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यूपीः कुर्मी किसे दिलाएंगे कुर्सी? छह फीसदी आबादी पर हर दल डाल रहा है डोरे

उत्तर प्रदेश में कुर्मी-सैथवार समाज भले ही 6 फीसदी है, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर हैं. सूबे में चार दर्जन विधानसभा सीटों पर अपना असर रखते हैं. अपना दल के दोनों धड़ों का सियासी आधार कुर्मी वोटबैंक पर हैं, जिसके सहारे वो सत्ता में भागेदारी बनी हुई हैं. ऐसे में बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस तक कुर्मी वोटों को साधने में जुटी है.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में 6 फीसदी कुर्मी वोट का 48 सीट पर असर
  • कुर्मी समाज कई उपजातियां और पार्टियों में बंटा है
  • रामपूजन, सोनलाल, बेनीप्रसाद वर्मा कुर्मी नेता रहे

उत्तर प्रदेश की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गई है. सूबे में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी ओबीसी में कुर्मी समाज की है. कुर्मी समाज के वोटों को साधने के लिए बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस तक जोर आजमाइश में जुटी हैं. वहीं, अपना दल के दोनों धड़े कुर्मी समाज की बदौलत किंगमेकर बनने का सपना संजोय रखा है तो नीतीश कुमार की जेडीयू भी इसी दम पर सूबे में अपने सियासी पैर जमाना चाहती है. ऐसे में यूपी चुनावों में सभी दलों के लिए अहम बन चुके कुर्मी मतदाता किसकी वैतारणी पार लगाएंगे? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशती aajtak.in की यह रिपोर्ट... 

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कुर्मी समाज में कौन-कौन उपजातियां
उत्तर प्रदेश में कुर्मी-सैथवार समाज का वोट करीब 6 फीसदी है, जिन्हें पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है. रुहेलखंड में कुर्मी गंगवार और वर्मा से पहचाने तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कुर्मी, पटेल, कटियार, निरंजन और सचान कहलाते हैं. अवध और पश्चिमी यूपी के क्षेत्र में कुर्मी समाज के लोग वर्मा, चौधरी और पटेल नाम से जाने जाते हैं. रामपूजन वर्मा, रामस्वरुप वर्मा, बरखू राम वर्मा, बेनी प्रसाद और सोनेलाल पटेल यूपी की राजनीति में कुर्मी समाज के दिग्गज नेता माने जाते थे. 

कुर्मी समाज का सियासी असर कितना
यूपी में कुर्मा समाज 6 फीसदी है, जो ओबीसी में 35 फीसद के करीब है. सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से लेकर बुदंलेखंड और अवध और रुहेलखंड में किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में है. 

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कुर्मी समाज का इन जिलों में प्रभाव
कुर्मी समाज की यूपी में संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में ज्यादा आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की ताकत रखते हैं. 

यूपी के कुर्मी क्षत्रप

यूपी में कुर्मी समुदाय के ये क्षत्रप हैं
उत्तर प्रदेश में कुर्मियों को कोई एक नेता नहीं बल्कि हर इलाके अपने-अपने क्षत्रप हैं. इन्हीं क्षत्रपों के सहारे राजनीतिक दल अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त कर सत्ता के सिंहासन पर काबिज होते रहे हैं. रुहेलखंड में कुर्मी समाज से सबसे बड़े नेता के तौर पर बीजेपी सांसद व पूर्व मंत्री संतोष गंगवार का नाम आता है तो सपा में भगवत चरण गंगवार हैं. पूर्वांचल क्षेत्र में  अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज का चेहरा मानी जाती हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. एक समय बीजेपी के नेता ओम प्रकाश सिंह हुआ करते थे, लेकिन पार्टी पंकज चौधरी और मुकुट बिहारी वर्मा को पार्टी बढ़ा रही. सपा में लालजी वर्मा और बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा हैं तो कांग्रेस के पास आरपी सिंह हैं. 

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कानपुर और बंदुलेखंड में इलाके में कुर्मी समाज की सियासत को ददुआ के इर्द-गिर्द सिमटी हुई थी. इलाके में बीजेपी की विनय कटियार और प्रेमलता कटियार एक बड़ी नेता हुआ करती थी, पर अब स्वतंत्रदेव सिंह, ज्योति निरंजन और आरके पटेल हैं. वहीं, सपा में ददुआ के भाई बालकुमार पटेल और नरेश उत्तम पटेल कुर्मी समाज के चेहरा हैं. कांग्रेस के रामपूजन पटेल एक बड़े नेता हुआ करते थे, लेकिन अब राकेश सचान को पार्टी आगे बढ़ा रही. 

