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मुलायम-शिवपाल के रुख से SP को नुकसान तो... हो रहा है 'गठबंधन' का फायदा

टिकट कटने के बाद मुलायम-शिवपाल के पाले के अधिकतर सपा नेता अपना दल बदल चुके हैं. सपा नेता अंबिका चौधरी ने जो शुरुआत की वह थमने का नाम नहीं ले रही. शारदा प्रसाद शुक्ल ने हाल ही में अपनी सरोजनी नगर सीट से आरएलडी प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया है.

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मुलायम-शिवपाल और अखिलेश यादव
मुलायम-शिवपाल और अखिलेश यादव

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समाजवादी पार्टी में पिछले दिनों लगातार विवादों में रहे शिवपाल यादव का नया बयान अखिलेश के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. शिवपाल यादव ने जसवंत नगर सीट से नामांकन करने के बाद कहा था कि वे 11 मार्च के बाद नई पार्टी का गठन करेंगे. हालांकि शिवपाल ने यह भी कहा कि फिलहाल वे पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर ही चुनाव लड़ेंगे लेकिन आगे का फैसला 11 मार्च के बाद होगा.

मुलायम भी हैं नाराज
शिवपाल के अलावा अखिलेश से इन दिनों मुलायम सिंह यादव भी नाराज चल रहे हैं. उन्होंने भी सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया है. इसके अलावा मुलायम सिंह ने यह भी कहा था कि गठबंधन के बाद कांग्रेस को मिली सीटों पर स्थानीय सपा नेता चुनाव लड़ें.

दलबदलू हो रहे सपाई
टिकट कटने के बाद मुलायम-शिवपाल के पाले के अधिकतर सपा नेता अपना दल बदल चुके हैं. सपा नेता अंबिका चौधरी ने जो शुरुआत की वह थमने का नाम नहीं ले रही. शारदा प्रसाद शुक्ल ने हाल ही में अपनी सरोजनी नगर सीट से आरएलडी प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया है. सीतापुर के दबंग नेता रामपाल यादव, बेनी प्रसाद के बेटे राकेश वर्मा, कौएद नेता मुख्तार अंसरी और उनके भाई के बाद हाल ही में शिवपाल के करीबी नारद राय ने भी सपा छोड़ दी है. इसके अलावा ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि अखिलेश कैबिनेट में मंत्री रहीं और शिवपाल-मुलायम की करीबी शादाब फातिमा भी बीएसपी ज्वाइन कर सकती हैं, हालांकि अभी तक उनके दलबदलू होने की पुष्टि नहीं हुई है.

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क्या होगा असर
मुलायम की नाराजगी और शिवपाल के उखड़े बोल से सबसे बड़ा नुकसान अखिलेश को होगा. सपा-कांग्रेस गठबंधन की जीत के लिए पूरा जोर लगा रहे अखिलेश को अपनी ऊर्जा अपना परिवार संभाले रखने में भी खर्च करनी होगी. वहीं दूसरी ओर सपा का परंपरागत वोटर जो अब तक मुलायम और शिवपाल के कहने पर वोट देता आया है, एक बार फिर असमंजस की स्थिति में आ जाएगा. गौरतलब है कि सपा के अधिकतर वोटर और कार्यकर्ता नेताजी से भावनात्मक रिश्ता रखते हैं. प्रचार अभियान से उनकी दूरी अखिलेश और सपा दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है.

सपा सबसे ज्यादा मजबूत यूपी के मध्य क्षेत्र में ही है. वहीं सपा दो खेमों में बंटी हुई है. इसी क्षेत्र में यादव परिवार का गृहनगर इटावा भी आता है. इस क्षेत्र में शिवपाल यादव को हाशिए पर किए जाने को लेकर सपा कार्यकर्ताओं में रोष है. इन विधानसभा चुनावों में सपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष की सबसे बड़ी चुनौती भितरघात से लड़ना ही होगी.

थोड़ा सा वोट शिफ्ट दे सकता है बड़ा झटका
यूपी चुनावों में जीत का अंतर महज कुछ प्रतिशत वोट शेयर ही तय करता है. ऐसे में सपा के वोटर का असमंजस में होना उसे बड़ा झटका दे सकता है. इस बात को आप पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़ों से समझ सकते हैं.

