UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया मकर संक्रांति से शुरू हो गई है और दूसरे चरण के लिए कैंडिडेट के नामों की घोषणा जारी है. सूबे में चुनाव की शुरुआत पश्चिमी यूपी के इलाके से हो रही, जिसे सियासी प्रयोगशाला के तौर पर भी जाना जाता है. 2017 के चुनाव में बीजेपी पश्चिमी यूपी की 90 फीसदी सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार पुराने नतीजे को दोहराने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.
पूर्वांचल की तरह पश्चिमी यूपी में भी जातियों के इर्द-गिर्द चुनावी ताने-बाने बुने जा रहे हैं. जाट, मुस्लिम और दलितों का जाटव वोटर भले ही यहां अहम भूमिका में हो, लेकिन सैनी, कश्यप, ठाकुर, त्यागी, ब्राह्मण, गुर्जर और वाल्मीकि जातियां भी काफी अहम हैं जो पश्चिमी यूपी की सीक्रेट किंगमेकर मानी जाती हैं. ऐसे में पश्चिमी यूपी की चुनावी बाजी इन्हीं जातियों के हाथों में है, जिन्हें साधने के लिए सभी पार्टियां हरसंभव कोशिश में जुटी हैं.
बता दें कि यूपी में जाटों की आबादी करीब 4 फीसदी है जबकि पश्चिम यूपी में 17 फीसदी है. मुस्लिम आबादी यूपी में भले ही 20 फीसदी है, लेकिन पश्चिम यूपी में 32 फीसदी है. ऐसे ही दलित मतदाता यूपी में 21 फीसदी है जबकि पश्चिमी यूपी में 26 फीसदी के करीब है, जिनमें 80 फीसदी जाटव शामिल है.
इन्हीं तीनों प्रमुख जातियों के इर्द-गिर्द पश्चिमी यूपी के सियासी माहौल को देखा जाता है. इसके अलावा यहां तमाम ऐसी जातियां हैं, जो भले ही अपने दम पर जीतने की ताकत नहीं रखती हैं, लेकिन दूसरी जातियों के साथ मिलकर सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत जरूर रखती हैं. ऐसे ही जातियों का हम जिक्र करेंगे...
सैनी वोटर
पश्चिमी यूपी में सैनी समुदाय एक अहम वोटबैंक है, जो जाटों की तरह किसानीऔर खेती करते हैं. सैनी समाज पिछड़ी जाति में आता है. पश्चिमी यूपी के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, शामली, बिजनौर, अमरोहा और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक भूमिका में है. इस तरह से करीब 10 सीटों पर सीधे असर रखते हैं तो एक दर्जन सीटों पर खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत है.
पश्चिमी यूपी में सैनी समाज किसी एक पार्टी का कभी वोटर नहीं रहा है. बसपा का हार्डकोर वोटर कभी माना जाता था तो कुछ जगहों पर सपा के साथ भी रहा है, लेकिन मौजूदा समय में बीजेपी के साथ है. सैनी समाज के धर्म सिंह सैनी बड़े नेता माने जाते हैं और उन्होंने हाल ही में बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. सपा ने धर्म सिंह सैनी के जरिए सैनी वोटों में सेंधमारी करने की कवायद की है तो बीजेपी ने भी कई सैनी नेताओं को जोड़ रखा है और उन्हें सहारनपुर, मुरादाबाद की सीटों पर उतारा है.
गुर्जर वोटर
पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय के मतदाताओं की खासी संख्या है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, शामली, मेरठ, बागपत सहारनपुर जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं, जहां 20 से 70 हजार के करीब इनका वोट है. गुर्जर समाज ओबीसी में आते हैं. आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत माने जाते हैं.
एक दौर में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता के तौर पर कांग्रेस के राजेश पायलट और बीजेपी के हुकुम सिंह हुआ करते थे, जो पश्चिम यूपी की सियासत पर खास असर रखते थे. गुर्जर समाज लंबे समय तक कांग्रेस का वोटबैंक रहा है, लेकिन मंडल की राजनीति के बाद सपा और बसपा के साथ मजबूती से जुड़ा रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव से बीजेपी के साथ है, लेकिन इस बार बसपा, सपा-आरएलडी गठबंधन और बीजेपी सहित सभी पार्टियों ने बड़ी संख्या में गुर्जर समाज के प्रत्याशी उतारे हैं. आरएलडी ने गुर्जरों का चेहरा माने जाने वाले अवतार सिंह बढ़ाना को भी अपने पाले में ले लिया है जिन्होंने अपने समाज के सम्मान की आवाज उठानी शुरू कर दी है.
