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यूपी चुनाव में अब यादव बेल्ट की बारी, 2017 में यहीं से तय हो गई थी सत्ता की सवारी

यूपी चुनाव: तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर 20 फरवरी को मतदान होंगे, जहां 627 उम्मीदवार मैदान में है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने 59 में से 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि सपा अपने यादव बेल्ट में महज 9 सीटों ही जीत सकी थी. कांग्रेस को एक सीट मिली थी और बसपा खाता नहीं खोल सकी थी. इस चरण में यादव बेल्ट और बुंदेलखंड के इलाके की सीटों पर चुनाव हो रहे हैं.

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अखिलेश यादव, मायावती, योगी आदित्यनाथ
अखिलेश यादव, मायावती, योगी आदित्यनाथ
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी के तीसरे चरण की 59 सीट पर 627 प्रत्याशी
  • आवारा पशु बना बुंदेलखंड में बड़ा चुनावी मुद्दा
  • बुदंलेखंड में सपा-बसपा-कांग्रेस खाता नहीं खुला था

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के शुरुआती दो चरणों के बाद अब तीसरे चरण के मतदान की बारी है. तीसरे चरण का चुनाव सूबे की सत्ता की दशा और दिशा तय करने वाला माना जा रहा है. पश्चिमी यूपी के दो चरणों में 113 सीटों पर चुनाव खत्म हो चुका है और अब तीसरे चरण की 59 सीटों पर 20 फरवरी यानि रविवार को 'यादव बेल्ट' और बुंदेलखंड के इलाके की सीटों पर वोटिंग है. 

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तीन चरण की 172 में से 140 बीजेपी की सीटें थीं

यूपी में तीसरे चरण के चुनाव के बाद प्रदेश की कुल 403 सीटों में से 172 सीटों पर चुनाव समाप्त हो जाएंगे. पिछले चुनाव में तीन चरणों के वोटिंग के बाद सत्ता की तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी थी. 2017 में इन 172 सीटों में से बीजेपी ने 140 अपने नाम कर सत्ता की दहलीज में अपनी कदम रखा दिया था. इस बार के चुनाव में बदले हुए सियासी माहौल में बीजेपी के लिए कड़ी चुनौतियां हैं तो सपा और बसपा के लिए भी सियासी राह आसान नहीं है. 

अवध-बृज-बुंदेलखंड जिले की विधानसभा सीटें

तीसरे चरण में पिछले दोनों चरणों के मुकाबले ज्यादा जिले शामिल हैं. बृज, कानपुर और बुंदेलखंड क्षेत्र के 16 जिलों की 59 सीटों पर 627 उम्मीदवार मैदान में हैं. बृज के पांच जिले फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, एटा और कासगंज इस चरण में आ रहे हैं, जहां 19 विधानसभा सीटों पर मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. वहीं, अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा जिले की 27 विधानसभा सीटें हैं. वहीं, बुंदेलखंड के पांच जिले जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 17 सीटें हैं. 

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सपा अपना मजबूत गढ़ नहीं बचा सकी थी

यूपी के तीसरे चरण की जिन 59 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. 2017 के चुनाव में इन 59 सीटों में से 49 सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. पिछले तीन दशक में किसी भी पार्टी के लिए इस चरण में यह सबसे बड़ी जीत थी. सत्ता में रहने के बावजूद भी सपा ने अपने गढ़ में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था और उसे महज 9 सीटें मिली थी. कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पढ़ा था जबकि बसपा खाता नहीं खोल सकी थी. मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने यादव बेल्ट में सपा को करारी मात देने में सफल रही थी. 

तीसरे चरण का चुनाव इसीलिए सत्ता की दशा और दिशा तय करने वाला है, क्योंकि बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा और बसपा के लिए खोने के लिए कोई खास नहीं है. हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए यह जरूर है कि अपने गढ़ में पार्टी के खोए हुए सियासी आधार को दोबारा से पाने का चैलेंज है. इसीलिए वो खुद मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं और उनके चाचा शिवपाल यादव इटावा के जसवंतनगर सीट से ताल ठोक रहे हैं. 

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तीसरी चरण में गठबंधन के सहयोगी की परीक्षा

एटा, कन्नौज, इटावा, फरुर्खाबाद, झांसी, ललितपुर, औरैया, महोबा,कानपुर देहात जैसे जिलों में भी सपा को करारा झटका लगा था. जबकि, 2012 के चुनाव में इन जिलों में सपा ने क्लीन स्वीप किया था. 2012 चुनाव में तीसरे चरण की 59 सीटों में से सपा 37 सीटें जीती थी जबकि 2017 में महज 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था. बीजेपी का गैर-यादव ओबीसी कार्ड का दांव सफल रहा था. शाक्य और लोध वोटर एकमुश्त बीजेपी के पक्ष में गए थे, लेकिन इस बार सपा ने भी इन वोटों को साधने के लिए सियासी समीकरण और गठजोड़ बनाए हैं. 