यूपी में कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व 
यूपी में कुर्मी समाज की सियासी ताकत को देखते हुए बीजेपी स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है तो सपा ने भी कुर्मी समाज के ही नरेश उत्तम पटेल के प्रदेश की कमान सौंप रखी है. मौजूदा समय में कुर्मी समाज के कुल 34 विधायक हैं, जिसमें 26 बीजेपी, 4 अपना दल (एस), दो बसपा और दो सपा से जीते थे. इसके अलावा अभी कुल आठ सांसद हैं, जिनमें 6 बीजेपी, एक बसपा और एक अपना दल (एस) शामिल हैं. 

केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज से हैं. इसके अलावा यूपी में योगी सरकार में कुर्मी समुदाय के तीन मंत्री है. इसमें कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, राज्यमंत्री जय कुमार सिंह 'जैकी' हैं. कुर्मी समुदाय पहले भी बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा रहा है, लेकिन इस बार सपा भी पूरी ताकत के साथ कुर्मी वोटों को अपने पाले में लाने में जुटी है. 

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कुर्मी वोटों पर आधार रखने वाले दल

यूपी में कुर्मी समाज के सियासी ताकत को देखते हुए बीजेपी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अपना दल (एस) से गठबंधन कर रखा है.  हालांकि, अपना दल को स्थापित खड़ा करने वाले सोनेलाल पटेल इस बिरादरी के बड़े और सर्वमान्य नेता थे, लेकिन कभी चुनाव नहीं जीत सके. सोनेलाल पटेल की सियासत विरासत दो धड़ों में बटी हुई है. अपना दल के एक धड़े को उनकी पत्नि कृष्णा पटेल और बेटी पल्लवी पटेल संभाल रही हैं जबकि दूसरी अपना दल (एस) को अनुप्रिया पटेल के हाथों में है. 

अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल दोनों बहने कुर्मी वोटों के सहारे अपनी सियासत कर रही हैं. पल्लवी पटेल और उनकी मां कृष्णा पटेल ने ने अभी तक चुनावी सफलता हासिल नहीं कर सकी हैं जबकि अनुप्रिया पटेल दूसरी बार सांसद हैं और पार्टी के 9 विधायक हैं. अनुप्रिया पटेल का प्रभाव प्रयागराज और पूर्वांचल के इलाके के कुर्मी समुदाय के बीच है. विश्लेषक मानते हैं कि वह सहयोगी होने के नाते अन्य क्षेत्रों में भी बीजेपी के लिए फायदा दिलाती हैं.

वहीं, देश में कुर्मी समाज के सबसे बड़े नेता के तौर पर फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को स्थापित किया है. नीतीश की पार्टी जेडीयू यूपी में कुर्मी वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए किस्मत आजमाने की तैयारी में है. हालांकि, उनकी कोशिश यूपी में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है, लेकिन अभी तक न तो गठबंधन को लेकर तस्वीर साफ हुई है और न ही सीट को लेकर.  

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कुर्मी समाज एक पार्टी के साथ नहीं रहा

बता दें कि कुर्मी मूलरूप से किसान जाति है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी है. हालांकि अब शहरों में भी उनकी संख्या है, आजादी के बाद कुर्मी समाज लंबे समय तक कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ी रही है. इसके बाद कांशीराम ने कुर्मी समाज के बड़े तबके को अपने साथ जोड़ा तो सपा ने भी कुर्मी समाज के एक तबके को साथ लिया. मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जब भी सपा की सरकार बनी कुर्मी बिरादरी के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा का बड़ा कद रहा.

यूपी में लंबे समय तक बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मी बिरादरी के दिग्गज नेता के रूप में प्रदेश में जाने जाते रहे. वहीं, बीजेपी सूबे में लंबे समय से कुर्मी वोटों को साधने के लिए तमाम जतन करती रही. कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौर में ओम प्रकाश सिंह कुर्मी समाज के बड़े नेता थे. ओम प्रकाश सिंह और विनय कटियार लंबे अरसे तक बीजेपी में कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं और अपने समाज को बीजेपी के परंपरागत वोट बनाने में अहम भूमिका अदा की. मौजूदा समय में बसपा के पास कुर्मी समाज को कोई बड़ा नेता नहीं है, जो कुर्मियों को जोड़ने की दिशा में कदम उठा सके. ऐसे में देखना है कि कुर्मी समाज किसे 2022 के चुनाव में पसंद करता है.

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