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UP ELECTIONS 2022: यूपी में लावारिस पशुओं का आतंक क्यों एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है?

UP elections 2022: यूपी सरकार बनने के बाद 2017 में योगी सरकार का सबसे बड़ा वादा था कि वह राज्य में लावारिस पशुओं की बेहतर देखरेख के लिए गौशालाएं बनाएगी और बेहतर प्रबंधन करेगी. सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और अब जब फिर से उत्तर प्रदेश नई सरकार चुनने के लिए तैयार है तो 5 साल पहले किए गए वो वादे जमीन पर कितने कारगर हुए हैं? क्यों उत्तर प्रदेश में पशुओं का आतंक एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है?

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यूपी में 3 साल से आवारा पशुओं का उत्पात बढ़ गया है. (सांकेतिक तस्वीर)
यूपी में 3 साल से आवारा पशुओं का उत्पात बढ़ गया है. (सांकेतिक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अखिलेश यादव लावारिस पशुओं का मुद्दा उठा रहे हैं
  • किसानों की फसलें उजाड़ रहे हैं लावारिस जानवर
  • गौशालाओं में फंड गबन का आरोप

यूपी सरकार बनने के बाद 2017 में योगी सरकार का सबसे बड़ा वादा था कि वह राज्य में लावारिस पशुओं की बेहतर देखरेख के लिए गौशालाएं बनाएगी और बेहतर प्रबंधन करेगी. सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और अब जब फिर से उत्तर प्रदेश नई सरकार चुनने के लिए तैयार है तो 5 साल पहले किए गए वो वादे जमीन पर कितने कारगर हुए हैं? क्यों उत्तर प्रदेश में लावारिस पशुओं का आतंक एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है? लावारिस पशुओं ने उत्तर प्रदेश के किसानों का क्या हाल किया है? आज इस विशेष रिपोर्ट में समझने की कोशिश करेंगे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कई बार इन पशुओं का मुद्दा उठाया है. 

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सबसे पहले आपको जिला सुल्तानपुर ले चलते हैं. शहर से बाहर ग्रामीण इलाकों में तड़के सुबह कड़कड़ाती ठंड में किसानों का हुजूम खेतों में दौड़ता दिखाई पड़ेगा. आगे-आगे पशुओं की टोली है और पीछे पीछे लाठी डंडे लेकर किसान खेतों में दौड़ रहे हैं. इन किसानों के लिए यह हर दिन की दिनचर्या है. न जाने कहां से आवारा पशुओं का रेला आता है और खेतों में खड़ी फसल चर जाता है. खून पसीने से सींंची और लागत से खड़ी की हुई फसल बचाने के लिए किसान मौसम की परवाह किए बिना सुबह शाम जानवरों के पीछे भागते रहते हैं. 

गांव के कई इलाकों में गौशाला में भी हैं जहां जानवरों को टैग लगाकर रखा गया है, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि कई बार जानवर वहां से भी निकल आते हैं और खेतों को बर्बाद कर देते हैं. गेहूं की खड़ी फसल कई इलाकों में आवारा पशु चरकर बर्बाद कर चुके हैं. किसानों के सामने यह समस्या पिछले कई सालों से है. 

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गौशाला में फंड का गबन

सुल्तानपुर के रहने वाले वीरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि अब यह हर दिन की आम बात हो गई है और पिछले 3-4 सालों से लावारिस पशुओं ने तांडव मचाया हुआ है जिसके चलते किसानों को कड़कती ठंड में सुबह और रात के अंधेरे में भी खेतों में आकर रखवाली करनी पड़ती है. वीरेंद्र प्रताप कहते हैं कि आसपास गौशाला में भी हैं, लेकिन वहां से भी जानवरों को छोड़ दिया जाता है, क्योंकि गौशाला वाले सरकारी फंड का गबन कर चुके हैं और जानवरों को खेतों में फसल खाने के लिए खुला छोड़ देते हैं. 

दिन-रात बैठने पर मजबूर किसान

खेतों में खड़ी फसल बनाने के लिए पारंपरिक मचान जगह-जगह तैयार किए गए हैं जहां किसान दिन-रात बैठने पर मजबूर हैं ताकि उनके खेत जानवरों के प्रकोप से बच सकें. और तो और किसानों ने फसल को बचाने के लिए खेतों के चारों ओर कटीले तारों की बाड़ लगानी शुरू कर दी है, लेकिन यह एक महंगा निवेश है जो गरीब किसानों के लिए संभव नहीं है. सक्षम किसान ही खेतों के किनारे बाउंड्री लगा रहे हैं जिनके पास कुछ नहीं हैं, वह कहां जाएं? ‌इस इलाके में एक गौशाला भी पाई गई जहां कई जानवर रखे गए हैं जिनके कानों पर टैग भी लगाया गया है.