बता दें बीजेपी एक बार फिर से यादव बेल्ट और बुदंलेखंड में पिछली बार के प्रदर्शन को बरकरार रखना चाहेगी जबकि सपा अपने पुराने गढ़ में दोबारा से अपना सियासी वर्चस्व कायम करना चाहती है. 2017 में अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच चली वर्चस्व की लड़ाई में सपा को खामियाजा भुगतना पड़ा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. चाचा शिवपाल अपने भतीजे के पक्ष में वोट मांगते नजर आ रहे हैं. इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने शाक्य समाज वोटों के लिए महान दल के साथ गठबंधन कर रखा है, जिसका आधार इसी इलाके में है. 

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बीजेपी का अपना दल (एस) तो सपा का महान दल

फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, एटा और कासगंज, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा, झांसी, हमीरपुर, कानपुर देहात और ललितपुर जिले को भले ही यादव बेल्ट कहा जाता है, लेकिन शाक्य, कुर्मी और लोध वोटर काफी अहम है. इसीलिए बीजेपी ने अपनी सहयोगी अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल को चुनाव प्रचार में लगा रखा है. इसके अलावा तीसरे चरण की चार सीटें भी अपना दल (एस) लड़ रही है जबकि 55 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी हैं. 
 
वहीं, अखिलेश यादव ने अपने सहयोगी महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य को इस इलाके में चुनाव प्रचार पर लगा रखा है और उनकी पत्नी को फर्रुखाबाद जिले से प्रत्याशी बनाया है. यही नहीं 2017 के चुनाव में बीजेपी के जीते कई गैर-यादव ओबीसी नेताओं को भी सपा ने टिकट देकर इस चरण में उतारा है. वहीं, बसपा के आए दलित नेताओं को भी इस चरण में उतार रखा है. 

बसपा प्रमुख मायावती कभी अपने परंपरागत दलित समाज के साथ शाक्य और कुर्मी जातियों के साथ कॉम्बिनेशन बनाकर यादव बेल्ट और बुदंलेखंड में जीत का परचम लहराती रही है. 2017 में शाक्य और कुर्मी वोटों के खिसकने से बसपा खाता नहीं खोल सकी थी. बसपा ने इस बार सपा के बागियों को टिकट देकर अपने पुराने गढ़ में जीत दर्ज करने का सपना संजोया है. 

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तीसरे चरण में ये चुनावी मुद्दा सबसे ज्यादा हावी

बीजेपी के शीर्ष नेता भले ही यूपी की कानून व्यवस्था समेत तमाम मुद्दों पर सपा को घेर रहे हों. वहीं, बीजेपी जल जीवन मिशन 'हर घर जल-हर घर नल' योजना के बूते खुद को बुंदेलखंड में स्थापित करने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं. वहीं सिंचाई परियोजनाओं, डिफेंस कॉरिडोर के जरिए बीजेपी बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने का दावा भी कर रही है. इसके बाद भी बुंदेलखंड में लोकल मुद्दे ही हावी हैं. 

मंहगाई और बेरोजगारी का जवाब बीजेपी नेताओं के पास नहीं हैं. जमीनी हकीकत की बात करें तो आवारा अन्ना पशुओं से परेशान बुंदलेखंड की कई सीटों पर बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं. अन्ना पशुओं से किसानों की फसलें काफी बर्बाद हुई हैं. पूरे यादव बेल्ट और बुंदेलखंड में आवारा पशु बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गए हैं. यादव, कुर्मी बहुलता वाले इन इलाकों में किसान आलू को खरा सोना मानते हैं.

आलू बेल्ट के प्रभाव में 36 विधानसभा सीटें है

वहीं, बृज और अवध के क्षेत्र को आलू बेल्ट भी कहा जाता है. तीसरी चरण की 59 में से 36 सीटें आलू बेल्ट में आती है, जो आवारा पशुओं के काफी परेशान है. यहां आलू यादव समाज ही नहीं बल्कि शाक्य और कुर्मी समुदाय के लोग भी भी बड़ी तादात में करते हैं, जिन्हें बीजेपी का हार्ड कोर वोटर माना जा रहा है.  बीजेपी को इस पर जवाबी तर्कों के साथ मैदान में उतरना होगा, क्योंकि इस इलाके में बसपा और सपा जातीय समीकरण फिट करते ही बीजेपी के लिए अपनी सीटें बचाना आसान नहीं होगा? 

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