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2012 के विधानसभा चुनावों में सपा को कुल 29.13% वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रही बीएसपी का मत प्रतिशत 25.91% था. सपा के खाते में कुल 224 सीटें मिली थीं जबकि बीएसपी को सिर्फ 80 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था.

2007 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी को कुल 30.43% वोट मिला था जबकि दूसरे नंबर पर रही सपा को कुल 25.43% वोट मिले थे. गौरतलब है कि चुनाव में सपा ने सिर्फ 393 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि बीएसपी ने 403 सीटों पर. चुनावों में बीएसपी ने 206 और सपा ने 97 सीटें जीती थीं.

2002 के विधानसभा चुनावों में सपा को कुल 25.37% वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रही बीएसपी को कुल 23.06% वोट मिले थे. आपको बता दें कि इन चुनावों में सपा ने 390 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 143 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि बीएसपी ने 401 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 98 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

मुस्लिम वोट रोक पाना बड़ी मुसीबत
मुख्तार अंसारी सपा से अलग हो चुके हैं. बाहुबली नेता अतीक अहमद को अखिलेश ने टिकट नहीं दिया. एमएलसी आशु मलिक की सुरक्षा में लगी जेड सिक्योरिटी हटवा ली. अब शादाब फातिमा के भी पार्टी छोड़ने की खबरें आ रही हैं. ऐसे में मुस्लिम वोट रोक कर रख पाना सपा के लिए बड़ी मुसीबत है. शायद यही वजह है कि सपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह पकड़नी पड़ी.

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गठबंधन का हो रहा है फायदा
ताजा ओपिनियन पोल के आंकड़े दिखाते हैं कि कांग्रेस के हाथ का साथ समाजवादी पार्टी की साइकिल को मिलने से समाजवादी पार्टी के वोटों में 7% वोटों का इजाफा हुआ है. ओपिनियन पोल के मुताबिक एसपी के पास 26 फीसदी हैं. लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के बाद इस गठबंधन को 33.2% वोट मिलने का अनुमान है. हालांकि इस नए गठबंधन से बीजेपी का अपना वोट शेयर कमोवेश अप्रभावित है. असलियत ये है कि बीजेपी का अपना वोट शेयर जो दिसंबर में 33% दिख रहा था वो जनवरी में बढ़ कर 34.8% हो गया.

यूपी में चुनाव अब मोटे तौर पर बीजेपी और एसपी-कांग्रेस गठबंधन के बीच दो घोड़ों की दौड़ सरीखा हो गया है. दिसंबर में बीजेपी को निकटतम प्रतिद्वंद्वी एसपी पर 100 सीट की बढ़त हासिल थी. लेकिन अब अखिलेश-राहुल के साथ ने यूपी के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल डाला है. हालांकि प्रदेश में कांग्रेस हाशिए पर पहुंची ताकत है लेकिन इसने एक महीने के अंतराल में ही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष गठबंधन के लिए 76 सीटों का इजाफा करने में मदद की है.

अगर यूपी चुनाव की तुलना घुड़दौड़ से की जाए तो दिसंबर में बीजेपी का घोड़ा कहीं आगे दौड़ रहा था. लेकिन जनवरी में इसकी रफ्तार में कमी आना शुरू हुआ. दूसरी ओर, एसपी के घोड़े को कांग्रेस से शक्तिवर्धक खुराक मिली तो इसने पहले से कहीं तेज रफ्तार से दौड़ना शुरू कर दिया. अगले कुछ हफ्ते ये तय करेंगे कि बीजेपी का घोड़ा अपनी बढ़त को बरकरार रखने में कामयाब रहता है या फिर आखिरी स्ट्रैच में प्रतिद्वंद्वी की ओर से पछाड़ दिया जाता है. फिलहाल, दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों में वोट शेयर का अंतर 1.6% से भी कम पर आ टिका है जो अपने आप में 'मार्जिन ऑफ एरर' के अंदर आता है.

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