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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को झटका देकर सपा में दामन थामने वाले ओबीसी के दिग्गज नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने पडरौना सीट के बजाय कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से किस्मत आजमाने उतरे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ दो अन्य कैबिनेट मंत्री और करीब आधा दर्जन से ज्यादा विधायकों ने बीजेपी छोड़कर सपा में एंट्री की थी. स्वामी प्रसाद के सियासी कद और ओबीसी समुदाय पर पकड़ को देखते हुए अखिलेश यादव ने उन्हें सपा के स्टार प्रचारक की फेहरिश्त में शामिल किया है.
स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 विधानसभा चुनाव से पहले बसपा से बीजेपी में शामिल हुए थे. लेकिन खास बात ये है कि उनका बीजेपी से सिर्फ 5 साल में ही मोहभंग हो गया और उन्होंने सपा का दामन थाम लिया. साथ ही उनके साथ आए नेताओं को सपा ने चुनावी मैदान में भी उतारा है, लेकिन स्वामी प्रसाद के बेटे अशोक मौर्य को प्रत्याशी नहीं बनाया गया है.
कौन हैं स्वामी प्रसाद मौर्य?
स्वामी प्रसाद मौर्य का जन्म दो जनवरी 1954 को प्रतापगढ़ जिले के चकवड़ गांव (कुंडा) हुआ था, लेकिन अपनी सियासी कर्मभूमि के लिए रायबरेली के ऊंचाहार को चुना. उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक और एमए की डिग्री की हासिल की है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1980 में राजनीति में सक्रिय रूप से कदम रखा. वह इलाहाबाद युवा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य बने और जून 1981 से सन 1989 तक महामंत्री पद पर रहे.
रायबरेली में स्वामी की मिली पहचान
स्वामी प्रसाद मौर्य ने अस्सी के दशक में चुनावी किस्मत आजमाने के लिए डलमऊ विधानसभा सीट को चुना, जिसे वर्तमान में ऊंचाहार सीट से पहचानी जाती है. स्वामी प्रसाद का बचपन गरीबी में गुजरा है. स्वामी प्रसाद मौर्य को ऊंचाहार में सियासी ठिकाना उनके ही मौर्य जाति के रामनाथ सेठ ने दिया. स्वामी प्रसाद को चुनाव लड़ने के लिए रामनाथ सेठ आर्थिक मदद के साथ-साथ सामाजिक तौर पर भी मौर्य वोटों को जोड़ने के लिए काफी मशक्कत की थी.
स्वामी प्रसाद ऊंचाहार में रामनाथ के घर पर रहकर चुनाव लड़ा करते थे. लोकदल से लेकर जनता दल से कई बार चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. 1991 से 1995 तक जनता दल में रहे, लेकिन मायावती के पहली बार सीएम बनते ही बसपा का दामन थाम लिया. 1996 में स्वामी प्रसाद मौर्य पहली बार डलमऊ सीट से विधायक बने और दोबारा इसी सीट से 2002 में जीतकर विधानसभा पहुंचे. इस बीच मायावती सरकार में मंत्री भी बने, लेकिन 2007 में बसपा की लहर में उन्हें इस सीट पर हार का मूंह देखना पड़ा.
पडरौना को बनाया कर्मभूमि
स्वामी प्रसाद मौर्य को मायावती ने हारने के बाद भी अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया. इसके बाद उन्होंने 2009 में कुशीनगर की पडरौना सीट से उपचुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे, जिसके बाद से लगातार तीन बार इसी सीट से जीत किया. ऐसे में उन्होंने अपनी ऊंचाहार सीट को अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य (अशोक मौर्य) को सौंप दी. हालांकि, दो चुनाव से इस सीट से उत्कृष्ट मौर्य लड़ रहे हैं, लेकिन मामूली वोटों से हार जा रहे हैं.
साल 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा छोड़ा तो मुलायम सिंह, शिवपाल यादव और आजम खान ने उन्हें सपा में आने का खुला न्योता दिया था. हालांकि, उन्होंने बीजेपी में शामिल हो गए है, इसके अलावा साल 2003 में 2012 से 17 तक सपा की सरकार रही तो स्वामी प्रसाद बसपा के विधायक दल के नेता थे. प्रतिपक्ष के नेता होने के साथ ही अखिलेश और मुलायम के साथ उनके रिश्ते बने रहे हैं. इसके बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य ने साल 2009 में अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा था.
स्वामी प्रसाद मौर्य पिछड़ा वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं. वे मौर्य समाज से आते हैं. उत्तर प्रदेश में मौर्य जाति का 6 फीसदी वोट हैं. ऐसे में यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य को मौर्य समाज का कद्दावर नेता माना जाता है. बसपा में रहते हुए उन्होंने मौर्य समाज के बीच अच्छी पैठ बनाई है, जिसके चलते पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक उनकी पकड़ मानी जाती है. इसी दम पर वो सियासी सौदेबाजी भी करते रहते हैं.
बीजेपी में शामिल होने से पहले बनाना चाहते थे अपनी पार्टी
स्वामी प्रसाद मौर्य पांच साल पहले बसपा छोड़ने के बाद खुद की एक पार्टी बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश का भ्रमण भी किया था. हालांकि, बाद में उन्हें एहसास हो गया कि उत्तर प्रदेश में उनकी मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी की जाति के सिर्फ 6 फीसदी ही वोट हैं.ऐसे में उन्होंने अपनी पार्टी बनाने का ख्वाब त्यागकर बीजेपी का दामन ही थामना ठीक समझा. स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी के टिकट पर जीते तो योगी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने, बसपा की तरह सियासी कद हासिल नहीं कर सके. ऐसे में 2022 के चुनाव ऐलान के साथ ही उन्होंने बीजेपी छोड़ सपा में शामिल हो गए हैं.
बेटी सांसद, बेटा-बहू भी राजनीति में
स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से बीजेपी सांसद हैं. उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में सपा के धर्मेंद्र यादव को हराया था. इतना ही नहीं स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य रायबरेली की ऊंचाहार सीट से दोबार से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक जीत नहीं मिल सकी. हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य की बहू ऊंचाहार के गौरा ब्लाक से ब्लाक प्रमुख चुनी गई है. इतना ही नहीं स्वामी प्रसाद मौर्य का सियासी कद मौर्य समाज के बीच काफी बड़ा माना जाता है. ऐसे में देखना है कि स्वामी प्रसाद अपने समाज का मौर्य वोट को सपा में कितना दिला पाते हैं?