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Zaidpur Assembly Seat: इस VVIP सीट पर कांग्रेस का था दबदबा, अभी SP के हैं विधायक

जैदपुर विधानसभा सीट: मसौली और सिद्धौर विधानसभा के परिसीमन के बाद जैदपुर विधानसभा सीट बनी है. छह थानो वाली यह जैदपुर विधानसभा, कभी काले सोने यानी अफीम की खेती के लिये बदनाम था. इसे तस्करी का मिनी दुबई कहा जाता था.

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Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Zaidpur Assembly Seat)
Uttar Pradesh Assembly Election 2022( Zaidpur Assembly Seat)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीबीपुर में पीलिया की बीमारी खत्म करने का कुआं
  • मंजिठा में नाग देवता का प्राचीन मन्दिर
  • यहां के कई दिग्गज नेता केंद्र और प्रदेश सरकारों में मंत्री बने

जैदपुर विधानसभा पहले मसौली विधानसभा के नाम से जानी जाती थी. 2011में हुए परिसीमन के बाद ये जैदपुर (सुरक्षित) विधानसभा बन गयी. इस विधानसभा में कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था. यहां से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व विधायक जामिल उर रहमान किदवई, पूर्व केंद्रीय मंत्री रफी अहमद किदवई, बिहार, बंगाल, हरियाणा समेत कई राज्यों के राज्यपाल (Governor) रहे एखलाकुर रहमान किदवई (AR Kidwai), हरदिल अज़ीज़ ज़मीनी नेता स्व. इकरामउर रहमान किदवई, चारो हाउस में रहकर ज़िले का प्रतिनिधित्व कर चुकीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना किदवई और कई बार यूपी और केंद्र में मंत्री रहे सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्व.बेनी प्रसाद वर्मा की कर्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है. इसलिए इस सीट को वीआईपी सीट भी कहा जाता है.

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मसौली और सिद्धौर विधानसभा के परिसीमन के बाद जैदपुर विधानसभा सीट बनी है. छह थानो वाली यह जैदपुर विधानसभा, कभी काले सोने यानी अफीम की खेती के लिये बदनाम था. इसे तस्करी का मिनी दुबई कहा जाता था. लेकिन वक़्त बदला, हालात बदले और इस काले धंधे में गिरावट आयी. अब ये इलाका इंटरनेशनल स्टाइल के दुपट्टे यानी स्टॉल बनाने के साथ-साथ  उपजाऊ और उन्नतशील खेती के लिए जाना जाता है. यही नहीं, यहां हज़ारों हेक्टयर में आम के बाग़ान भी लगे हैं. जिनकी मांग देश-विदेश के बाजारों तक है.

वैसे प्रदेश की सियासत में  ये विधानसभा वीआईपी मानी जाती है. क्योंकि यहां कई दिग्गज नेता केंद्र और प्रदेश सरकारों में ऊंचे पदों पर आसीन रहे हैं. यहां से कई बड़े सियासतदान भी निकले हैं. जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर की सियासत में बड़े मुकाम हासिल किये हैं. कभी मसौली विधानसभा में सिर्फ कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था. यही वजह है कि यहां पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर राहुल और प्रियंका गांधी तक आ चुके हैं.

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यह विधानसभा धार्मिक संस्कृति की अलग पहचान लिए हुए है. इस क्षेत्र में बीबीपुर में पीलिया की बीमारी खत्म करने का कुआं और मंदिर मौजूद है. मंजिठा में नाग देवता का प्राचीन मन्दिर है. बासा शरीफ में सैयद शाह अब्दुल रज्जाक की प्रसिद्ध दरगाह, ज़ैदपुर में बड़ी और छोटी सरकार के तालुकेदारों द्वारा बनवायी हुए आलीशान इमारतें, हवेलियां और इमामबाड़े आज भी मौजूद हैं. यहां दुर्गा पूजा, होली और मोहर्रम बड़े स्तर पर मनाया जाता है. यही नहीं मसौली और बड़ागांव में किदवई परिवारों की हनक-धमक आज भी कायम है. इनकी खूबसूरत हवेलियां और आम के बाग़, इस क्षेत्र की सुन्दरता में चार चांद लगा रहे हैं. अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में यह क्षेत्र क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था. इस विधानसभा की सीमा राजधानी लखनऊ, गोंडा, अयोध्या और बहराइच से जुड़ी हुई हैं.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि
मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता वाली इस सीट पर हमेशा से काफी रोचक लड़ाई रही है. एक दौर में यहां के ज़मीनी नेता स्व. बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र राकेश वर्मा और फरीद महफूज किदवई की सियासती जंग काफी रोचक रही थी. दोनों ने चुनाव में एक दूसरे को पटखनी जरूर दी है. यदि एक चुनाव में फरीद महफूज किदवई जीते तो दूसरे में राकेश वर्मा जीते. वरिष्ठ पत्रकार हशमत उल्लाह और सैयद रिज़वान ने बताया कि आज़ादी के बाद मसौली में कांग्रेस का दबदबा रहा. यहां एक के बाद एक कांग्रेस के विधायक बनते चले गए. 1967 में जामिल उर रहमान किदवई एमएलए बने. 1969 में मुस्तफ़ा कामिल किदवई,1974 में मोहसिना किदवई एमएलए बनी, बाद में प्रदेश और केंद्र सरकार में कई बार मंत्री भी रहीं.

