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UP Electon: आधे यूपी का चुनाव पूरा, चार चरणों में बहुमत की दहलीज पर पहुंची थी BJP, अब पूर्वांचल की बारी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चार चरणों में 231 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं और अब बारी 172 सीटों की है. 2017 के चुनाव में चार चरण के चुनाव में बीजेपी ने 192 सीटें जीतकर सत्ता की दहलीज पर कदम रख दिया था. अब बारी पूर्वांचल के सियासी संग्राम की है, जहां पर बीजेपी और सपा के साथ-साथ सहयोगी दलों की परीक्षा होनी है.

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अखिलेश यादव, मायावती, योगी आदित्यनाथ, प्रियंका गांधी
अखिलेश यादव, मायावती, योगी आदित्यनाथ, प्रियंका गांधी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी के चार चरणों में 231 सीटों पर चुनाव खत्म
  • 2017 में बीजेपी ने बहुमत के आंकड़े को छू लिया था
  • पूर्वांचल में सहयोगी दलों की असल इम्तेहान होना है

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ 2022 का विधानसभा चुनाव रुहेलखंड-अवध से होते हुए पूर्वांचल के मैदान में आ पहुंचा है. चौथे चरण के मतदान के साथ ही विधानसभा चुनाव ने आधे से अधिक सफर पूरा कर लिया. चार फेज में अब तक 231 विधानसभा सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. अब अगले 11 दिनों में बाकी तीन चरणों में बची 172 सीटों पर चुनाव होने हैं. ऐसे में सत्ता की दशा और दिशा का फैसला अब पूर्वांचल के सियासी संग्राम से तय होना है, जिसके लिए राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक दी है. 

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231 सीटों में से 192 सीटें बीजेपी के पास
2017 विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं. सूबे की कुल 403 सीटों में से अभी तक चार चरणों में 231 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं. 2017 में इन चार चरणों के चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद बीजेपी ने बहुमत के आंकड़े को लगभग छू लिया था. चार फेज के 231 सीटों में से बीजेपी ने 192 सीटें हासिल कर ली थी. इस तरह से बहुमत से महज 10 सीटों ही कम रह गई थी, जो पांचवें चरण के चुनाव के साथ पूरी कर लिया था. 

यूपी के चार चरण के चुनाव में क्या रहा?

बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 58 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उसे यदि 2017 के चुनाव से तुलना करें तो यह तस्वीर सामने आती है. जिनमें से बीजेपी के पास 53, सपा-बसपा को 2-2 सीटें मिली थी और एक सीट आरएलडी जीती थी. दूसरे चरण की 55 सीटों पर चुनाव हुए, 2017 में इनमें बीजेपी 38, सपा 15 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी. तीसरे चरण में 59 सीटों पर चुनाव हुए हैं, पिछले चुनाव में जिनमें बीजेपी के पास 49, सपा 8, बसपा और कांग्रेस को 1-1 सीटें थी. चौथे चरण में 59 सीटों पर चुनाव हुए हैं, 2017 के चुनाव में बीजेपी को 51 और उसके सहयोगी अपना दल (एस) को एक, सपा, को चार, बसपा-कांग्रेस को दो-दो सीटें पर जीत मिली थी.

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इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से पश्चिमी यूपी, रुहेलखंड व बुंदेलखंड के साथ सेंट्रल यूपी व अवध के कुछ क्षेत्रों की 231 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं. इस तरह प्रदेश के आधे से ज्यादा मतदाता अपना जनादेश सुना चुके होंगे और बाकी के तीन चरण में 172 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव बाकी हैं, जहां पर सियासी दल चुनावी प्रचार में जुटे हैं और अपने-अपने पक्ष में माहौल बना रहे हैं. 

