उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 58 सीटों के लिए नामांकन का दौर जारी है तो दूसरे फेस के कैंडिडेट के नाम भी सामने आने लगे हैं. पश्चिमी यूपी के कई दिग्गज नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संकट गहराता नजर आ रहा है, जो पिछले तीन दशक से पश्चिमी यूपी के मजबूत चेहरे माने जाते थे. इस बार के चुनाव में ऐसे नेताओं को प्रमुख पार्टियों से टिकट के भी लाले पड़ गए हैं. कई नेताओं का राजनीतिक पाला बदलने का दांव भी काम नहीं आ सका.
कादिर राणा
मुजफ्फरनगर में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले पूर्व सांसद कादिर राणा पिछले तीन दशक से सियासत कर रहे हैं. सभासद से सांसद तक का राजनीति सफर करने वाले कादिर राणा सपा से एमएलसी, आरएलडी से विधायक और बसपा से सांसद रह चुके हैं. लोहे के कारोबार से कादिर राणा ने दौलत कमाई तो जिले के मुस्लिम समीकरण के दम पर राजनीतिक पहचान स्थापित की. सूबे के बदले सियासी समीकरण में कादिर राणा का बसपा के हाथी से उतरकर सपा की साइकिल पर सवारी करने का दांव सफल नहीं रहा.
सपा-आरएलडी गठबंधन ने कादिर राणा को किसी भी सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया है. इतना ही नहीं, उनके परिवार से भी किसी सदस्य को टिकट नहीं मिल सका. जिसके चलते तीस साल में पहली बार होगा कि वो चुनावी मैदान में नहीं है. 2017 के चुनाव में उन्होंने बसपा के टिकट पर अपनी पत्नी सईदा बेगम को बुढ़ाना विधानसभा सीट से लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं सकी थी. इस चुनाव में मुस्लिमों के सपा के पीछे लामबंद हो जाने से उन्होंने बसपा छोड़कर अखिलेश यादव का दामन थाम लिया, लेकिन न ही उन्हें और न ही उनके परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट मिला है.
इमरान मसूद
सहारनपुर जिले के दिग्गज नेता और मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले पूर्व विधायक इमरान मसूद के सामने भी सियासी संकट गहरा गया है. कांग्रेस छोड़कर इमरान मसूद ने सपा का दामन थामा, लेकिन अखिलेश यादव ने न तो उन्हें टिकट दिया और न ही उनके साथ पार्टी में आए देहात सीट से विधायक मसूद अख्तर को प्रत्याशी बनाया. हालांकि, कांग्रेस में रहते हुए इमरान मसूद गांधी परिवार के करीबी नेताओं में गिने जाते थे. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नजदीकी नेता माने जाते थे.
इमरान मसूद पिछले 20 सालों से सहारनपुर जिले में ही नहीं बल्कि पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सियासत का बड़ा चेहरा माने जाते हैं. इसके बावजूद सपा ने जिले की किसी भी सीट से उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया, जिसके चलते अब वो नए सियासी ठिकाने की तलाश में जुट गए हैं. हालांकि, बसपा ने भी जिले की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जिसके चलते अब उनके सामने अपने सियासी भविष्य को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.
हाजी याकूब कुरैशी
मेरठ की सियासत में हाजी याकूब एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं और मुस्लिम नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. पिछले ढाई दशक से याकूब कुरैशी चुनावी किस्मत आजमाते आ रहे हैं और अपनी सियासी रुतबे के दम पर निर्दलीय विधायक भी बन चुके हैं और मुलायम सिंह सरकार में मंत्री भी रहे हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में याकूब कुरैशी और उनके बेटे इमरान कुरैशी दोनों ने बसपा के टिकट पर किस्मत आजमाई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में याकूब कुरैशी मेरठ सीट पर बहुत मामूली वोटों से हार गए थे.
2022 के चुनाव में बसपा ने उनके बेटे इमरान कुरैशी को मेरठ दक्षिण सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन चुनावी घोषणा होने से एक दिन पहले ही मायावती ने उनका टिकट काट दिया. ऐसे में अब याकूब कुरैशी के सामने सियासी संकट गहरा गया है, क्योंकि जिले के सपा नेता शाहिद मंजूर और अतुल प्रधान उनके धुर विरोधी माने जाते हैं. ऐसे में सपा में उनकी एंट्री की राह में रोड़ बने हैं और आरएलडी ने अपनी सभी सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. ऐसे में अब याकूब कुरैशी के बेटे के चुनाव लड़ने पर संकट खड़ा हो गया है.
हाजी शाहिद अखलाक
मेरठ जिले में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले हाजी शाहिद अखलाक और उनके परिवार से चार दशक के सियासी इतिहास में पहली बार कोई सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है. शाहिद अखलाक खुद मेयर से लेकर सांसद तक रह चुके हैं तो उनके पिता अखलाक कुरैशी मेयर से लेकर विधायक तक रहे हैं. शाहिद अखलाक बसपा और सपा दोनों ही पार्टियों में रहे हैं और दोनों ही पार्टी से जीते हैं. पिछले महीने शाहिद अखलाक ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की थी, जिसके बाद बसपा छोड़कर सपा में शामिल होने की चर्चाएं तेज हो गई थी. लेकिन, उनकी एंट्री नहीं हो सकी है, जिसकी वजह से उनके परिवार से कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है.
गुड्डू पंडित
बुलंदशहर के दिग्गज और बाहुबली नेता भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा का सपा की साइकिल पर सवारी करने का दांव सफल नहीं रहा. सपा ने न तो गुड्डू पंडित को किसी सीट से टिकट दिया और न ही मुकेश शर्मा को प्रत्याशी बनाया. गुड्डू पंडित ने हाल ही में दिल्ली में सपा दामन थामा था. वो बसपा और सपा दोनों ही पार्टी से विधायक रह चुके हैं जबकि उनके भाई मुकेश शर्मा भी विधायक रहे चुके हैं. गुड्डू पंडित तो अलीगढ़ और हाथरस सीट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. बुलंदशहर की सियासत में अच्छी पकड़ रखते हैं, लेकिन इस बार उन्हें किसी भी पार्टी से प्रत्याशी नहीं बन सके.
अब्दुल राव वारिस
शामली जिले का मुस्लिम चेहरा पूर्व विधायक अब्दुल राव वारिस को इस बार सपा ने टिकट नहीं दिया है. राव वारिस शामली जिले की थानाभवन सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. 2007 में विधायक बने थे. अब्दुल राव वारिस मुस्लिम राजपूत हैं और थानाभवन सीट पर सपा के दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन यह सीट आरएलडी के खाते में जाने से उनका सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है.