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Swami Prasad Maurya resigns: स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी छोड़ सपा में जाना चुनाव पर कितना असर डालेगा?

यूपी चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी का साथ छोड़कर साइकिल पर सवाल होने का मन बना लिया है. उनका यूं भाजपा को छोड़ना बड़ा सियासी उलटफेर कर सकता है. रायबरेली की राजनीति पर भी इसका गहरा प्रभाव देखने को मिल सकता है.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव संग स्वामी प्रसाद मौर्य
सपा प्रमुख अखिलेश यादव संग स्वामी प्रसाद मौर्य
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बुंदेलखंड से लेकर पूर्वांचल तक, कई सीटों पर पकड़ रखते हैं मोर्य
  • पहले बसपा, फिर बीजेपी और अब साइकिल पर सवार
  • रायबरेली की राजनीति में बड़ा नाम, कई सालों से सक्रिय

UP Chunav 2022: राजनीति भी कितने रंग दिखाती है. पल में तोला पल में माशा वाला अंदाज़ उत्तर प्रदेश के हर राजनीतिक गलियारों में दिखाई दे रहा है. फिर चाचा भतीजे की लड़ाई हो, बुआ-बबुआ की कहानी हो या फिर नए राजनीतिक समीकरण में स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी की साईकिल पर सवार होना हो. 

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पांच साल ही रहा बीजेपी संग साथ

अभी तो चंद दिन ही बीते थे जब रायबरेली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंच पर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने जी भरकर योगी आदित्यनाथ की ही नहीं बल्कि पूरी सरकार की तारीफ की थी. अभी 15 दिन भी नहीं बीते कि राजनीति ने अपना नया रंग दिखाया और भारतीय जनता पार्टी में 5 साल बिताने के बाद एक बार फिर स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी बदलने का फैसला कर लिया. चुनाव से ठीक पहले वे साइकिल पर सवार हो लिए.

90 के दशक से सक्रिय

दरअसल इन सबके बीच एक बात कॉमन है कि स्वामी प्रसाद मौर्य सूबे की राजनीति में बड़ा नाम माने जाते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी बिरादरी के लिए लड़ते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने 80 के दशक में अपने गृह जनपद प्रतापगढ़ छोड़कर रायबरेली को अपना राजनीतिक क्षेत्र माना जिसके बाद उन्होंने रायबरेली में ही अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की. यही नहीं पहली बार विधायक भी वे रायबरेली की डलमऊ विधानसभा से 1996 में चुने गए. उसके बाद मायावती के मंत्रिमंडल से मंत्री बने, बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने और बसपा में उनकी हैसियत नंबर दो की माने जाने लगी.

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कभी बसपा में थे नंबर 2

फिर विधानसभा चुनाव 2007 में बसपा की हार हो गई. उस समय भी स्वामी प्रसाद मौर्य का कद कभी कम नहीं हुआ. मायावती सरकार में मंत्री बने. 2012 से लेकर 2017 तक विपक्ष के नेता के तौर पर वे सदन में सक्रिय रहे. लेकिन 2017 विधानसभा चुनावों के ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के खेमे में चले गए.

स्वामी प्रसाद मौर्य ऊंचाहार से हार के बाद कुशीनगर की पडरौना को अपनी कर्मभूमि बनाया और लगातार तीन बार से विधायक बने रहे हैं..हालांकि, उन्होंने अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य (अशोक मौर्य) को अपनी पुरानी सीट रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया, लेकिन अभी तक जीत नहीं दिला सके. ऊंचाहार सीट से पहले बसपा से फिर 2017 में बीजेपी के टिकट पर उत्कृष्ट मौर्य चुनाव लड़े, लेकिन सपा के मनोज पांडेय के हाथों हार गए. 

स्वामी प्रसाद ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने बेटे के साथ-साथ अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को भी आगे बढ़ाने का काम किया. संघमित्रा मौर्य को 2014 में बसपा के टिकट पर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मैनपुरी सीट से उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके. हालांकि, पांच साल के बाद  2019 में अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को बदायूं से भारतीय जनता पार्टी का सांसद भी बनवाया. 

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परिवार को भी सियासत में उतारा

यूं तो स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक कद काफी बड़ा है. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से लेकर पूर्वांचल तक, पूर्वांचल से लेकर अवध क्षेत्र की कई सीटों पर स्वामी प्रसाद मौर्य का हस्तक्षेप है. एक खासा वोट बैंक उनके कहने पर सूबे के राजनीतिक माहौल को बदलने में बड़ी वजह बनता है. लेकिन रायबरेली पर इसका असर सीधे तौर पर दिखाई पड़ता है क्योंकि किसी जमाने में इसी ऊंचाहार से वे खुद दो बार विधायक रहे.

2012 से उनका बेटा दो बार यहां से चुनाव हार चुका है. एक बार बहुजन समाज पार्टी से तो 2017 का चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से लड़ते हुए समाजवादी पार्टी के पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज कुमार पांडे के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, दोनों बार उसे मामूली वोटों से हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में 2022 के चुनाव में फिर से मैदान में उतरने की तैयारी में है. 

फिलहाल आने वाले वक्त में यह पता चलेगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे अशोक मौर्य को ऊंचाहार सीट से टिकट मिलता है या नहीं. ये भी देखना होगा कि मनोज पांडे आने वाले वक्त में ऊंचाहार विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं कि नहीं. लेकिन राजनीतिक गलियारों में इन बातों की चर्चा सबसे ज्यादा है कि आखिर अब स्वामी प्रसाद के आने के बाद रायबरेली के राजनीतिक कद में सबसे बड़ा नाम किसका होगा?

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