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गन्ने के मूल्य में 25 रुपये की बढ़ोतरी, किसान क्यों कह रहे हैं इसे 'सरकारी धोखा'

योगी सरकार ने गन्ना किसानों को मूल्य बढ़ाने का फैसला ऐसे समय में लिया है जब सूबे में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. किसानों की नाराजगी से पश्चिम यूपी में बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है. ऐसे में योगी सरकार ने गन्ना के मूल्य बढ़ाकर किसानों को साधने का दांव चला है. इसके बावजूद इसे सरकारी धोखा बताया जा रहा है.

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सीएम योगी आदित्यनाथ किसान सम्मेलन में
सीएम योगी आदित्यनाथ किसान सम्मेलन में
स्टोरी हाइलाइट्स
  • योगी सरकार ने गन्ना मूल्य पर 25 रुपये बढ़ाया
  • सपा-बसपा राज से कम बढ़ा योगी सरकार में गन्ना समर्थन मूल्य
  • हरियाणा और पंजाब में यूपी से ज्यादा है मूल्य

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने रविवार को किसान सम्मेलन के दौरान आगामी पेराई सीजन (2021-22) के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी करने की घोषणा की. देश के सबसे अधिक गन्ना पैदा करने वाले राज्य में साढ़े चार साल में कुल 35 रुपये प्रति क्विटंल का इजाफा योगी सरकार ने किया है. इसके बावजूद गन्ना किसान इस बढ़ोतरी को सरकारी धोखा बता रहे हैं? 

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योगी सरकार ने गन्ना मूल्य में 25 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ाने की घोषणा की है, जो आगामी 1 अक्तूबर से शुरू होने वाले पेराई सीजन के लिए की है. इसके बाद राज्य में गन्ने की अगेती प्रजाति के लिए एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल, सामान्य प्रजाति के लिए 340 रुपये प्रति क्विंटल और अस्वीकृत प्रजाति के लिए एसएपी 335 रुपये प्रति क्विटंल हो गई है.

हरियाणा-पंजाब में यूपी से ज्यादा मूल्य मिल रहा 

योगी सरकार ने गन्ना किसानों के लिए समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला ऐसे समय में लिया है जब सूबे में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. किसानों की नाराजगी से पश्चिम यूपी में बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है. ऐसे में योगी सरकार ने गन्ना के मूल्य बढ़ाकर किसानों को साधने का दांव चला है, लेकिन बीजेपी सरकार में हुई यह बढ़ोतरी पिछली सपा और बसपा सरकार से काफी कम है. 

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मौजूदा योगी सरकार की इस घोषणा के बाद राज्य के 45 लाख से अधिक गन्ना किसानों की नाराजगी का कम होना संभव नहीं लगता है, क्योंकि पड़ोसी राज्य हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने आगामी सीजन के लिए गन्ने का एसएपी 362 रुपये प्रति क्विटंल घोषित किया है. वहीं, पंजाब की कांग्रेस सरकार ने गन्ने का एसएपी 360 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है. ऐसे में पहले से ही आंदोलन कर रहे गन्ना किसानों की नाराजगी कम कैसे होगी जब वो सूबे में 400 रुपये प्रति क्विटंल से अधिक दाम मांग रहे हैं. 

बीजेपी ने घोषणा पत्र में 370 रुपये का वादा किया था

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि गन्ना के एसएपी में केवल 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी योगी सरकार द्वारा किसानों के साथ किया गया एक क्रूर मजाक है. उन्होंने कहा कि 2017 में बीजेपी खुद अपने घोषणा-पत्र में गन्ने का रेट 370 रुपये प्रति क्विंटल करने का वादा किया था. साढ़े चार साल में बेतहाशा बढ़ी महंगाई का भी हिसाब जोड़ा जाना चाहिए. ऐसे में सूबे में किसानों के गन्ने का रेट सवा चार सौ रुपये क्विंटल से एक रुपये कम भी मंजूर नहीं होगा. हरियाणा और पंजाब से ही कम कीमत योगी सरकार यूपी में गन्ना किसानों को दे रही है. 