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क्या कहते हैं लोग

गौशाला की देखरेख करने वाले आशीष दुबे का कहना है, हमारे यहां जितने जानवर हैं वो यहीं रहते हैं और कभी बाहर नहीं जाते, लेकिन फसलों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि वह दूसरों के जानवर हैं जो कहीं बाहर से आते हैं. 

गौशाला प्रबंधक की बातों को गांव वाले ही दरकिनार कर देते हैं और कहते हैं कि खेतों में फसल नुकसान करने वाले कई जानवर गौशाला के हैं, क्योंकि उनके कान में भी वैसा ही टैग लगा हुआ है. उनका कहना है कि यह जानवर लोगों ने छोड़ दिए हैं क्योंकि वह इन का भरण-पोषण नहीं कर सकते और अब वह आवारा पशु किसानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. 

3 साल में लावारिस पशुओं का उत्पात बढ़ा 

गांव के स्थानीय निवासी प्रदीप मौर्या बताते हैं कि पिछले 3 साल से ज्यादा समय हो गया है जब लावारिस पशुओं का उत्पात बढ़ गया है जो सुबह शाम फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और कई बार उनके चलते राष्ट्रीय राजमार्ग पर हादसे भी होते हैं. प्रदीप कहते हैं कि इसको लेकर के कई बार शिकायत भी की गईं, लेकिन उस शिकायत पर सुनवाई नहीं हुई और अब किसानों के लिए वह बड़ा मुद्दा है क्योंकि अगर यही हाल रहा तो इसका असर चुनावों में भी देखने को मिलेगा. 

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गांव के युवा शिवम और सत्यम कहते हैं कि अक्सर उन्हें खेतों में बैठकर फसल की रखवाली करनी पड़ती है और सुबह शाम जानवरों को लगाना पड़ता है वरना वह सारी फसल चट कर जाते हैं. वीरेंद्र का कहना है कि आवारा पशुओं से निपटने के लिए सरकारी हेल्पलाइन नंबर भी है लेकिन शिकायत करने के बाद वहां से जवाब आता है कि समाधान हो गया है, लेकिन यहां समस्या जस की तस बनी हुई है. सबकी शिकायत यही है कि सुनवाई नहीं होती. 

गोरखपुर भी में यही आलम

सिर्फ सुल्तानपुर ही नहीं, यही आलम गोरखपुर भी में देखने को मिलता है. योगी आदित्यनाथ के इलाके में शहर से बाहर राष्ट्रीय राजमार्ग की ओर अगर आप नेपाल सीमा की ओर बढ़ते हैं तो सड़कों पर लावारिस पशु बैठे या सड़क पार करते दिखाई दे जाएंगे. ऐसे राजमार्ग पर अक्सर हादसों को न्योता मिल जाता है. जगह-जगह लावारिस पशु बैठे दिखाई पड़ेंगे जिनका न कोई मालिक है जिनके लिए ना कोई सरकार है. 

सिद्धार्थनगर के किसान भी परेशान

एक नजर सीमांत जिले सिद्धार्थनगर की ओर भी डालते हैं. कपिलवस्तु से महज कुछ किलोमीटर दूर बर्डपुर इलाके में लावारिस पशु सड़क पार करते हुए खेत चरते दिखाई दे जाएंगे. गांव के लोग जानवरों के पीछे भागते दिखाई देंगे. परशुराम मिश्रा बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में यह तांडव इस कदर बढ़ गया है कि स्थानीय लोगों का जीना मुश्किल हो गया है और तो और सबसे ज्यादा दिक्कत सड़क हादसों को लेकर होने लगी है जिस में कभी इंसान मरते हैं तो कभी यही लावारिस पशु, जिनके बारे में यह लोग स्थानीय विधायक से भी शिकायत कर चुके हैं. 

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बर्डपुर निवासी संदीप कहते हैं कि कई बार शिकायत की गई है, लेकिन लावारिस पशुओं को लेकर के कोई मदद नहीं करता. उल्टे यह जानवर सुबह शाम आकर पूरी फसल साफ कर जाते हैं. संदीप कहते हैं कि मौसम चाहे कोई भी हो, सुबह शाम लोगों को खेतों में अपनी फसलों की रखवाली करनी पड़ रही है. 

किसानों की नाराजगी

लावारिस पशुओं का आतंक पश्चिम उत्तर प्रदेश अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश इलाकों में ज्यादा देखने को मिलेगा. खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के सीमांत जिलों में स्थिति ज्यादा भीषण है. पशु जब तक धन होते हैं लोग उन्हें घरों में पालते हैं, लेकिन जब गाय दूध देने लायक ना रहे और बैल किसी काम के ना हों, तो लोग उन्हें आवारा छोड़ देते हैं. सरकार की ओर से व्यवस्थाओं के दावे तो किए गए हैं, लेकिन सड़कों पर घूमते आवारा पशु उन व्यवस्थाओं की पोल खोल रहे हैं. ऐसा ना हो कि यह मुद्दा किसानों की नाराजगी बनकर चुनावों में दिखाई दे.

 

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