scorecardresearch
 

मुजफ्फरनगर में No मुस्लिम, मेरठ में चार टिकट... SP-RLD की कैंडिडेट लिस्ट में 'दंगों का भूत'

पश्चिमी यूपी को जाटलैंड कहा जाता है, जहां सपा-आरएलडी मिलकर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही हैं. मुजफ्फरनगर दंगे के सियासी तपिश को खत्म करने और बीजेपी के ध्रुवीकरण के दांव को फेल करने के लिए मुजफ्फरनगर में एक भी सीट पर गठबंधन ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं दिया, लेकिन मेरठ में चार मुस्लिम उम्मीदवार के देने से जाट वोटर नाराज हो गया है. ऐसे में जयंत चौधरी कैसे डैमेज कन्ट्रोल करते हैं?

Advertisement
X
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पश्चिमी यूपी के 11 जिलों में पहले चरण में चुनाव
  • सपा-आरएलडी गठबंधन ने उतारे अपने कैंडिडेट
  • सिवालखास में मुस्लिम प्रत्याशी से जाट नाराज

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का आगाज पश्चिमी यूपी से हो रहा है, जिसे जाटलैंड के नाम भी जाना जाता है. मुजफ्फरनगर दंगे के चलते बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पश्चिमी यूपी में क्लीन स्वीप किया था और 90 फीसदी सीटें अपने नाम की थी. बीजेपी के सियासी समीकरण को तोड़ने के लिए सपा-आरएलडी साथ आए हैं, लेकिन जाट-मुस्लिम के बीच सियासी कॉम्बिनेशन नहीं बन पा रहा है. 

Advertisement

पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बहुल मुजफ्फरनगर जिले में किसी भी सीट पर सपा-आरएलडी गठबंधन ने कोई मुस्लिम कैंडिडेट न देकर बीजेपी के ध्रुवीकरण के दांव को फेल करने की रणनीति को अपनाया. लेकिन, मेरठ जिले की चार सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से गठबंधन की सारी कोशिशों पर पानी फिरता नजर आ रहा है. जाट महासभा ने आरएलडी को चुनौती दे दी है, जो जयंत चौधरी के लिए चिंता बढ़ा सकती है. 

2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते जाट और मुस्लिम के बीच दूरियां पैदा हो गई थी, जिसका सियासी खामियाजा रालोद से लेकर सपा और बसपा को भुगतना पड़ा. बीजेपी जिले की सभी छह सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनवा में चौधरी अजित सिंह भी बीजेपी के हाथों जीत नहीं सके. जाट वोटों के खिसकने से आरएलडी के सियासी भविष्य पर संकट गहरा गया था. 

Advertisement

कृषि कानून के खिलाफ खड़े हुए किसान आंदोलन से रालोद को सियासी संजीवनी मिली तो जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाकर जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने का दांव पश्चिमी यूपी में चल दिया है. ऐसे में गठबंधन ने मुजफ्फरनगर जिले की 6 सीटों में से किसी भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी न उतारकर बीजेपी के खिलाफ बड़ा दांव चला है. 

मुसलमानों को आश्चर्यचकित किया जब जिले की मीरापुर विधानसभा सीट पर पिछली बार बहुत मामूली वोटों से हारने वाले लियाकत अली को टिकट नहीं मिला. इतना ही नहीं बसपा छोड़कर सपा में आने वाले कादिर राणा को भी किसी सीट पर प्रत्याशी नहीं बनाया गया है. मुस्लिमों के बीच सपा-आरएलडी के कैंडिडेट को लेकर नाराजगी भी दिखी, लेकिन वक्त की नजाकत को समझते हुए शांत हो गए. बीजेपी के खिलाफ गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं. वहीं. कुछ सीटों पर बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेलने से जरूर गठबंधन के प्रत्याशियों की चिंता बढ़ गई है.  

सपा-आरएलडी ने मुजफ्फरनगर में भले ही एक भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा, लेकिन मेरठ जिले की सात में चार सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट गठबंधन ने दे दिए हैं. मेरठ शहर विधानसभा से सपा विधायक रफीक अंसारी, किठौर से पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर और दक्षिण विधानसभा से आदिल को सपा ने टिकट दिया है जबकि आरएलडी ने सिवालखास सीट से गुलाम मोहम्मद को कैंडिडेट बनाया है. 

Advertisement

मेरठ की बाकी सीटों पर गठबंधन ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं. हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से पूर्व विधायक योगेश वर्मा, सरधना विधानसभा सीट से अतुल प्रधान और कैंट सीट पर आरएलडी ने मनीषा अहलावत को प्रत्याशी बनाया है. मेरठ कैंट में बाहरी प्रत्याशी दिया तो सिवालखास में मुस्लिम प्रत्याशी दिए जाने से रालोद में विरोध के सुर तेज हो गए हैं. सिवालखास सीट पर जाट समुदाय के चुनाव लड़ने की संभावना नजर आ रही थी, लेकिन सपा नेता को जयंत ने अपना सिंबल देकर उतार दिया है. 

सिवालखास विधानसभा चौधरी परिवार की विरासत की सीट है. यह सीट मेरठ जिले के अंतर्गत आती है. बागपत से सटी होने के कारण यह लोकसभा क्षेत्र बागपत लगता हैय इसी सीट से चौधरी चरण सिंह 3 बार सांसद रहे जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह 6 बार सांसद चुने गए. आरएलडी समर्थक सिवालखास सीट पर जाट प्रत्याशी की मांग कर रहे थे, लेकिन मुस्लिम प्रत्याशी के उतारे जाने से विरोध हो रहा है. सिवालखास सीट को जाट बिरादरी अपने स्वाभिमान की लड़ाई मान रही है. 

दरअसल, 2013 के दंगों के बाद जाट और मुस्लिमों में बिखराव हुआ. इसके बाद दोनों ही बिरादरी एक साथ नहीं आईं. जाट महासंघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष रोहित जाखड़ ने कहा है कि जाट महासंघ मेरठ जिले चुनाव का बहिष्कार करेगा. वह गठबंधन के प्रत्याशी को लेकर बिल्कुल सहमत नहीं है. किसान बिरादरी में भी अब आक्रोश पनप रहा है कि वेस्ट यूपी में जिस बिरादरी ने किसान आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आंदोलन को आगे बढ़ाया. ऐसे में अब जाटों का आक्रोश जयंत चौधरी अखिलेश यादव के लिए भी चुनाव में मुसीबत बन सकता है. 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement