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UP First Phase Election: बीजेपी की दो सबसे 'सुरक्षित' सीटों पर कम वोटिंग, कैराना में भारी मतदान, क्या संकेत?

UP First Phase Election: यूपी चुनाव के पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो गई है. 2017 की तुलना में कम वोट पड़े हैं. वहीं जो बीजेपी की दो सुरक्षित सीट मानी गई हैं- गाजियाबाद और नोएडा, वहां भी वोटिंग सुस्त रही है. मुस्लिम बहुल कैराना में जरूर बंपर वोटिंग हुई है.

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बीजेपी की सुरक्षित सीटों पर वोटिंग कम
बीजेपी की सुरक्षित सीटों पर वोटिंग कम
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस बार भारी मतदान
  • 2017 की तरह इस बार भी गाजियाबाद सबसे पीछे

यूपी चुनाव का रण शुरू हो चुका है. पश्चिमी यूपी की 58 सीटों पर वोट पड़ चुके हैं. आंकड़े भी सामने आ गए हैं. इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में कम वोटिंग देखने को मिली है. चुनाव आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं उसके मुताबिक पहले चरण में 60.17% मतदान हुआ है. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान ये आंकड़ा 63.5% था. ऐसे में करीब 3 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.

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गाजियाबाद में फिर कम मतदान 

अब इस कमी का एक बड़ा कारण गाजियाबाद जिला है जहां पर इस बार सबसे कम वोटिंग देखने को मिली है. बीजेपी का एक मजबूत गढ़ माने जाना वाला गाजियाबाद इस बार कम वोटिंग की वजह से निराश कर गया है. यहां पर पहले चरण में 54.77% वोट पड़े हैं. इस क्षेत्र में भी सबसे कम वोट साहिबाबाद सीट पर देखने को मिले हैं. वहां का मत प्रतिशत 45 फीसदी रह गया है. दूसरे नंबर पर गाजियाबाद सीट है जहां पर 50.40 प्रतिशत वोट पड़ा है. तीसरे नंबर पर मुरादनगर रहा है जहां पर इस बार 57.30 वोट पड़े हैं. चौथे नंबर पर लोनी है जहां पर 60.58 फीसदी वोट पड़े हैं. गाजियाबाद जिले में अकेला मोदीनगर ऐसा रहा जहां पर सबसे ज्यादा वोटिंग देखने को मिली. वहां पर 63.53 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है.

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गाजियाबाद का समीकरण क्या है?

अब गाजियाबाद सीट पर कम वोटिंग का मतलब समझने के लिए यहां के सियासी समीकरण जानना जरूरी हो जाता है. गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट, गाजियाबाद के शहरी इलाके की सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. व्यापारी वर्ग के मतदाता गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ये सीट सामान्य वर्ग के मतदाताओं की बहुलता वाली सीट मानी जाती है.

गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अतुल गर्ग को उम्मीदवार बनाया है. 2017 के चुनाव में उन्होंने बसपा के सुनील बंसल को भारी अंतर से हरा दिया था. लेकिन इस सीट पर परिवर्तन का ट्रेंड काफी मजबूत रहा है. जनता ने पांच साल बाद विधायक बदलने का चलन रखा है. साल 2002 में इस सीट से कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल, 2007 में बीजेपी के सुनील कुमार शर्मा,  2012 में बसपा के सुरेश कुमार बंसल गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट से विधानसभा पहुंचे थे.

गाजियाबाद की मुस्लिम बहुल सीट पर ज्यादा मतदान

अब गाजियाबाद की ही लोनी सीट पर 60 फीसदी से ज्यादा मतदान देखने को मिला है. गाजियाबाद का लोनी क्षेत्र ग्रामीण माना जाता है और यहां पर मुस्लिम फैक्टर हमेशा से निर्णायक रहा है. इस विधानसभा सीट की गिनती मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीट में होती है. इस विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम तय करने में गुर्जर, ब्राह्मण, त्यागी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 2017 में बीजेपी के नंदकिशोर गुर्जर ने यहां से चुनाव जीता था. इस बार फिर वे इसी सीट से उम्मीदवार हैं. समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के गठबंधन के मदन भैया और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के हाजी आकिल कड़ी चुनौती दे रहे हैं.

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अब इस सीट पर ज्यादा वोटिंग का फायदा किसको मिलने जा रहा है, ये 10 मार्च को नतीजों के बाद साफ हो जाएगा. वैसे गौतमबुद्ध नगर की नोएडा सीट भी बीजेपी के लिए सुरक्षित मानी जाती है. शहरी मतदाता ज्यादा रहता है, लिहाजा पार्टी का वोटबैंक मजबूत रहा है. लेकिन इस बार पहले चरण की वोटिंग में इस सीट पर भी काफी कम वोट पड़ा है

नोएडा फिर रह गया पीछे

गोतमबुद्ध नगर की दूसरी सीटों पर मतदान फिर भी ठीक रहा है, लेकिन नोएडा में आंकड़े उत्साहजनक नहीं हैं. चुनाव आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं उसके मुताबिक नोएडा सीट पर 50.10 फीसदी मतदान हुआ है. अब इस सीट से बीजेपी के कद्दावर नेता पकंज सिंह खड़े हैं जो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे भी हैं. 2017 में उन्होंने भारी बहुमत के साथ ये सीट अपने नाम की थी. 2012 में भी बीजेपी के उम्मीदवार ही इस सीट पर जीत गए थे. ऐसे में पार्टी के लिए ये एक 'सुरक्षित सीट' रही है. लेकिन इस बार गौतमबुद्ध नगर में सबसे कम वोटिंग भी इसी सीट पर हुई है. अब किसका वोटर कम बाहर निकला है, ये 10 मार्च को साफ हो जाएगा.

ध्रुवीकरण के मैदान कैराना में बंपर वोटिंग

अब गाजियाबाद-नोएडा का ट्रेंड समझ में आ गया, लेकिन पश्चिमी यूपी की एक सीट ऐसी भी है जहां पर ध्रुवीकरण का फैक्टर हावी रहता है. हम बात कर रहे हैं शामली जिले की कैराना सीट की जहां पर इस साल पहले चरण में 75.12 फीसदी वोट पड़े हैं. इसे बंपर वोटिंग करार दिया जाएगा. पूरे शामली जिले की बात करें तो यहां पर 69.42 फीसदी मतदान हुआ है. 2017 के चुनाव में ये आंकड़ा 68.48 प्रतिशत था.

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कैराना सीट से वर्तमान विधायक सपा के नाहिद हसन हैं जो फिर उम्मीदवार बना गए हैं. बीजेपी ने यहां पर पलायन को बड़ा मुद्दा बनाया है और हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को दोबारा मौका दिया है. सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. यहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद भी अच्छी है. अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी इस सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 

अब इस चुनावी समीकरण की सबसे आसान समीक्षा यही है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भारी मतदान देखने को मिल गया है. बीजेपी की सुरक्षित सीटों पर वोटिंग कम हुई है. किसे कितना नुकसान, कितना फायदा होने वाला है, ये नतीजों में स्पष्ट दिख जाएगा.

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