उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छठे चरण के 10 जिलों में 57 सीटों पर उतरे 676 उम्मीदवारों की किस्मत अब ईवीएम में कैद हो गई है. अब तक के 5 चरण की तरह ही छठे चरण में भी वोटिंग परसेंटेज कम रही. गुरुवार को छठे फेज में पूर्वांचल के पूर्वी इलाके की सीटों पर मतदान हुए, जहां कुर्मी, यादव, निषाद, ब्राह्मण और दलित अहम भूमिका में है तो कुछ जिले में मुस्लिम भी निर्णायक हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक, छठे चरण की 57 सीटों पर 55.56 फीसदी मतदान रहा जबकि 2017 के चुनाव में इन्हीं सीटों पर 56.52 फीसदी और 2012 में 55.19 फीसदी वोटिंग रही थी.
किस जिले में कितनी वोटिंग रही
यूपी चुनाव के छठे चरण के वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से एक फीसदी वोटिंग कम हुई है और 2012 के आसपास ही मतदान रहा. इस फेज में अंबेडकरनगर में 62.22 फीसदी, बलिया में 53.93 फीसदी, बलरामपुर में 48.73 फीसदी, बस्ती में 56.81 फीसदी, देवरिया में 54.60 फीसदी, गोरखपुर में 56.23 फीसदी, कुशीनगर में 57.28 फीसदी, महराजगंज 59.63 फीसदी, संत कबीर नगर 54.39 फीसदी और सिद्धार्थ नगर 50.19 फीसदी मतदान रहा.
छठे फेज में जिन 57 सीटों पर मतदान हुआ है, उसके वोटिंग पैटर्न का विश्वलेषण करने पर साफ पता चलता है कि वोटिंग फीसदी बढ़ने से विपक्ष को लाभ मिलता. 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में एक फीसदी का इजाफा था तो इस बार के चुनाव में एक फीसदी की कमी रही. पिछले चुनाव में वोटिंग फीसदी बढ़ने से बीजेपी को जबरदस्त फायदा और विपक्षी दलों का नुकसान हुआ था. .
वोटिंग पैटर्न का क्या सियासी संदेश
बता दें कि 2017 के चुनाव में इन 57 में 56.52 फीसदी मतदान रहा तो बीजेपी 46 सीटें जीती थीं जबकि बसपा 5, सपा 2 और कांग्रेस, सुभासपा, अपना दल और निर्दलीय के हिस्से एक-एक सीट आई थी. वहीं, 2012 विधानसभा चुनाव में इन 57 सीटों पर 55.19 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिनमें बीजेपी को 8, सपा को 32 बसपा को 9, कांग्रेस को 5 और अन्य को 3 सीटों पर जीत मिली थी.
2012 की तुलना में 2017 में एक फीसदी वोट बढ़ने से बीजेपी को 38 सीटों का फायदा हुआ था जबकि सपा को 30, बसपा और कांग्रेस को 4-4 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. वहीं, 2007 के चुनाव में इन 57 सीटों पर करीब 48 फीसदी वोटिंग हुई थी तो बीजेपी को 10, सपा को 19, बसपा 21 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. इस तरह से पांच साल के बाद 2012 में 8 फीसदी वोटिंग का इजाफा हुआ तो सपा को 13 सीटों का फायदा और बसपा को 13 सीटों का नुकसान हुआ था.
मुस्लिम वोटरों में नहीं दिखा उत्साह
यूपी में अभी तक के पांच चरणों में मुस्लिम बहुल बूथों पर जमकर वोटिंग ट्रेंड दिख रहा था, लेकिन छठें चरण में मुस्लिमों में उत्साह नहीं दिखा. छठे फेज के 10 जिलों में बलरामपुर में 37 फीसदी, सिद्धार्थनगर में 30 फीसदी और संत कबीर नगर में 24 फीसदी मुस्लिम आबादी है. वोटिंग फीसदी की बात करें तो बलरामपुर में सबसे कम 48.73 फीसदी और सिद्धार्थनगर में 50.19 फीसदी मत पड़े. यह दोनों जिले ऐसे हैं जहां पर सबसे कम मतदान हुआ जबकि दूसरे इलाकों में वोटिंग पिछली बार की तरह ही दिखी.
