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क्यों इस बार कुछ कर गुजरने के मूड में नजर आ रहे हैं अखिलेश?

पांच साल पहले जब अखिलेश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्हें मुख्यमंत्री कम और अपने पिता, चाचा और मुंहबोले अंकलों की छात्रछाया में बैठा टीपू ज्यादा समझा गया। लेकिन आज...

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव

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नवंबर के पहले हफ्ते में भारी तल्खी और घमासान के बीच समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मंच पर बोलने आए तो उन्होंने महज एक लाइन में अपने समर्थकों और विरोधियों को बड़ा संदेश दिया. अखिलेश ने कहा 'जब तलवार हाथ में दी है तो याद रखो इसे चलाऊंगा भी'. अखिलेश का ये रूप मुख्यमंत्री के पद पर उनकी ताजपोशी के वक्त के रूप से बिल्कुल विपरीत था. पांच साल पहले जब अखिलेश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्हें मुख्यमंत्री कम और अपने पिता, चाचा और मुंहबोले अंकलों की छत्रछाया में बैठा 'टीपू' ज्यादा समझा गया. लेकिन आज अखिलेश न सिर्फ यूपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं बल्कि तमाम सर्वे में उन्हें सीएम पद पर जनता की पहली पसंद बताया जा रहा है. राजनीति के दिग्गज उनका ये नया रूप और आत्मविश्वास देखकर हैरान हैं. लेकिन उनके इस कुछ कर गुजरने के लिए अड़े दिखने के पीछे कुछ ठोस वजह भी हैं.

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सपा सरकार नहीं अखिलेश सरकार
पांच साल पहले जब समाजवादी पार्टी ऐतिहासिक जीत हासिल कर यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थी तो मीडिया और जनता के बीच यूपी की कानून व्यवस्था को लेकर आशंका जताई जाने लगी थीं। पांच साल पुराना मुलायम का राज सबके सामने था. ये भी माना जा रहा था कि अखिलेश नाम के ही मुख्यमंत्री रहने वाले हैं ऐसे में उनकी साफ छवि या नेक नीयत से ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला लेकिन ऐसी आशंकाएं बाद में गलत साबित हुईं. यूपी की कानून व्यवस्था आज पूरी तरह सुधर गई ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन मायाराज की तुलना में उसमें गिरावट आई हो ऐसा भी देखने को नहीं मिलता। खासकर तब जबकि अखिलेश को अनुभवहीन तो मायावती को सख्त प्रशासक माना जाता रहा है.

विकास की बात
अखिलेश यादव जानते हैं कि सपा का परंपरागत यादव-मुस्लिम गठजोड़ वाला फॉर्मूला हर समय वोट नहीं दिला सकता. लोकसभा चुनाव 2014 में भी पार्टी को इसका सबक मिला जहां उसका पूरे प्रदेश में तकरीबन सूपड़ा साफ हो गया. ये शायद लोकसभा चुनाव का सबक ही है कि अखिलेश अपनी हर सभा और कार्यक्रम में विकास की बात करते दिखाई देते हैं. पिछले चुनाव में जहां अखिलेश क्रांति रथ के साथ निकले थे, वहीं इस बार उन्होंने अपने रथ को समाजवादी विकास रथ नाम दिया. संदेश साफ है कि अखिलेश के चुनावी प्लान में सबसे ऊपर विकास ही रहने वाला है.

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युवा नेतृत्व
अखिलेश युवा हैं और युवाओं को लुभाने के लिए पिछले चुनाव में लैपटॉप बांटने का उनका आइडिया सुपरहिट रहा. सरकार बनने के बाद भी उन्होंने इस नए-नए वोटर बनने वाले वर्ग को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. अब जबकि उनका कार्यकाल खत्म होने को है तो उन्होंने लैपटॉप की तरह इस बार स्मार्टफोन बांटने का ऐलान किया हुआ है.

स्वच्छ छवि
अखिलेश यादव सरकार के अलग-अलग मंत्रियों पर जरूर करप्शन के आरोप लगे हैं. उनके चाचा शिवपाल और रामगोपाल तक इसकी चपेट में आए मगर खुद अखिलेश के खिलाफ ऐसा कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है जिससे उनकी छवि पर कोई आंच आती. खासकर दागी मंत्रियों को उन्होंने जिस तरह बाहर का रास्ता दिखाया और शिवपाल यादव सरकार से अलग हुए उससे भी उनकी छवि मजबूत ही हुई है.

डिंपल का साथ
अगर ये कहें कि पत्नी डिंपल यादव आज अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी तो गलत नहीं होगा. बल्कि डिंपल चूंकि पार्टी से सांसद भी हैं यानी राजनीतिक रूप से पूरी तरह सक्रिय हैं इसलिए वो प्रियंका के मुकाबले वोटरों को लुभाने में ज्यादा मुस्तैदी से काम कर सकती हैं. अखिलेश और डिंपल का एक साथ मंच पर होना, डिंपल का एक पारंपरिक बहू जैसा अवतार ग्रामीण मतदाताओं पर जादुई असर डालता है.

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