कश्यप समाज
ओबीसी के तहत आने वाला कश्यप समाज पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड के कई जिलों में किंगमेकर की तरह है. राज्य सरकार द्वारा गठित की गई एक सामाजिक-न्याय समिति की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार कहार/कश्यप जाति के लगभग पच्चीस लाख लोग राज्य में रहते हैं. यूपी में कहार और धिवार सहित इन जातियों को निषाद जाति समूह में रखा जाता है. निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद जाति के कई लोग अपने उपनाम में कश्यप लगते हैं.
मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, मेरठ, बागपत, मुरादाबाद, बरेली, आंवला, बदायूं जिले में कश्यप वोटर काफी महत्वपूर्ण हैं. कश्यप समुदाय का वोट किसी एक पार्टी के साथ कभी नहीं रहा है. सपा, बसपा और बीजेपी को वोट करता रहा है, पर मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से बीजेपी के हार्डकोर वोटबैंक बन गया है. यही वजह है कि सपा से लेकर बसपा तक इस कश्यप समाज के वोट को साधने की कवायद में जुटी है.
ठाकुर वोटर
ठाकुर समुदाय भी पश्चिमी यूपी में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय में पाए जाते हैं. पश्चिमी यूपी के तमाम जिलों में अच्छी खासी सियासत ताकत रखते हैं, ये सामान्य जाति में आते हैं. गाजियाबाद, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मुरादाबाद, मेरठ, बरेली, सहित तमाम जिलों में सियासी तौर पर काफी मजबूत माने जाते हैं. ये भले ही अपने दम पर न जीत सके, लेकिन दूसरी जातियों के दम पर विधानसभा और लोकसभा पहुंचते रहे हैं. एक दौर में ठाकुर वोटर आरएलडी का कोर वोटबैंक माना जाता था, लेकिन बाद में सपा के साथ चला गया और मौजूदा समय में बीजेपी के साथ है.
शर्मा-त्यागी
पश्चिमी यूपी की सियासत में ब्राह्मण समुदाय वोटरों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. ब्राह्मण समाज के लोग यहां पर शर्मा और भारद्वाज उपनाम से जाने जाते हैं. मेरठ, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, अलीगढ़, हाथरस में शर्मा वोटर काफी अहम भूमिका में है. ऐसे ही सवर्ण समुदाय में खुद को मानने वाली त्यागी हैं, जिन्हें भूमिहार की श्रेणी में देखा जाता है. गाजियाबाद, बिजनौर, मेरठ, बागपत, नोएडा, बुलंदेशहर, अमरोहा में अच्छी खासी संख्या में है. एक समय कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते थे, लेकिन मौजूदा समय में बीजेपी के साथ हैं. हालांकि, आरएलडी और बसपा ने पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर शर्मा समुदाय के कैंडिडेट उतारे हैं.
वाल्मिकी समाज
पश्चिमी यूपी में दलित वोटर काफी अहम है, जिसमें जाटव समुदाय की भागेदारी भले ही बड़ी संख्या में है, लेकिन वाल्मिकी समुदाय भी कम नहीं है. पश्चिमी यूपी के मेरठ, नोएडा, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, रामपुर, आगरा जिलों में वाल्मिकी समुदाय अहम है. इसके अलावा यूपी के दूसरे अन्य जिलों में भी है, लेकिन यहां पर सियासी तौर पर अहम माने जाते हैं. बीजेपी और संघ ने वाल्मिकी समुदाय के बीच अच्छा खासा काम किया है, जिसके चलते ये बीजेपी के हार्डकोर वोटर हैं. हालांकि, इस बार वाल्मिकी समुदाय के बीच विपक्ष की ओर से सपा और कांग्रेस ने भी बड़ी सेंधमारी करने की जुगत में अपनी सियासी गोटियां बिछाई हैं. भीम आर्मी के चंद्रशेखर भी समाज के बीच काफी काम कर रहे हैं.
बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम, जाट और जाटव के बाद गुर्जर, ठाकुर, सैनी, कश्यप, वाल्मिकी मतदाताओं की संख्या अधिक है. इस इलाके में ब्राह्मण, त्यागी और ठाकुर बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. बीजेपी से लेकर सपा-आरएलडी तक पश्चिम यूपी में गुर्जर ही नहीं बल्कि तमाम छोटी-छोटी जातियों को साधने में जुटे हैं. ऐसे में जो भी पार्टी कश्यप, सैनी, त्यागी, गुर्जर, वैश्य, जैसी जातियों को साधने में सफल रहती है तो 2022 के चुनावी जंग को फतह कर सकती है.