उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के 9 जिलों में 59 सीटों पर उतरे 624 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. बुधवार को सिख-किसान बहुल तराई बेल्ट और लखनऊ सहित अवध इलाके की सीटों पर मतदान हुए. चुनाव आयोग के मुताबिक, चौथे फेज की 59 सीटों पर 61.52 फीसदी मतदान रहा जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीटों पर 62.55 फीसदी वोटिंग रही थी और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह 60.03 प्रतिशत था.
किसान बहुल जिलो में बंपर वोटिंग
चौथे चरण के चुनाव के वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से एक फीसदी वोटिंग कम हुई है, लेकिन सिख और किसान बहुल सीटों पर जमकर मतदान हुए हैं. इस फेज में किसान आंदोलन का असर वाले तराई बेल्ट में सिख वोटर थे तो अवध के इलाके पासी निर्णायक है. सिख और किसान बहुल सीटों पर वोटिंग ज्यादा हई हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में फीकी रही है. सिख बहुल पीलीभीत में 67.59 फीसदी, लखीमपुर खीरी में 66.32 फीसदी, सीतापुर में 62.66 फीसदी रही. वहीं, हरदोई में 58.99 फीसदी, उन्नाव में 57.73 फीसदी, लखनऊ में 60.05 फीसदी, रायबरेली में 61.90 फीसदी, बांदा में 60.36 फीसदी, फतेहपुर में 60.07 फीसदी रही.
पिछली बार से कम रही वोटिंग
चौथे चरण के तराई बेल्ट और अवध इलाके की सीटों पर चुनाव हुए हैं,जहां पर 61.52 फीसदी वोटिंग रही. हालांकि, 2012 में इन 59 सीटों पर 61.55 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि 2017 में 62.55 फीसदी था. इस तरह से 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में एक फीसदी का इजाफा हुआ था. 59 सीटों का वोटिंग फीसदी बढ़ने से बीजेपी को जबरदस्त फायदा और विपक्षी दलों का नुकसान हुआ था.
चौथे चरण की जिन 59 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनके विश्वलेषण करने पर साफ पता चलता है कि वोटिंग फीसदी बढ़ने से विपक्ष को लाभ मिलता. 2017 में इन 59 में से 51 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को जीत मिली थी जबकि एक सीट उसके सहयोगी अपना दल को मिली थी. सपा को 4 और कांग्रेस-बसपा को दो-दो सीट मिली थी. वहीं, 2012 के चुनाव में इन 59 सीटों में से बीजेपी को 3, सपा को 39, बसपा को 13, कांग्रेस को तीन और अन्य को एक सीटों पर मिली थी. इस तरह से 2017 में बीजेपी को 48 सीटों का फायदा मिला था तो सपा को 35, कांग्रेस को 1 और बसपा को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.
2007 में बसपा को फायदा मिला था
वहीं, 2007 के विधानसभा चुनाव में इन 59 सीटों पर 49 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें बसपा को 27, सपा 17, भाजपा 9 और 6 सीटें कांग्रेस को मिली थी. 2012 के चुनाव में 12 फीसदी वोटिंग इजाफा हुआ तो सपा को 22 सीटों का फायदा तो बसपा को 14 सीटों का नुकसान हुआ था. पिछले तीन चुनाव की वोटिंग पैटर्न से यह बात साफ होती है कि वोटिंग फीसदी के बढ़ने से विपक्ष को फायदा मिला तो सत्तापक्ष को नुकसान रहा है. इस बार की वोटिंग लगभग 2012 के चुनाव के बराबर रही है.
बता दें कि चौथे चरण के लिए जिन इलाके में वोटिंग हुई है, वहां के सियासी समीकरण को देखें तो तराई बेल्ट के तहत आने वाले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर में सिख, किसान और कुर्मी वोटर अहम है तो अवध के हरदोई, उन्नाव, सीतापुर, रायबरेली, लखनऊ में पासी समुदाय काफी महत्वपूर्ण है. इसके अलावा फतेहपुर और बांदा के इलाके में कुर्मी, निषाद और दलित वोटर अहम है. हालांकि, अवध की सीटों पर ब्राह्मण और ठाकुर वोटर भी काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
यूपी के 'मिनी पंजाब' में सबसे ज्यादा वोटिंग
उत्तर प्रदेश में सिख समुदाय लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में रहते हैं, जिसके चलते इस इलाके को मिनी पंजाब का कहा जाता. चौथे चरण में सबसे ज्यादा वोटिंग पीलीभीत में 67.59 फीसदी दिखी है. पीलीभीत में पूरनपुर विधानसभा में सबसे ज्यादा सिख है. यहां 65 फीसदी की भारी वोटिंग हुई, जो पिछली बार से सात फीसदी ज्यादा रही. सिख व कुर्मी बहुल इस इलाके बीजेपी ने 2017 के चुनाव में सभी चारों सीटें जीती थी. वरुण गांधी यहां से बीजेपी के सांसद है, लेकिन वो बागी रुख अपनाए हुए हैं. इसके अलावा लखीमपुर खीरी की घटना से किसान और सिख वोटरों की नाराजगी बढ़ी है. ऐसे में बीजेपी के लिए चुनौती है.