पांचवें से सातवें चरण तक की लड़ाई
यूपी के पांचवें चरण में 12 जिलों की 61 विधानसभा सीटों पर 27 फरवरी को चुनाव है. पिछले चुनाव में इस फेज की 61 सीटों में से बीजेपी ने 51 सीटें जीती थी, जबकि उसके सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थी. सपा के खाते में महज 5 सीटें आई थी. इसके अलावा कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी और दो सीटों पर निर्दलीय ने जीती थी. इसके बाद छठे चरण की 57 सीटों पर तीन मार्च और सातवें चरण की 54 सीटों पर 7 मार्च को वोट डाले जाएंगे. 

छठे चरण की जिन 57 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से बीजेपी के पास 46, सपा के पास 2, बसपा के पास 5 और कांग्रेस के पास एक सीट है. इसके अलावा एक सीट अपना दल (एस), एक सीट सुभासपा और एक सीट अन्य को मिली थी. सातवें चरण में जिन 54 सीटों पर चुनाव है, उनमें से बीजेपी के पास 26, सपा के पास 11, बसपा के पास 6, अपना दल (एस) के पास 4, सुभासपा के पास 3 और एक सीट निषाद पार्टी ने जीती थी. 

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क्षेत्रीय दल क्या करिश्मा दिखा पाएंगे?
अब यूपी की सियासी जंग में पांचवें से सातवें चरण तक के चुनाव में अपनी पार्टी बनाकर सियासत करने वाले प्रभावशाली क्षत्रपों व दलबदल करने वाले कद्दावर नेताओं के प्रभाव का भी इम्तिहान होना है. बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी की असल परीक्षा अगले तीन चरणों के चुनाव में होने है. वहीं, सपा के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा, डॉ. संजय चौहान की जनवादी पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल की सियासी ताकत की आजमाइश इसी फेज में होनी है. पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पहली बार अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक बनाकर मैदान में हैं, जिनके लिए अगला चरण काफी अहम है. 

राजभर-संजय-निषाद-अनुप्रिया की परीक्षा
उत्तर प्रदेश की सियासत में क्षेत्रीय दल की ताकत बढ़ी है. इस बार के चुनाव में अपना दल (सोनेलाल), सुभासपा और निषाद पार्टी इस चुनाव में अपने मुख्य दलों से ज्यादा सीटें झटकने में कामयाब रहे हैं. ये सभी पूर्वांचल में काफी सक्रिय हैं. ये अपनी पार्टी और अपने सहयोगी के लिए कितना दमदार साबित होते हैं, यह अगले तीन चरणों के चुनाव से पता चल सकेगा. ऐसे में पूर्वांचल का सियासी संग्राम काफी रोचक हो गया है, क्योंकि अब चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण से ज्यादा जातीय बिसात के पिच पर खेला जाएगा.

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2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मिलकर चुनाव लड़े पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर इस बार चुनाव सपा से गठबंधन कर लड़ रहे हैं. लंबी सियासत के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पहली बार भाजपा के साथ जाकर विधायक व मंत्री बनने का मौका मिला था. यह चुनाव साबित करेगा कि सपा से गठबंधन का उनका दांव कितना सफल रहा. डॉ. संजय निषाद पहली बार बीजेपी से गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं. निषाद समाज में अच्छी पकड़ का दावा करने वाले संजय कितनी सीटें पाते हैं, यह भी कसौटी पर है. ऐसे ही अपना दल (एस) के साथ भी है. 

दलबदल नेताओं के इम्तेहान की बारी
पांचवें से सातवें चरण के बीच कई दिग्गज नेता अपनी पुरानी पार्टी छोड़कर दूसरे दलों से भाग्य आजमा रहे हैं. इनमें पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर व दारा सिंह चौहान जैसे दिग्गज ओबीसी नेता शामिल हैं. स्वामी प्रसाद व दारा सिंह भाजपा छोड़कर जबकि लालजी व राम अचल बसपा छोड़कर सपा में गए हैं. इन कद्दावर नेताओं का दलबदल का प्रयोग कैसा रहा, इन चरणों के चुनाव में सामने आ जाएगा. इसके अलावा पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी का बसपा छोड़कर सपा के साथ जाने का क्या सियासी लाभ मिलता है. इस पर सबकी नजरें होंगी.

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