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यूपी विधानसभा इलेक्शन से पहले MLC की 36 सीटों पर चुनाव, पार्टियों ने झोंकी ताकत

यूपी में स्थानीय निकाय के द्वारा चुने गए 36 विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) का कार्यकाल मांच महीने के बाद सात मार्च 2022 को पूरा हो रहा है. मार्च में ही सूबे में विधानसभा चुनाव होने, जिसके चलते एमएलसी के चुनाव पहले होंगे. बीजेपी को उच्च सदन में बहुमत के आंकड़े जुटाने के लिए एमएलसी चुनाव जीतने की प्लानिंग में है तो सपा अपनी सीटें बचाए रखने की कवायद में.

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अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ, मायावती
अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ, मायावती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में 36 विधान परिषद सीटों पर घमासान
  • उच्च सदन में बीजेपी बहुमत जुटाने का लक्ष्य
  • सपा के सामने अपनी सीटें बचाए रखने की चुनौती

उत्तर प्रदेश में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक सभी राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. बीजेपी सूबे में अपनी सरकार को बचाए रखकर इतिहास बनाना चाहती है तो सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस सत्ता में वापसी के जद्दोजहद में जुटे हैं. ऐसे में इन सभी सियासी दलों के लिए 2022 चुनाव से पहले सूबे की 36 विधान परिषद की सीटों पर होने वाला चुनाव लिटमस टेस्ट माना जा रहा है.

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36 एमएलसी सीटें रिक्त हो रही हैं

यूपी में स्थानीय निकाय के द्वारा चुने गए 36 विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) का कार्यकाल पांच महीने के बाद सात मार्च 2022 को पूरा हो रहा है. मार्च में ही सूबे में विधानसभा चुनाव होने, जिसके चलते एमएलसी के चुनाव पहले होंगे. यही वजह है कि चुनाव आयोग ने 36 एमएलसी सीटों का विवरण और मतदाता सूची की जानकारी सरकार से मांगी है ताकि समय से चुनाव कराए जा सकें. 

36 विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने से तीन महीने पहले सूबे में एमएलसी चुनाव हो सकते हैं. ऐसे में नंवबर के आखिर या दिसंबर के पहले सप्ताह में यूपी के एमएलसी चुनाव के ऐलान हो सकता है. स्थानीय निकाय सदस्यों के द्वारा होने वाला विधान परिषद चुनाव काफी अहम है, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइल माना जा रहा है. 

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स्थानीय निकाय सीटों पर घमासान

विधान परिषद में स्थानीय निकाय क्षेत्रों की 36 सीटों के चुनाव राजनीतिक दलों का गणित बदल देती हैं. स्थानीय निकाय से होने वाली विधान परिषद चुनाव में जीत मिलने के साथ ही बीजेपी उच्च सदन में भी बहुमत हासिल कर लेगी. वहीं, वर्तमान में स्थानीय निकाय क्षेत्र से अधिकांश एमएलसी सपा के हैं, जिनका कार्यकाल पूरा हो रहा है. ऐसे में सपा के लिए अपनी सीटें बचाने के साथ राजनीतिक संदेश देने की कोशिश भी करेगी कि सूबे में वो सक्षम और सियासी तौर पर सुदृढ़ है. 

एमएलसी चुनाव में वोटर कौन?

सूबे के विधान परिषद की स्थानीय निकाय कोटे की 36 सीटों पर होने वाले चुनाव में जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत के सदस्य, ग्राम प्रधान, शहरी निकायों नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत के सदस्यों के साथ ही कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य भी वोटर होते हैं. इसके अलावा स्थानीय विधायक और स्थानीय सांसद भी वोटर होते हैं. ऐसे में सूबे की सत्ता में रहने वाली पार्टी के लिए एमएलसी चुनावा फायद मिलता रहा है. 

सपा को 2016 में फायदा मिला

यूपी में 2016 में विधान परिषद चुनाव हुए थे, उस समय सूबे की सत्ता में सपा थी. 2016 में स्थानीय निकाय के 36 विधान परिषद सीटों में सपा ने 31 सीटें जीतकर उच्च सदन में बहुमत हासिल किया था. आठ एमएलसी सीटों पर सपा निर्विरोध जीत दर्ज की थी. वहीं, महज दो एमएलसी सीटों पर बसपा चुनाव जीती थी जबकि कांग्रेस से दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली जीते थे. इसके अलावा बनारस से बृजेश कुमार सिंह और गाजीपुर से विशाल सिंह 'चंचल' निर्दलीय जीते थे. दिनेश प्रताप सिंह और विशाल सिंह ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया. 

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यूपी में विधान परिषद चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी इसमें अधिक से अधिक सीटें जीतकर विधान परिषद में बहुमत हासिल करना चाहेगी, जबकि सपा अपनी सीटें बचाने में जुटेगी. विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले इन चुनावों को जीतकर सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों ही अपनी मजबूत दावेदारी का संदेश जनता को देने की कवायद में है. ऐसे में सपा से लेकर बीजेपी तक एमएलसी चुनाव के जोड़तोड़ में जुट गई हैं. 

उच्च सदन में बहुमत जुटाने का टारगेट

उत्तर प्रदेश सौ सदस्यों वाली विधान परिषद में अभी सपा के 48, बीजेपी के 33, बसपा के छह, कांग्रेस के एक, अपना दल के एक, शिक्षक दल के दो, निर्दलीय समूह के 2, निर्दलीय तीन और पांच रिक्त पद हैं. उच्च सदन में बहुमत के लिए 51 सदस्य चाहिए. ऐसे में विधान परिषद में बहुमत के लिए बीजेपी को निकाय क्षेत्र की 36 सीटों में से कम से कम 15 सीटों पर जीत जरूरी है. ऐसे में बीजेपी निकाय सदस्यों को साधने की कवायद में जुट गई है.

 

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