उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी एम-वाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) के जरिए सत्ता के सिंहासन पर एक बार फिर से वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही है. वहीं, बीजेपी भी अब एम-वाई फैक्टर के भरोसे यूपी के चुनाव को जीतने के लिए आस लगाए हुए है. ऐसे में सपा का एम-वाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) है तो बीजेपी का भाजपा एम-वाई फैक्टर (मोदी-योगी) है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी क्या एम-वाई फैक्टर के जरिए सूबे में अखिलेश यादव के सियासी तिलिस्म को तोड़ पाएगी?
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने शुक्रवार को सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया है, जिसमें वो ट्रैक्टर चलाते हुए चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे हैं. साथ ही उन्होंने लिखा है कि किसानों का ट्रैक्टर और बीजेपी का MY (मोदी-योगी) का फैक्टर यूपी में कमल खिला रहा है. यह बात स्वतंत्र देव सिंह पहले बीजेपी नेता नहीं है, जिन्होंने सपा के एम-वाई फैक्टर के जवाब में बीजेपी के एम-वाई फैक्टर को पेश किया है. इससे पहले बीजेपी के कई नेता एम-वाई (मोदी-योगी) फैक्टर को रख चुके हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी पीएम मोदी और सीएम योगी के अगुवाई में उतरी है. बीजेपी के चुनाव प्रचार की कमान मोदी और योगी संभाल रहे हैं और पार्टी नेता इन्हीं दोनों के नाम पर वोट मांग रहे हैं. इस तरह बीजेपी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ी को सियासी फैक्टर के तौर पर पेश कर रही है और भरोसा भी जता रही है कि M-Y फैक्टर के जरिए फिर सत्ता में वापसी करेंगे.
दरअसल, सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों और यादव बिरादरी के मतदाताओं जुगलबंदी के सहारे सत्ता के धुरी दो दशक तक बने रहे. ये दोनों ही समुदाय करीब 30 फीसदी के करीब है. ऐसे में एम-वाई समीकरण के सहारे सपा सूबे में चार बार सरकार बना चुकी है. अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में भी एम-वाई समीकरण को मजबूत किया है, जो वोटिंग पैटर्न में भी दिख रहा है.
अखिलेश यादव ने एम-वाई समीकरण के साथ-साथ ओबीसी जातियों की गोलबंदी भी बनाई है, जो बीजेपी के लिए सियासी तौर पर चुनौती बना हुई है. पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण बनाया तो यादव बेल्ट में यादव-मुस्लिम-ओबीसी का दांव चला. वहीं, अवध और पूर्वांचल में भी सपा ने जातीय समीकरण के लिए तमाम क्षेत्रीय औ जातीय आधार वाले सियासी दलों के साथ गठबंधन कर रखा है.
उत्तर प्रदेश में सपा के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए बीजेपी ने अपने M-Y (मोदी-योगी) फैक्टर के भरोसा जता रही है. भाजपा की लगभग हर चुनावी रैली में पार्टी के नेता देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए कार्यों की जमकर सराहना रहे हैं. बीजेपी का चुनाव प्रचार अधिकतर मोदी और योगी के इर्द-गिर्द ही सिमटा हुआ है. प्रधानमंत्री अपने चुनावी संबोधनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर सराहना करते हैं. वहीं, योगी भी अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों को मोदी के नेतृत्व में हुआ कार्य का श्रेय देते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी की असल परीक्षा पूर्वांचल के इलाके में होनी है, जहां छठे और सातवें चरण में वोटिंग होनी है. पीएम मोदी वाराणसी से सांसद हैं तो गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद हैं. योगी गोरखपुर सीट से पहली बार विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे हैं. हालांकि गोरखपुर लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं. बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण छठा और सातवें चरण का चुनाव माना जा रहा है.
अखिलेश यादव ने पूर्वांचल के सियासी समीकरण साधने के लिए सबसे ज्यादा मशक्कत की है, जिसके लिए उन्होंने दूसरे दलों के मजबूत नेताओं को साथ लिया है तो जातीय आधार वाले दलों के साथ गठबंधन किया है. मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर व दारा सिंह चौहान जैसे दिग्गज ओबीसी नेता शामिल हैं. स्वामी प्रसाद व दारा सिंह भाजपा छोड़कर जबकि लालजी व राम अचल बसपा छोड़कर सपा में आए हैं. इसके अलावा ब्राह्मण समीकरण के लिए पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी को लिया है.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मिलकर चुनाव लड़े पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर यह चुनाव सपा से गठबंधन कर लड़ रहे हैं. इसके अलावा अखिलेश यादव ने डा. संजय चौहान की जनवादी पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल के साथ गठबंधन कर रखा है. इन तीनों ही दलों का सियासी आधार पूर्वांचल में है. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने इन्हीं समीकरण के जरिए जीत का परचम फहराया था. ऐसे में देखना है कि बीजेपी के एम-वाई फैक्टर किस तरह से कारगर साबित होता है?