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उत्तर प्रदेश में चार महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ गई है. बीजेपी अपने पिछले रिकॉर्ड को दोहराने की कवायद में जुटी है तो विपक्षी दल सत्ता में वापसी के लिए हाथ पैर मार रहे हैं. 2022 की चुनावी शह-मात के बीच समाजवादी पार्टी की बुनियाद रखने वाले मुलायम सिंह यादव के सहारे अखिलेश यादव और शिवपाल यादव अपने-अपने पक्ष में महालौ बनाने के लिए अलग-अलग रथ पर सवार हो रहे हैं. चाचा-भतीजे दोनों ही मुलायम सिंह की तस्वीर के साथ चुनावी रथ यात्रा पर सवार हो रहे हैं, देखना है कि सूबे में कौन मुलायम का असल सियासी वारिस बनकर उभरता है.
समाजवादी पार्टी से अलग होकर भी अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना चुके शिवपाल यादव अभी अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव से दूरी नहीं बना सके हैं. राजनीति में शिवपाल एकलव्य की तरह कदम बढ़ाते हुए बड़े भाई को गुरु द्रोणाचार्य मानकर परिवर्तन रथ में मुलायम की फोटो लगाकर अपने मिशन का आगाज कर रहे हैं. प्रदेश में दो बार क्रांति रथ निकाल चुके मुलायम सिंह यादव के पद चिह्नों पर चलते हुए शिवपाल यादव ने भी 'सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा' मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन और पूजा अर्चना करके शुरूआत की है.
शिवपाल यादव रथ यात्रा बृज क्षेत्र मथुरा से होते हुए आगरा, इटावा, औरया, कानपुर देहात, झांसी, महोबा फतेहपुर होते हुए प्रयागराज जाएगी. इसके बाद आखिरी चरण 27 नवंबर को रायबरेली में खत्म होगी. शिवपाल यादव कह चुके हैं कि सपा के साथ समझौते का इंतजार खत्म हुआ और अब महाभारत होगा.
2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की अहम भूमिका होगी. सामाजिक परिवर्तन यात्रा एक तरह से धर्मयुद्ध है, जिसमें पांडवों ने पांच गांव मांगे थे. कौरव ने पांडवों को एक इंच जमीन देने से इंकार कर दिया था. एक तरह से साफ है कि शिवपाल अपनी सियासी जमीन खुद तैयार करने के लिए रणभूमि में उतर गए हैं.
वहीं, दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपने पिता मुलायम सिंह से आशिर्वाद लेकर 'समाजवादी विजय रथ यात्रा' मंगलवार को कानपुर से शुरू कर रहे हैं, जो कानपुर और बुंदेलखंड के चार जिलों से होकर गुजरेगी. सपा के रथ पर मुलायम सिंह की बड़ी तस्वीर के साथ लगाई गई है. मुलायम सिंह के साथ-साथ अखिलेश ने आजम खान का भी फोटो लगाया है. यात्रा से एक दिन पहले पार्टी ने 17 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया. जिसमें अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव से बात करते और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते नजर आ रहे हैं.
सपा पर पूरी तरह काबिज होकर अखिलेश खुद को मुलायम के सियासी वारिस के तौर पर स्थापित करने में काफी हद तक सफल रहे हैं. लेकिन, इस बार का विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के साथ-साथ सपा के सियासी भविष्य को भी तय करने वाला है. 2017 में सत्ता गंवाने और 2019 में परंपरागत सीटें हार के बाद अखिलेश के सामने पिता की सियासी विरासत को बचाए रखने की चुनौती है.
2022 के सियासी चुनौतियों के बीच जब चाचा-भतीजे को एकजुट होकर चुनावी रण में उतरना चाहिए था, तब मुलायम के आंगन से दो रथ निकल रहे हैं. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव अपने-अपने सियासी माहौल बनाने के लिए रथ यात्रा पर निकल रहे हैं. ऐसे में भले ही दोनों एक दूसरे पर सियासी निशाना न साधे, लेकिन मुलायम के राजनीतिक आधार पर दोनों ही अपने-अपने साथ साधने की कवायद करते जरूर नजर आएंगे.
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम परिवार में झगड़े के बाद अखिलेश यादव के सपा के साथ शिवपाल यादव ने अपना नाता तोड़ लिया था. शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपना नया ठिकाना ढूंढ लिया. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें कोई ख़ास कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन कई सीटों पर उन्होंने अपने भतीजे अखिलेश के उम्मीदवारों का खेल ज़रूर ख़राब कर दिया था. ऐसे में माना जा रहा था कि चाचा-भतीजे में सियासी गठजोड़ हो सकता है, लेकिन अभी तक बात नहीं बनी.
2022 चुनाव में गठबंधन और चुनावी समझौते की तस्वीर क्या होगी अभी तय नहीं है, लेकिन अखिलेश और शिवपाल यादव रथयात्रा पर निकलने का फ़ैसला कर लिया है. ऐसे में अब चाचा-भतीजे दोनों ही सूबे में अपना-अपना सियासी माहौल बनाने के लिए उतर रहे हैं, देखना है कि कौन कितना सियासी असर दिखाता है.