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अखिलेश को 'हवा भरने का पंप' और मुलायम को 'वॉकिंग स्टिक' मिल जाए तो...

क्या होगा अगर चुनाव आयोग अंतिम फैसलादेने तक साइकिल चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर देता है? दोनों धड़ों नेसुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन पहले से ही बना लिया है. लेकिन इस रास्तेमें भी वक्त लगेगा. ऐसे में दोनों धड़ों के सामने कोई रास्ता नहीं बचेगा कि वोचुनाव आयोग के पास उपलब्ध चुनाव चिन्हों पर ही दांव लगाए और उन्हें लेकर ही लखनऊभागें.

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अखिलेश और मुलायम में किसके हाथ लगेगी 'साइकिल'?
अखिलेश और मुलायम में किसके हाथ लगेगी 'साइकिल'?

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मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों की ही कोशिश है कि साइकिल की सवारी करने का मौका उन्हें ही मिले और चुनावी सड़क को रफ्तार के साथ नाप सकें. लेकिन दिक्कत ये है कि चुनाव आयोग ने साइकिल को ताला लगाकर अपने परिसर में खड़ा कर रखा है. जैसे जैसे वक्त भागता जा रहा है वैसे वैसे उम्मीदवारों के दिलों की धड़कन और माथे पर पसीना बढ़ता जा रहा है. ऐसा हो भी क्यों ना दूसरी पार्टियों के उम्मीदवार अपना अभियान बहुत पहले ही शुरु कर चुके हैं.

किसके हाथ लगेगी ‘साइकिल’?
क्या होगा अगर चुनाव आयोग अंतिम फैसला देने तक साइकिल चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर देता है? दोनों धड़ों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन पहले से ही बना लिया है. लेकिन इस रास्ते में भी वक्त लगेगा. ऐसे में दोनों धड़ों के सामने कोई रास्ता नहीं बचेगा कि वो चुनाव आयोग के पास उपलब्ध चुनाव चिन्हों पर ही दांव लगाए और उन्हें लेकर ही लखनऊ भागें.

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ऐसे हालात में हो सकता है कि अखिलेश अपने पिता और उनके समर्थकों को पीछे छोड़ने के लिए चक्र (पहिया) लेना पसंद करें और खुद को उत्तर प्रदेश में नए युग का 'कृष्ण' बनाकर पेश करना चाहें.

मुलायम को क्या मिलेगा?
दूसरी ओर, सवाल बरकरार है कि क्या मुलायम गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी लोकदल के अध्यक्ष सुनील सिंह की ओर से अपना चुनाव चिन्ह 'खेत जोतता किसान' उपलब्ध कराने की पेशकश स्वीकार करेंगे? लोकदल को अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल समझने की भूल ना की जाए. लोकदल ने अस्सी के दशक में चुनाव लड़ा था.

क्या कहता है कानून?
लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग पार्टियों को सिंबल (आरक्षण और आवंटन) नियम, 1968 के तहत आवंटित करता है. चुनाव आयोग के पास दो तरह के चुनाव चिह्न होते हैं- सुरक्षित और मुक्त.

चुनाव आयोग राष्ट्रीय और मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित चुनाव चिह्न फिक्स करता है. फिलहाल चुनाव आयोग के पास 164 मुक्त चुनाव चिह्न हैं. इनमें वैक्यूम क्लीनर, रोड रोलर, फूलगोभी, टॉफी, तरबूज , इंजेक्शन, ड्रिलर, टॉर्च, हाथ में लेकर चलने वाली स्टिक के साथ-साथ साइकिल में हवा भरने वाला पंप भी है. ऐसे मुक्त चुनाव चिह्ननों की सूची इस लिंक पर देखी जा सकती है.

