेने देते हैं. 

कारण सिंपल है- हर तरह के विवाद से दूर रहने का प्रयास रहता है. अभी वाराणसी के सांसद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, ऐसे में अगर योगी यहीं से विधायक बन जाते हैं तो दो बड़े नेताओं का एक ही क्षेत्र में बड़ा दबदबा हो जाएगा. लोकप्रियता की भी ऐसी टक्कर रहेगी जो शायद बीजेपी और संघ नहीं देखना चाहे. इसी वजह से पार्टी शायद योगी को बनारस से मैदान में नहीं उतारे और अयोध्या, मथुरा और गोरखपुर पर ही मंथन रहे. लेकिन, इसके अलावा भी उनके लिए ऐसी सीट तलाश की जा रही है, जहां से वो आसानी से जीत जाएं और मशक्कत भी ज्यादा न करना पड़े, क्योंकि योगी के सिर्फ अपनी सीट तक ही सीमित नहीं रहना बल्कि उन्हें पूरे यूपी में चुनावी प्रकार की कमान भी संभालना है.

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