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UP Chunav 2022: दूसरे चरण में भी घट गई वोटिंग, बीजेपी या सपा गठबंधन, किसका बिगड़ेगा गेम?

Election in UP 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की 55 सीटों पर सोमवार को 62.52 फीसदी मतदान हुआ. जबकि 2017 के चुनाव में 65.53 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस तरह से इस बार तीन फीसदी कम वोटिंग हुई है. 2017 के चुनाव में जब मतदान में इजाफा हुआ था तब इसका सियासी फायदा बीजेपी को मिला था. वहीं, सपा और बसपा को नुकसान उठाना पड़ा था.

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अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2017 के चुनाव से तीन फीसदी कम वोटिंग हुई
  • बीजेपी को पिछली बार 34 सीटों का फायदा मिला था
  • मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग जबरदस्त हुई है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के 9 जिलों में 55 सीटों पर उतरे 586 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. सोमवार को दूसरे चरण में मतदाताओं में पिछली बार से कम उत्साह दिखा. चुनाव आयोग के मुताबिक, दूसरे दौर की 55 सीटों पर मतदान 62.52 फीसदी रहा जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में यह 65.53 फीसदी था.

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तीन फीसदी कम वोटिंग हुई

दूसरे चरण में पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बेल्ट और रुहेलखंड इलाके की वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से तीन फीसदी वोटिंग कम हुई है. हालांकि, 2012 में इन 55 सीटों पर 65.17 फीसदी वोटिंग हुई थी. 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में 0.36 फीसदी का इजाफा हुआ था. पिछले चुनावों में इन 55 सीटों का वोट प्रतिशत बढ़ने से बीजेपी को फायदा और विपक्षी दलों का नुकसान हुआ था. 

तीन चुनाव के वोटिंग ट्रेंड

2017 में इन 55 में से 38 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को जीत मिली थी जबकि सपा को 15 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी. वहीं, 2012 के चुनाव में सपा को 40 सीटो पर जीत मिली थी जबकि बसपा को 8, भाजपा को 4 और कांग्रेस की 3 सीटें आई थीं. इस तरह से 2017 में बीजेपी को 34 सीटों का फायदा मिला था तो सपा को 25, कांग्रेस 1 और बसपा को 8 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. 

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वहीं, 2007 के विधानसभा चुनाव में इन 55 सीटों पर 49.56 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें बसपा को 35, सपा 11, भाजपा 7 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी. 2012 के चुनाव में 11 फीसदी वोटिंग इजाफा हुआ तो सपा को 29 सीटों का फायदा तो बसपा को 35 सीटों का नुकसान हुआ था. पिछले तीन चुनाव की वोटिंग से यह बात साफ होती है कि वोटिंग प्रतिशत के बढ़ने से विपक्ष का फायदा मिला तो सत्तापक्ष को नुकसान रहा है. 

मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग

दूसरे चरण में सर्वाधिक 72 फीसदी से अधिक मतदान अमरोहा जिले में हुआ जबकि सबसे कम शाहजहांपुर जिले में 59.69 फीसदी रहा. वहीं, विधानसभा सीटों में सबसे अधिक 75.78 फीसदी मतदान सहारनपुर की बेहट में हुआ. यहां की नकुड़ में भी 75.50 फीसदी मत पड़े. अमरोहा की नौगावां सादात में 74.17 फीसदी व हसनपुर में 73.58 प्रतिशत वोट पड़े. इस तरह से मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर वोटिंग अधिक देखने के मिली है.

अस्थिर रहा है बीजेपी का प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश की जिन 55 विधानसभा सीटों पर सोमवार को मतदान हुआ है, उन सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन तीन चुनाव से अस्थिर रहा है. 2017 में 38 सीटें जीतीं थी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इन 55 विधानसभा सीटों में से 27 सीटों पर बढ़त मिली थी जबकि 28 सीटों पर सपा और बसपा को बढ़त मिली थी. 

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मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में

यूपी विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मुस्लिम मतदाता अहम रहे है. जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो नौ सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों की संख्या 50 फीसदी से अधिक है. मुस्लिम बहुमत वाली कुछ सीटों में रामपुर, संभल, अमरोहा, चमरौआ और नगीना शामिल हैं. इसके अतिरिक्त 14 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी 40 से 50 फीसदी है. करीब दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता करते हैं. ऐसे में मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग के संदेश साफ तौर पर समझे जा सकते हैं.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की स्टडी के मुताबिक 2017 में करीब 55 फीसदी मुस्लिमों ने सपा के पक्ष में मतदान किया था. वहीं, इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता पिछली बार से ज्यादा मजबूती के साथ खड़ा दिख रहा है. इस इलाके में सपा का वोट शेयर सूबे के अन्य हिस्सों की तुलना में पिछली बार सबसे अधिक था. सपा-कांग्रेस का संयुक्त वोट शेयर 34 फीसदी था जबकि इस क्षेत्र में बीजेपी को मिले 38 फीसदी वोट के करीब था.

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था, जिसमें से इस क्षेत्र की 11 संसदीय सीटों में से गठबंधन ने 7 और बीजेपी को चार सीटों पर जीत मिली थी. दूसरे चरण की 55 सीटों पर बसपा और सपा गठबंधन का संयुक्त वोट शेयर बीजेपी से अधिक था. सपा 2022 का चुनाव रालोद के साथ मिलकर लड़ रही है.

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2017 में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी थी. सपा ने 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें 15 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी वहीं 21 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे. 55 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के खाते में महज दो सीटें आईं थी जबकि बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. बसपा के 40 उम्मीदवार तीसरे नंबर पर खिसक गए थे.

सभी दलों ने उतारे नए चेहरे

9 जिलों की जिन 55 विधानसभा सीटों पर सोमवार को वोटिंग हुई है, उन पर पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने 12 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. 12 उम्मीदवारों में से 11 की जमानत जब्त हो गई थी. सिर्फ संभल विधानसभा सीट पर ओवैसी की पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर पाई थी और 60 हजार मतों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी. आरएलडी मुक़ाबले में कहीं नहीं थी. रालोद ने 46 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था. मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट पर कामरान उल हक तीसरे नंबर पर  रहे थे. 

बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 55 में से 38 सीट जीती थीं. इस बार 54 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और एक सीट पर उसके सहयोगी अपना दल (एस) लड़ रही है. 25 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार बदले हैं. पिछली बार के जीते हुए 10 उम्मीदवारों का टिकट काटा, जिनमें से तीन विधायक तो पार्टी छोड़ दिए थे. 

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सपा-रालोद गठबंधन की परीक्षा

दूसरे चरण की 55 सीटों में 52 पर सपा और 3 पर आरएलडी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे. सपा-रालोद गठबंधन ने 55 विधानसभा सीटों में 34 पर अपने उम्मीदवारों को बदल दिया है. चार ऐसे उम्मीदवार हैं जो पिछला विधानसभा चुनाव जीते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. वहीं रालोद ने भी 3 नए चेहरों को टिकट देकर उतारा था. 

पिछली बार खाता न खोलने वाली बसपा ने हार से सबक लेते हुए इस बार 54 सीटों पर नए चेहरे उतारे हैं. सिर्फ एक सीट पर बसपा ने अपने पुराने उम्मीदवार को मौका दिया है. वो रिजर्व सीट रामपुर मनिहारन पर रविंद्र कुमार चुनाव लड़ रहे हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में रविंद्र कुमार महज 595 मतों से हारे थे. 11 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बसपा और सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों का आमना-सामना है. ऐसे में देखना है कि दूसरे चरण में कौन किस पर भारी रहा?

 

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