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1977 में पहली बार बेनी प्रसाद वर्मा को लोकदल से टिकट मिला. टिकट मिलने के बाद इलाके के ज़मीनी और कद्दावर नेता इकराम उर रहमान किदवई की बडेगांव वाली हवेली पर समर्थन हासिल के लिए तीन दिनों तक डेरा डाले रहे. तीन दिन बाद जब इकराम मियां मिले तो उन्होंने बेनी को समर्थन और आशीर्वाद दिया. जिसकी वजह से 1977 में पहली बार वह विधायक बने.

1980 में रिज़वान उर रहमान किदवई ने बेनी प्रसाद वर्मा को हराया. 1985 में बेनी प्रसाद वर्मा दोबारा विधायक बने और मंत्री बने. 

बाद में मुलायम सिंह ने इन्हें कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसदी चुनाव लड़ने को कहा. जहां से बेनी के जीतने के बाद ये सीट खाली हुई तो फरीद महफूज किदवई एमएलए बने. फिर बेनी बाबू ने अपनी सियासती गोटियां बिछाते हुए राकेश वर्मा को विधायकी जीता कर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनवा दिया था.

परिसीमन के बाद 2012 में बनी ज़ैदपुर सुरक्षित हो गयी. इस विधानसभा से सपा से राम गोपाल रावत जीते तो 2017 में भाजपा से उपेंद्र रावत चुनाव जीते. उपेंद्र के लोकसभा सदस्य बनने के बाद 2019 में यहां उपचुनाव हुआ जिसमें सपा के गौरव रावत ने जीत हासिल की.

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2017 का जनादेश

2017 में हुए ज़ैदपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा के उपेंद्र रावत ने कांग्रेस के तनुज पुनिया को लगभग 28 हज़ार वोटों से हराया. इस चुनाव में सपा-कांग्रेस के समझौते के तहत ये सीट कांग्रेस के खाते में आई थी. फिर 2019 में हुए उपचुनाव में सपा ने गौरव रावत को टिकट दिया और जिसमें सपा ने भाजपा प्रत्याशी को हराते हुए जीत हासिल की थी.

सामाजिक ताना-बाना
2021 के आंकड़ों के अनुसार ज़ैदपुर विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3,88,068 हैं. जिसमें 2,05,061 पुरुष हैं, जबकि 1,82,991 महिलाएं हैं. जातीय समीकरण के लिहाज से देंखे तो
यह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. यहां की 25% आबादी मुस्लिम समुदाय से है. वहीं पासी-दलित-20% ओबीसी 15% व अन्य सभी बिरादरी मिलाकर 40% हैं.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड

2017 चुनाव में भाजपा की लहर में बीजेपी से उपेंद्र रावत चुनाव जीत गए थे. फिर बीजेपी ने इन्हें 2019 में हुए लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया और ये लोकसभा सांसद बने. ज़ैदपुर विधानसभा में 2019 में हुए उपचुनाव में सपा के गौरव रावत ने जीत हासिल की. ये 38 वर्षीय युवा हैं. बीए पास हैं. सपा में अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव रहे. अभी राजनीतिक अनुभव थोड़ा कम है. विधायक निधि को क्षेत्र के विकास में खर्च कर चुके हैं. MLA गौरव के अनुसार विपक्ष का विधायक होने के नाते सरकार ने उनके प्रस्तावों को पास नहीं किया है. एमएलए गौरव रावत की पत्नी और बच्चे लखनऊ में रहते हैं. इनके पास फॉर्च्यूनर समेत कई गाड़ियां हैं.

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हालांकि ज़ैदपुर क्षेत्र की अधिकतर जनता विकास को नकार रही है. लोग गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाएं सही न मिलने से परेशान हैं, तो वहीं किसान महंगाई और फसलों के सही दाम नहीं मिलने, खरीद केंद्रों पर बिचौलिए की दलाली से काफी नाराज हैं. यही नहीं पुलिस पर आये दिन यहां निर्दोष लोगों को मादक पदार्थो की तस्करी में फंसा कर जेल भेजने का भी आरोप है. मुख्यालय से मात्र 18 किलोमीटर दूर होने से यहां की ज़मीनें भी काफी महंगी हैं और भू-माफियाओं और बड़े नेताओं की नज़र यहां के किसानों की ज़मीनों पर लगी रहती हैं. 

विविध
जैदपुर विधानसभा बनने के बाद समाजवादी पार्टी ने 2 बार और भाजपा ने एक बार जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस ने अपनी खोई हुई सीट वापिस पाने के लिए इस विधानसभा के वोटरों पर मजबूत पकड़ रखने वाले छत्तीसगढ़ के प्रभारी व पूर्व सांसद पीएल पुनिया को ज़िम्मेदारी सौंपी है. पुनिया ने अपने पुत्र तनुज पुनिया को सियासती अखाड़े में उतारा है. पिछली बार सपा-कांग्रेस गठबंधन की अंदरूनी कलह के चलते जीती हुई सीट कांग्रेस को हारनी पड़ी.

वैसे बसपा की मीता गौतम और अखिलेश अंबेडकर ने भी इस विधानसभा में बसपा का झंडा लहराने की कोशिश की लेकिन जनता ने नकार दिया. पूर्व मंत्री फरीद महफूज किदवई की इस इलाके के मुस्लिम वोटरों पर अच्छी पकड़ है. इस सीट पर कांग्रेस, सपा, बसपा तीनों के लड़ने का फायदा 2017 में भाजपा को मिला था. लेकिन 2019 के उपचुनाव में भाजपा ढेर हो गयी. 

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