2017 में मुस्लिम बहुल बलरामपुर की सभी चार, सिद्धार्थनगर की 5 और संतकबीर नगर की 3 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, जिनमें एक सीट उसके सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में गई थी. इस तरह से बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाके में अपना वर्चस्व जमाने में कामयाब रही थी जबकि इससे पहले सपा और बसपा यहां बेहतर करती रही है, लेकिन इस बार वोटिंग कम होने से राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ गई हैं.
दलित बहुल जिलों में बंपर वोटिंग
यूपी चुनाव के छठे चरण में जिन 10 जिलों में गुरुवार को मतदान हुआ, उनमें से अंबेडकरनगर, गोरखपुर, संत कबीर नगर और बस्ती ऐसे जिले हैं जहां दलित मतदाता 24 फीसदी से ज्यादा है. इसमें से अंबेडकर नगर में सबसे ज्यादा 62.22 फीसदी और गोरखपुर में 56.23 फीसदी है. अंबेडकरनगर में कुल 10 जिलों में जितने वोट पड़े उससे करीब 7 फीसदी ज्यादा वोटिंग रही है.
अंबेडकरनगर बसपा का गढ़ माना जाता है और मायावती की कर्मभूमि रही है, जहां पर 5 सीटें हैं. 2017 में मोदी लहर के बाद भी बसपा ने 5 में से 3 सीट जीती थी और दो सीटें बीजेपी ने बहुत मामूली वोटों से ही जीत दर्ज की थी जबकि 2012 में सभी पांचों सीटें सपा को मिली थी. इस बार के चुनाव में बसपा के जीते हुए कद्दावर नेता रामअचल राजभर और लालजी वर्मा सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं और मायावती ने नए चेहरों पर दांव लगा रखा था. ऐसे में अंबेडकरनगर में बसपा, सपा और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. ये हालत सिर्फ अंबेडकर नगर की नहीं है बल्कि उन सभी सीटों की है, जहां दलित मतदाता अहम है.
ओबीस वोटर सबसे निर्णायक
छठे चरण में पूर्वी पूर्वांचल के जिन 10 जिलों में वोटिंग हुई है, वहां के जातीय समीकरण को देखें तो सबसे अहम ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता नजर आएंगे. ओबीसी समुदाय में यादव, कुर्मी, निषाद और कुशवाहा वोटर सबसे मुख्य है. बीजेपी, बसपा और सपा तीनों ही दल इन वोटों के साधने के लिए गठबंधन से लेकर कैंडिडेट चयन में बाखूबी ध्यान रखा है. बीजेपी ने कुर्मी वोटों के लिए अपना दल (एस) और निषाद वोटों के लिए संजय निषाद से गठबंधन किया. बसपा ने भी प्रत्याशियों के चयन में जबरदस्त सोशल इंजीनियरिंग की है.
वहीं, सपा ने कृष्णा पटेल की अपना दल के हाथ मिला रखा है तो लालजी वर्मा जैसे कद्दावर नेता को साधा है. इतना ही नहीं ओबीसी के बड़े चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य भी सपा के साथ हैं तो निषाद समाज के बड़े नेता शंखलाल माझी को पूर्वीचल में उतार है. स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से चुनावी मैदान में है, जहां कुशवाहा वोटर अहम है. 2017 में बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी के जरिए पूर्वांचल के पूर्वी हिस्से से विपक्ष का सफाया कर दिया था, लेकिन इस बार कांटे का मुकाबला है.
पूर्वांचल में ब्राह्मण किंग मेकर
पूर्वांचल में ब्राह्मण वोटर किंगमेकर माने जाते हैं, जिसमें देवरिया, गोरखपुर, संतकबीरनगर, बलिया, सिद्धार्थनगर की सीटों पर कैंडिडेट के जीत हार तय करने की स्थिति में है. सपा, बसपा, बीजेपी और कांग्रेस ने इस इलाके में ब्राह्मण उम्मीदवारों पर खास तव्वजो दी है. चिल्लूपार सीट से बाहुबली नेता और योगी से वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी सपा से चुनावी मैदान में है तो पथरदेवा सीट पर सपा ने ब्राह्मशंकर त्रिपाठी, इटवा में माता प्रसाद पांडेय है. इतना ही नहीं कई सीटों पर सपा, बसपा और बीजेपी तीनों ही ब्राह्मण कैंडिडेट दिए हैं. ऐसे में देखना होगा कि ब्राह्मणों की पहली पसंद कौन पार्टी बनी हैं.