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चुनाव पूर्व तेज हुई हज सब्सिडी और कॉमन सिविल कोड की चर्चा, क्या होगा असर?

मुस्लिम लगातार पिछले 15 सालों से सपा का साथ दे रहे हैं. बसपा और भाजपा इस बार सपा के इस वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में हैं. बसपा ने इस बार 97 मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है.

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मुस्लिम वोट
मुस्लिम वोट

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उत्तर प्रदेश में फरवरी और मार्च की महीने में सात चरणों में चुनाव हैं. राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू है. उत्तर प्रदेश में करीब 17 प्रतिशत वोटर मुस्लिम वर्ग से आते हैं और करीब 140 सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं. आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनावों में सपा के कुल 43 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे थे.

ये मुद्दे बदल सकते हैं चुनावी समीकरण

चुनाव आसन्न हैं और मुस्लिमों से जुड़े दो अहम मुद्दे (1- हज सब्सिडी और 2- कॉमन सिविल कोड) चर्चा में हैं. दोनों ही मुद्दे काफी पुराने हैं, समय-समय पर इनकी मांग उठती रही है. मोदी सरकार ने इन दोनों मुद्दों पर निर्णायक कदम उठाकर बदलाव के संकेत दिए हैं. हाल ही में केन्द्र सरकार ने हज सब्सिडी के रि-व्यू के लिए 6 सदस्यीय एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई है. यह तय करेगी कि सब्सिडी सही दिशा में चल रही है या नहीं या फिर इसे कैसे बेहतर किया जा सकता है. इससे पहले कॉमन सिविल कोड और तीन तलाक जैसे मुद्दे भी केन्द्र सरकार खोल चुकी है. इन मुद्दों के सहारे भाजपा प्रगतिवादी मुस्लिम वोटर अपने पाले में करना चाहती है.

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मुस्लिम यूपी में हैं निर्णायक

उत्तर प्रदेश में करीब 17 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं. राज्य के 20 जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं और 20 जिलों में वे दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है. पिछले विधानसभा चुनावों में करीब 60 फीसदी मुस्लिम वोट सपा के खाते में गए थे.

पिछले चुनाव पर नजर डालें तो देखते हैं कि चुनावों में सपा को कुल 29.15 फीसदी वोट मिले जबकि बसपा को 25.91 फीसदी वोट मिले थे. साफ जाहिर है कि सत्ता हथियाने के लिए 27 से 30 फीसदी वोट शेयर महत्वपूर्ण है.

ये है असली लड़ाई की जड़

ओबीसी- 31 फीसदी

दलित- 21 फीसदी

मुसलमान- 19 फीसदी

ब्राह्मण- 10 फीसदी

यादव- 9 फीसदी

क्षत्रिय- 8 फीसदी

दलित-मुस्लिम होते हैं निर्णायक

यूपी में असली लड़ाई जाति साधने की है. उत्तर प्रदेश में 49 जिले ऐसे हैं, जहां सबसे ज्यादा संख्या दलित वोटरों की है, और 20 जिले करीब ऐसे हैं जहां मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 27 जिले ऐसे हैं जहां जाट और गुर्जर निर्णायक हैं. सपा के प्रचंड बहुमत में मुस्लिम वोट का हाथ था तो माया के बहुमत में दलित के साथ ब्राह्मण वोट का मेल.

मुस्लिम लगातार पिछले 15 सालों से सपा का साथ दे रहे हैं. बसपा और भाजपा इस बार सपा के इस वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में हैं. बसपा ने इस बार 97 मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है. पिछली बार उन्होंने सिर्फ 67 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया था. जबकि भाजपा हज सब्सिडी और कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे छेड़ कर मुस्लिम वोट बैंक शिफ्ट करना चाहती है.

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कमजोर सपा से शिफ्ट हो सकते हैं मुस्लिम

पिछले दिनों सपा में छिड़े दंगल से मुस्लिम मतदाता थोड़ा संशय में है. 1991 के बाद आमतौर पर मुस्लिम वोट बीजेपी को हराने वाली पार्टी को ही जाता है. अगर सपा चुनाव पूर्व भाजपा से सीधी लड़ाई का संदेश जनता को नहीं दे सकी तो यह वोटबैंक खिसक सकता है. अगर यह वोट बैंक खिसका तो सपा को खासी मुश्किल हो सकती है जबकि भाजपा और बसपा को फायदा.

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