किसान-सिख बहुल लखीमपुर खीरी में वोटिंग
यूपी चुनाव में लखीमपुर खीरी का किसान आंदोलन सुर्खियों में रहा. लखीमपुर के तिकोनिया में किसानों पर जीप चढ़ाने की घटना में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर एफआईआर दर्ज हुई. लखीमपुर में कुर्मी, ब्राह्मण और सिख वोटर हैं, जहां किसान काफी महत्वपूर्ण है. तिकोनिया लखीमपुर के निघासन विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां 63 फीसदी वोटिंग हुई है. लखीमपुर की सिख बहुल पलिया विधानसभा पर 62 फीसदी वोट पड़े हैं. इसके अलावा बाकी सीटों पर भी ऐसी ही वोटिंग दिखी है. 2017 के चुनाव में लखीमपुर खीरी की सभी 8 सीटें बीजेपी के पास थीं, लेकिन इस बार कड़ी चुनौतियां का सामना करना पड़ा है.
अवध में पासी वोटर काफी महत्वपूर्ण है
चौथे चरण में अवध के जिन इलाके में वोटिंग हुई है, वहां पर पासी वोटर काफी अहम माने जाते हैं. सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर, लखनऊ के ग्रामीण इलाके वाली सीटों पर पासी वोटर निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में पासी बहुल सीटों पर वोटिंग में इजाफा देखने को मिला है जबकि शहरी क्षेत्र में वोटिंग कम रही है. पिछली बार के चुनाव में पासी वोटर बीजेपी के साथ खड़े दिखे थे, जिसके दम पर विपक्ष का सफाया हो गया था. इस बार पासी वोटों के लिए बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस ने साधने के लिए तमाम जतन कर रखे थे.
चौथे चरण में मुस्लिम समीकरण
चौथे चरण के मतदान में मुस्लिम बहुल वाली सीटों पर वोटिंग फीसदी को देखें तो पीलीभीत, लखनऊ और लखीमपुर खीरी में इनकी संख्या करीब 20 फीसदी से ज्यादा है. पीलीभीत में 24.11 फीसदी मुस्लिम आबादी है, 67 फीसदी वोटिंग रही तो . लखनऊ में मुस्लिम आबादी 21.46 फीसदी है और 60 फीसदी वोटिंग रही और लखीमपुर खीरी में 20.08 फीसदी मुस्लिम आबादी और 65 फीसदी वोट पड़े हैं. सीतापुर में 20 फीसदी और फतेहपुर में 25 फीसदी मुस्लिम है, जहां पर मुस्लिमों ने जमकर वोटिंग की है.
लखनऊ में वोटिंग ट्रेंड क्या रहा
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 60 फीसदी वोटिंग रही. लखनऊ में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 8 सीटें जीती थी जबकि एक मोहनलालगंज सीट सपा को मिली थी. लखनऊ के शहरी इलाके में ब्राह्मण, मुस्लिम, कायस्थ, वैश्य वोटर काफी महत्वपूर्ण है तो ग्रामीण इलाके में दलित और ओबीसी वोटर काफी अहम है. लखनऊ के ग्रामीण इलाके वाली मलिहाबाद, बख्शी का तालाब और मोहनलालगंज में वोटिंग ज्यादा हुई. वहीं, शहरी इलाके वाली लखनऊ कैंट, लखनऊ सेंट्रल और सरोजनीनगर पर अन्य सीटों की तुलना में कम वोट पड़े. लखनऊ पश्चिम सीट पर मुस्लिम वोटर काफी महत्वपूर्ण हैं, जहां करीब 58 फीसदी वोटिंग हुई है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीता का दावा कर रहे हैं, पर देखना है कि 10 मार्च के क्या नतीजे रहते हैं?