उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के 16 जिलों में 59 सीटों पर उतरे 627 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. रविवार को तीसरे चरण में 'यादव बेल्ट' और बुंदेलखंड के इलाके की सीटों पर हुए मतदान में पिछली बार से कम उत्साह दिखा. चुनाव आयोग के मुताबिक, तीसरे दौर की 59 सीटों पर 60.46 फीसदी मतदान रहा जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 62.21 फीसदी था.
दो फीसदी कम वोटिंग हुई
तीसरे चरण में बृज, अवध और बुंदेलखंड इलाके की सीटों पर चुनाव के वोटिंग ट्रेंड को देखें तो पिछले चुनाव से दो फीसदी वोटिंग कम हुई है. हालांकि, 2012 में इन 59 सीटों पर 59.79 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि 2017 में 62.21 फीसदी था. इस तरह से 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में दो फीसदी का इजाफा हुआ था. पिछले चुनाव में 59 सीटों का वोटिंग फीसदी बढ़ने से बीजेपी को जबरदस्त फायदा और विपक्षी दलों का नुकसान हुआ था. वहीं, इस बार 2012 की तरह वोटिंग ट्रेंड रहा, जिसके सियासी संकेत साफ हैं.
तीन चुनाव के वोटिंग ट्रेंड
तीसरे चरण की जिन 59 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनके विश्वलेषण करने पर साफ पता चलता है कि वोटिंग फीसदी बढ़ने से विपक्ष को जबरदस्त लाभ मिला. 2017 में इन 59 में से 49 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को जीत मिली थी जबकि सपा को 8 और कांग्रेस के और बसपा को एक सीट मिली थी. वहीं, 2012 के चुनाव में इन 59 सीटों में से बीजेपी को 8, सपा को 37, बसपा को 10 और कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली थी. इस तरह से 2017 में बीजेपी को 41 सीटों का फायदा मिला था तो सपा को 29, कांग्रेस 2 और बसपा को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.
वहीं, 2007 के विधानसभा चुनाव में इन 59 सीटों पर 50 फीसदी के करीब वोटिंग हुई थी, जिसमें बसपा को 28, सपा 17, भाजपा 7 सीटें मिली थी. 2012 के चुनाव में 10 फीसदी वोटिंग इजाफा हुआ तो सपा को 10 सीटों का फायदा तो बसपा को 21 सीटों का नुकसान हुआ था. पिछले तीन चुनाव की वोटिंग से यह बात साफ होती है कि वोटिंग फीसदी के बढ़ने से विपक्ष को फायदा मिला तो सत्तापक्ष को नुकसान रहा है. इस बार की वोटिंग लगभग 2012 के चुनाव के बराबर रही है.
यादव बेल्ट और बुंलेदखंड
तीसरे चरण का चुनाव यादव बेल्ट, कानपुर क्षेत्र और बुंदेलखंड के इलाके की सीटों पर रहा. तीसरे चरण में यादव वोट अहम है. बृज के कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, और हाथरस की 19 सीट हैं. अवध के 6 जिलों कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 सीट हैं. बुंदेलखंड क्षेत्र के 5 जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा में 13 सीटों पर चुनाव हुए हैं.
यादव बेल्ट वाले बृज और अवध क्षेत्र में बीजेपी के गैर-यादव ओबीसी कार्ड का दांव सफल रहा था, जो सपा का एक समय मजबूत गढ़ हुआ करता था. इसके बावजूद सपा महज आठ सीटें ही जीत सकी थी. वहीं. बुंदेलखंड के इलाके में बीजेपी का दलित और ओबीसी जातियों के साथ-साथ सवर्णों वोटों के दम पर दबदबा जमाया था, जो कभी बसपा का मजबूत दुर्ग हुआ करता था.
दलित सीटों पर वोटिंग पैटर्न
तीसरे चरण में 16 जिले थे, जिसमें से 9 ऐसे जिले हैं जहां अनुसूचित जाति की आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है. ऐसी सीटों पर औसत से ज्यादा वोट पड़े. तीसरे चरण की 59 सीटों पर 60.46 वोट पड़े है जबकि दलित बाहुल्य वाली सीटों पर वोटिंग फीसदी अधिक रही. ऐसे ही यादव बेल्ट वाली सीटों पर वोटिंग फीसदी ज्यादा रहे हैं. तीसरे चरण में 15 सीटें दलित समाज के लिए आरक्षित थी.
वहीं, तीसरे फेज में मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें ज्यादा नहीं थीं. कानपुर में सबसे ज्यादा 18 फीसदी तो कन्नौज में 16 फीसदी मुस्लिम आबादी है जबकि बाकी जिलों में इससे कम ही है, लेकिन सपा के मुस्लिम-यादव समीकरण को देखें तो ऐसी जगहों पर खूब वोट पड़े हैं. तीसरे चरण के टॉप 5 मुस्लिम आबादी वाले जिलों को देखें तो पहला नंबर कन्नौज का है, जहां 62 वोट पड़े. दूसरा नंबर कानपुर नगर 51, फर्रुखाबाद 55, फिरोजाबाद 58 और हाथरस 59 है. कन्नौज, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद मुस्लिम के साथ यादव बहुलता वाले जिले हैं.
उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का चुनाव समाप्त हो गया है. यादव बेल्ट में वोटिंग हिट रही तो बुंदेलखंड जैसी जगहों पर पिछली बार की तुलना में वोट कम पड़े. हालांकि, यादव बेल्ट में बीजेपी और सपा के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला तो बुंदेलखंड में बसपा, सपा और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला भी दिख रहा है.
172 सीटों पर चुनाव समाप्त
यूपी में तीसरे चरण के चुनाव के बाद प्रदेश की कुल 403 सीटों में से 172 सीटों पर चुनाव समाप्त हो गया. पिछले चुनाव में तीन चरणों के वोटिंग के बाद सत्ता की तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी थी. 2017 में इन 172 सीटों में से बीजेपी ने 140 अपने नाम कर सत्ता की दहलीज में अपनी कदम रखा दिया था. इस बार के चुनाव में बदले हुए सियासी माहौल में बीजेपी के लिए कड़ी चुनौतियां हैं तो सपा और बसपा के लिए भी सियासी राह आसान नहीं है.
बता दें कि 2017 में सत्ता में रहने के बावजूद भी सपा ने अपने गढ़ में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था और उसे महज 8 सीटें मिली थी. कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा था जबकि बसपा को एक सीट मिली थी. मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने यादव बेल्ट में सपा को करारी मात देने में सफल रही थी, लेकिन इस बार सियासी राह आसान नहीं है. बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा और बसपा के लिए खोने के लिए कोई खास नहीं है.
तीसरे चरण में गठबंधन का टेस्ट
हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए अपने गढ़ में पार्टी के खोए हुए सियासी आधार को दोबारा से पाने का चैलेंज है. इसीलिए वो खुद मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे थे तो उनके चाचा शिवपाल यादव जसवंतनगर सीट से ताल ठोक रहे थे. 2017 में अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच चली वर्चस्व की लड़ाई में सपा को खामियाजा भुगतना पड़ा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. चाचा- भतीजे एक साथ हैं. इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने शाक्य समाज वोटों के लिए महान दल के साथ गठबंधन कर रखा है, जिसका आधार इसी इलाके में है. वहीं, बीजेपी और अपना दल (एस) का लिट्मस टेस्ट है.