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यूपी में माया की वापसी की आहट! अभी से पार्कों-मूर्तियों को चमकाने में जुटे अफसर

लखनऊ में मायावती के बनाए जिन स्मारकों की सुध लेने वाला अखिलेश राज मे से कोई नहीं था, अचानक ही उन पार्कों और स्मारकों के दिन लौटने लगे हैं. यह चर्चा चल निकली है कि कहीं यह बहन जी के आने की आहट तो नही! करोड़ों रुपए खर्च कर फिर से पार्कों को चमकाया जा रहा है.

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लखनऊ में मूतिर्यों को चमकाया जा रहा है
लखनऊ में मूतिर्यों को चमकाया जा रहा है

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लखनऊ में मायावती के बनाए जिन स्मारकों की सुध लेने वाला अखिलेश राज मे से कोई नहीं था, अचानक ही उन पार्कों और स्मारकों के दिन लौटने लगे हैं. यह चर्चा चल निकली है कि कहीं यह बहन जी के आने की आहट तो नही! करोड़ों रुपए खर्च कर फिर से पार्कों को चमकाया जा रहा है.

मायावती के बनाए कई स्मारकों में करीब 200 गेट लगाए गए थे. इनमें से कई टूटे पड़े थे. कभी इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आया, लेकिन अब एकाएक इनकी भी मरम्मत होनी शुरू हो गयी है. करीब 50 फीसदी गेटों की मरम्मत कर उन्हें दुरुस्त किया जा चुका है. बाकी का काम चल रहा है.

मायावती की सरकार आती है कि नही इस सवाल का जवाब तो 11 मार्च को मिलेगा, लेकिन अधिकारियों का स्मारकों के लिए अचानक उमड़ा दर्द ये जरूर बताता है कि अधिकारी कोई चांस नहीं लेना चाहते. यही कारण है की चार साल से बेसुध पड़े स्मारकों का खयाल उन्हें अचानक से आ गया.

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बदला अफसरों का रंग
सूबे के अधिकारी भी अपना रंग बदलते दिख रहे हैं. मायावती के शासन में बने स्मारक 2012 के बाद सुनसान दिखने शुरू हो गये थे. कहीं दीवारें टूट रही थीं, तो कहीं गेट. चार साल से अधिक समय से नज़रअंदाज़ होने के बाद अब एक बार फिर अधिकारियों को इसकी चिंता सताने लगी है.

पानी के लिए एक करोड़ की प्लम्बरिंग का सामान आ चुका. गेट और प्लंबरिंग का काम स्मारक समिति की ओर से किया जा रहा है.

नतीजों से पहले ही काम होगा पूरा
सूत्रों का कहना है कि इन सभी कामों को 11 मार्च से पहले पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. आला अधिकारी जल्दी काम पूरा करने का दबाव बनाए हुए हैं. उन्होंने चुनाव नतीजे आने से पहले स्मारकों को दुरुस्त करने का आदेश दिए गए हैं.

वहीं सम्बंधित अधिकारियों का कहना है कि ये रूटीन का कार्य है. बजट जारी करने में देरी हुई थी, जिसके चलते काम देर में शुरू हुआ है.

अखिलेश राज में बेहाल रहे इन पार्कों और स्मारकों के दिन फिरने लगे हैं. अधिकारी इसे भले ही रूटीन काम करार दें, लेकिन जिन पार्कों मे पिछले पांच साल में कोई अधिकारी झांकने तक नहीं आया, वहां अधिकारियों की चहलकदमी ये साफ दिखाती है कि अधिकारी कोई चांस लेने के मूड में नहीं हैं.

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