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सरकार किसानों को लेकर गंभीर नहीं- चौधरी पुष्पेंद्र सिंह

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुषेंद्र सिंह ने कहा कि योगी सरकार किसानों को लेकर कतई गंभीर नहीं है. साढ़े चार साल बाद 25 रुपये की बढ़ोतरी किसानों के साथ मजाक है. महंगाई दर के लिहाज से देखें तो मौजूदा समय में 380 रुपये क्विटंल गन्ना पड़ रहा है, लेकिन यूपी सरकार ने किसान से इसे 350 रुपये में खरीदने का फैसला किया है. किसान सवा चार सौ की मांग कर रहा है. पड़ोसी राज्य हरियाणा में बीजेपी की ही सरकार है, फिर भी यूपी में वहां से कम गन्ना मूल्य क्यों दे रही है. सरकार के लिए गन्ना किसानों के साथ किया जा रहा व्यवहार महंगा पड़ेगा. 

गौरतलब है कि देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसदी और उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसदी उत्तर प्रदेश में होता है. भारत में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं. देश के करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान चीनी मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं. यूपी का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है.

साढ़े चार साल में योगी सरकार ने 35 रुपये बढ़ाया

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उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी संख्या होने के नाते यह राजनीतिक रूप से बेहद अहम फसल है. वर्ष 2017 में यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य में कुल 35 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी. हालांकि, राज्य परामर्शी मूल्य निर्धारण समिति की बैठक में किसानों ने कहा था कि गन्ना उत्पादन लागत 352 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा आ रही है, इसलिए गन्ना मूल्य 400 रुपये क्विंटल किया जाए. ऐसे में गन्ना मूल्यों पर साढ़े चार साल में 35 रुपये की बढोत्तरी से किसान खुश नजर नहीं आ रहे हैं. 

वरुण गांधी ने चार सौ प्रति क्विटंल की मांग किया

बीजेपी सांसद वरूण गांधी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर गन्ने का एसएपी 400 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग की थी. एक फिर वरुण गांधी ने चिट्ठी में यूपी सरकार का आभार जताते हुए कहा है कि आने वाले सत्र में गन्ने का रेट 350 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है, लेकिन इसपर फिर से विचार करके सरकार  50 रुपये अपनी ओर से जोड़कर देना चाहिए. साढ़े चार सालों में महंगाई बढ़ गई है और किसानों की हालत बहुत दयनीय है. ऐसे में सरकार गन्ना किसानों को 400 रुपये प्रति क्विटंल किया जाना चाहिए. 

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मायावती और अखिलेश राज में कितना बढ़ा

यूपी में गन्ना की मूल बढ़ाने के मामले में देखें तो बसपा प्रमुख मायावती सरकार के पांच साल के दौरान इसमें 92 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. साल 2007 में मायावती ने सरकार की कमान संभाली तब गन्ने के मूल्य 125 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे पांच साल में बढ़ाकर 240 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के शासन में गन्ने के मूल्य में 27 फीसदी बढ़ोतरी की गई. सपा सरकार ने पांच साल में दो बार में कुल 65 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का राज्य परामर्शी मूल्य बढ़ाया था.  

गन्ना किसानों की सियासी ताकत 

पश्चिम यूपी की 126 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 2017 में 109 सीटें जीती थीं जबकि सपा ने 20, कांग्रेस ने दो, बसपा ने 3 सीटें जीती थीं. एक सीट आरएलडी को मिली थी. हालांकि, गन्ना बेल्ट का इलाका बागपत से शाहजहांपुर, गोंडा और सीतापुर के इलाके में फैला हुआ है, जहां की विधानसभा सीटों को नहीं जोड़ा गया है. यूपी के इस पूरे इलाके में किसान मुख्य रूप से गन्ना की खेती करते हैं और इसी पर निर्भर हैं. गन्ना किसान उत्तर प्रदेश की सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 

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गन्ने पर 25 रुपये बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है

वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की संख्या सबसे अधिक है. यूपी की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का चालू पेराई सीजन (2019-20) का करीब चार हजार करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गन्ने के एसएपी में पड़ोसी राज्यों से कम बढ़ोतरी करना सही नहीं माना जा सकता है और इससे किसानों की नाराजगी बढ़ सकती है. 

सरकार ने आठ फीसदी से कम की बढ़ोतरी की है जबकि पिछले तीन साल में किसानों के लिए बिजली करीब तीन गुना महंगी हुई और डीजल का दाम 20 रुपये प्रति लीटर से अधिक बढ़ा है. ऐसे में तीन साल के फ्रीज के बाद केवल 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी को तर्कसंगत ठहराया जाना मुश्किल है और वह भी चुनावी साल में. राज्य में आगामी फरवरी- मार्च माह में विधान सभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में विपक्षी दल भी सरकार के खिलाफ गन्ना किसानों की नाराजगी का राजनीतिक फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेगा.

 

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