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http://eci.nic.in/eci_main/ElectoralLaws/OrdersNotifications/year2017/FreeSymbols11012017.pdf

नहीं मिलेगी ‘मोटरसाइकिल’!
अखिलेश खेमे के लिए 'मोटरसाइकिल' चुनाव चिन्ह लेने की काफी चर्चा थी. लेकिन ये सिंबल खाली नहीं है. इस पर पहले से ही समाजवादी पार्टी के छत्तीसगढ़ यूनिट के पूर्व अध्यक्ष रामानंद यादव अपनी पार्टी 'समाजवादी स्वाभिमान मंच' की नेमप्लेट के साथ सवारी कर रहे हैं. मुलायम का आरोप है कि रामानंद यादव को रामगोपाल यादव ने ही खड़ा किया है.

उधार नहीं मिलेगी साइकिल
दिलचस्प ये है कि चार और राजनीतिक दलों- तेलुगु देशम, नेशनल पैंथर्स पार्टी, केरल कांग्रेस और मणिपुर पीपुल्स पार्टी के पास पहले से ही साइकिल का चुनाव चिन्ह है. लेकिन अखिलेश या मुलायम के लिए ये संभव नहीं है कि वो इन पार्टियों के नेताओं से साइकिल को उधार देने के लिए कहें. ये सभी क्षेत्रीय पार्टियां हैं और उनके चुनाव चिन्ह सिर्फ उनके संबंधित राज्यों के लिए ही सुरक्षित हैं.

सिर्फ राष्ट्रीय पार्टियों का ही इलेक्शन सिंबल पूरे देश के लिए सुरक्षित होता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी राज्य में वो अपने उम्मीदवार उतारें या नहीं उतारें. इस वक्त देश में 7 राष्ट्रीय दल और 56 मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल हैं. चुनाव आयोग हर दस साल में पार्टियों के दर्जे की समीक्षा करता है.

क्या करेंगे मुलायम और अखिलेश?
मुलायम और अखिलेश दोनों ही चुनाव आयोग से मुक्त चुनाव चिन्हों की सूची में से अपनी-अपनी पसंद के चिह्नों के आवंटन के लिए आग्रह कर सकते हैं. चुनाव आयोग आम तौर पर ऐसे आग्रहों पर विचार करता है. लेकिन इसके लिए शर्त ये है कि उस चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल बीते 10 साल में किसी पार्टी ने ना किया हो.

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पशु नहीं हो सकते चुनाव चिन्ह
चुनाव आयोग ने अब पशुओं को चुनाव चिन्ह के रूप में आवंटित करना बंद कर दिया है. ये पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की इन शिकायतों के बाद किया गया था कि पशुओं को चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिससे उनका उत्पीड़न होता है. इस मामले में 'हाथी' और 'शेर' ही दो अपवाद हैं. बीएसपी और असम गण परिषद का चुनाव चिह्न हाथी है. वहीं ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी शेर के चिन्ह पर चुनाव लड़ती हैं.

सिंबल में क्या रखा है!
हालांकि अखिलेश और मुलायम, दोनों की कोर टीम की ओर से दावे किए जा रहे हैं कि चुनाव चिन्ह से क्या फर्क पड़ता है, वो नेता ही होता है जो सब मायने रखता है. लेकिन ग्राउंड जीरो पर हताश नेताओं और कार्यकर्ताओं से पूछिए, जिन्हें लग रहा है कि सत्ता उनके हाथ से फिसलती जा रही है. ऐसी संभावना पर भी सोचिए कि मुलायम को 'इंजेक्शन' या 'हाथ में लेकर चलने वाली स्टिक' अलॉट हो जाए या फिर अखिलेश को 'साइकिल में हवा भरने वाला पंप' मिल जाए. कल्पना कीजिए कि आगरा-दिल्ली एक्सप्रेस-वे पर अखिलेश हाथ में साइकिल पंप लिए झुंझलाते हुए हवा भर रहे हों. समाजवादी पार्टी की टैगलाइन वाकई कितनी सही है - काम बोलता है!

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