पूर्वांचल के मऊ जिले में सियासी लड़ाई डॉन बनाम है. यानी हर कोई डॉन से लड़ रहा है. ये डॉन स्वतंत्रता सेनानी का खून है. इसके दादा आजादी से पहले 1927 में कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. इस चुनाव में हर कोई उस शख्स से लड़ रहा है, जो 12 सालों से सलाखों के पीछे है. वो 20 सालों से लगातार 4 बार मऊ सदर सीट से चुनाव जीतता आ रहा है. पार्टी उसके लिए ज्यादा मायने नहीं रखती. एक बार फिर वो बसपा के हाथी पर सवार होकर 5वीं बार विधानसभा पहुंचने का सपना सलाखों के भीतर से देख रहा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी मुख़्तार अहमद अंसारी के पोते और पूर्वांचल के डॉन मोख्तार अंसारी की.
मोख्तार खुद जेल में हैं, लेकिन वो खुद तो चुनाव लड़ ही रहे हैं, साथ ही उनके बड़े बेटे अब्बास बगल की सीट घोसी से बसपा के टिकट पर मैदान में हैं. इतना ही नहीं मोख्तार के बड़े भाई सिबगतुल्ला भी बगल के जिले गाजीपुर की युसुफपुर मोहम्मदाबाद से बतौर बसपा उम्मीदवार लड़ रहे हैं. मोख्तार के बड़े बेटे अपने चुनाव में व्यस्त हैं, तो बड़े भाई अपने चुनाव में. लेकिन मोख्तार के कार्यालय पर रौनक पहले जैसी ही है. कोई तो है जिसमें मोख्तार समर्थक अपने मोख्तार की छवि देख रहे हैं.
अचानक कार्यालय में 18-20 साल का लड़का दाखिल होता है. दाढ़ी-मूंछ भी ठीक से नहीं जमी है, लेकिन लंबा कद,आंख में चश्मा, गले में लंबा साफा और बात करने का अंदाज काफी हद तक मोख्तार जैसा. ये हैं मोख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर अंसारी. जो दिल्ली में बीबीए की पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन पिता के चुनाव को संभालने के लिए आए हैं.
वैसे मोख्तार अंसारी 2005 के मऊ दंगों के बाद से ही जेल में हैं. यानि तब 12 साल पहले उनके छोटे बेटे उमर महज 7-8 साल के थे. अब बालिग होकर पिता मोख्तार के लिए कमान संभाले हैं. इनका अंदाज भी मोख्तार जैसा है, किसी को ये महसूस ना हो कि, मोख्तार जेल में है इसका वो खास ख्याल रखते हैं, हर किसी को कहते हैं कि, चिंता की कोई बात नहीं है.
आजतक से बातचीत में पिता को बाहुबली, डॉन या अपराधी कहे जाने पर कहते हैं कि, ये मीडिया के एक तबके और विरोधियों का दिया नाम है, जिसमें सच्चाई कतई नहीं हैं. वो कहते हैं कि, क्षेत्र की जनता उनके पिता को गरीबों का मसीहा मानती है. हां आप उनको रॉबिन हुड कह सकते हैं. वो कहते हैं 2007 में भी पिता जेल में थे, तब भी निर्दलीय जीते थे, इस बार तो बसपा जैसी पार्टी भी साथ है.
कौमी एकता दल का विलय सपा में रोकने वाले अखिलेश यादव को उमर भैय्या कहते हैं. लेकिन लगे हाथ अपनी नाराजगी भी जाहिर करते हैं. उमर के मुताबिक, राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव के वक्त सपा की तरफ से कौमी एकता दल से हाथ मिलाने की पेशकश हुई, खुद अखिलेश ने इस पर सहमति दी, फिर बाद में वो ना जाने किस बहकावे में आ गए. पर मैं अखिलेश भैया से वही कहूंगा जो मुलायम सिंह ने कहा कि, जो अपने बाप का ना हुआ वो आपका क्या होगा. एक बेटा होने के नाते मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता कि, पिता के रहते जबर्दस्ती उनकी पावर छीन लूं.
इस इलाके में मोख्तार 20 सालों से विधायक हैं, लेकिन रोजगार, बुनकरों की बड़ी आबादी की समस्याएं, मिल, फैक्ट्री नहीं होना लोगों की आम समस्याएं हैं. यहां दो बड़ी मिल थीं, जो बंद होकर खंडहर हो रही हैं, तो वहीं झील के बीच टूरिज्म विभाग का बना जल महल है, जो बंद पड़ा है, धूल खा रहा है और झाड़ियों से घिर चुका है. विकास की आस में ही लोग हैं. विरोधी इसी को मुद्दा बना रहे हैं. वो कहते हैं कि, 2000 और 2005 में जब दंगे हुए तब मोख्तार अंसारी विधायक भी थे और जेल से बाहर भी. फिर 2005 के बाद वो कृष्णानन्द राय हत्याकांड में आरोपी के तौर पर जेल चले गए. उसके बाद से दंगे नहीं हुए. लेकिन कैमरे पर खुलकर विरोधी भी ये बात बोलने को तैयार नहीं.
हां, नारा जरूर विरोधी लगाते हैं कि, तख्त बदल दो, ताज बदल दो, 20 साल का राज बदल दो. मोख्तार अंसारी के सामने सपा के अल्ताफ अंसारी हैं, जो यहां के मुसलमानों की बड़ी आबादी वाली बुनकर बिरादरी से हैं. वो बताना नहीं भूलते कि, मोख्तार अंसारी मुस्लिमों की अगड़ी जाति से हैं, सिर्फ नाम के अंसारी हैं. लेकिन मोख्तार को डॉन, बाहुबली या अपराधी बोलने के सवाल पर अल्ताफ कहते हैं कि, मैं कुछ नहीं कह सकता, वो डॉन, बाहुबली या अपराधी हैं या नहीं , जनता से पूछिए.
वैसे इस इलाके में चुनाव का मुद्दा घूम फिरकर मोख्तार अंसारी के इर्द-गिर्द दिखता है. लोगों से बात करने पर मोख्तार समर्थक मोख्तार को गरीबों का मसीहा बताते हैं, बताते हैं कि, हर मौके पर सालों से उनके कार्यालय से हर तरह मदद हो जाती है. तो वहीं, विरोधी कहते हैं कि, मोख्तार के वक्त में विकास नहीं हुआ, वो चुनाव के वक्त सिर्फ हिन्दू और मुसलमान करके साम्प्रदायिकता फैलाते रहे हैं.
वैसे इस दिलचस्प लड़ाई में बीजेपी के साथ गठबंधन के चलते भारतीय समाज पार्टी के चुनाव निशान छड़ी से उम्मीदवार महेंद्र राजभर भी हैं, जो उम्मीद लगाए हैं कि, दो मुस्लिमों के बीच वोट बंटने का फायदा उनको हो जाएगा. लेकिन यहां सब बाहुबली मोख्तार के इर्द-गिर्द है, इसलिए हाल ही में यहां रैली में पीएम मोदी ने अपना चुनाव निशान छड़ी हाथ में पकड़े महेंद्र राजभर को कटप्पा करार दिया और कहा कि, बाहुबली को कटप्पा ही हराएगा.
कुल मिलाकर डॉन जेल में है, पर चुनाव मैदान में है. इसलिए यहां मुद्दा भी डॉन ही लगता है. अब देखना होगा कि डॉन की हाथी की सवारी उनको विधानसभा ले जा पाती है या नहीं.