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अखिलेश नहीं, शिवपाल के साथ खड़े दिख रहे हैं मुलायम, लेकिन क्यों?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक दावों के लिए जाने जाते हैं. बुधवार को जब उन्होंने 325 प्रत्याशियों की जो लिस्ट जारी की उसमें कई तरह के राजनीतिक संदेश और रणनीतियों की साफ झलक मिलती है.

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सपा के 325 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी
सपा के 325 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक दावों के लिए जाने जाते हैं. बुधवार को जब उन्होंने 325 प्रत्याशियों की जो लिस्ट जारी की उसमें कई तरह के राजनीतिक संदेश और रणनीतियों की साफ झलक मिलती है.

दरअसल, मुलायम इस सूची के ज़रिए कई तरह के संतुलन बनाने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं. साथ ही, वो अन्य संभावित सहयोगियों को भी सीधा संकेत दे रहे हैं कि गठबंधन होगा तो उनकी शर्तों पर ही होगा.

समाजवादी पार्टी में पिछले कुछ महीनों से जारी घमासान में राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव आमने-सामने हैं. चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में पार्टी पिछले कुछ समय से लगातार चर्चा में है. हालांकि इस लड़ाई के बाद अखिलेश और मज़बूत होकर उभरे हैं और पार्टी के साथ-साथ सरकार में भी उनकी हैसियत और मज़बूत हुई है. शिवपाल पार्टी में कमज़ोर तो पड़े ही हैं, साथ ही लोगों के बीच भी उनकी साख कमज़ोर पड़ी है.

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लेकिन नेताजी यह बखूबी जानते हैं कि किसी एक पहिए के कमज़ोर पड़ने से बात बनने वाली नहीं है. न ही नेताजी चुनाव से ठीक पहले बगावत को सिर उठाने देना चाहते हैं. इसलिए मुलायम की लिस्ट पार्टी और सत्ता के साथ-साथ चाचा और भतीजे के बीच संतुलन की भी कोशिश है.

घर में संतुलन
मुलायम सिंह यादव की ओर से सूची जारी किए जाने से पहले अखिलेश और शिवपाल अपनी-अपनी पसंद की सूची जारी कर चुके हैं. लेकिन नेताजी की सूची में दोनों की लिस्ट की छाप है. हालांकि शिवपाल अखिलेश पर भारी पड़े हैं और मुलायम ने उन्हें निराश नहीं किया है. निराश होने का समय अखिलेश का है.

लेकिन इसके पीछे नेताजी का राजनीतिक दांव भी है. अखिलेश को अगर जीत की ओर बढ़ना है तो उन्हें पार्टी और परिवार के साथ की ज़रूरत है. शिवपाल सदा से मुलायम के सेनापति रहे हैं और संगठन पर उनकी मज़बूत पकड़ है. नेताजी को मालूम है कि अखिलेश के जीतने के लिए शिवपाल का पूरी तरह से जुटना और साथ होना बहुत ज़रूरी है.

साथ ही वो यह भी समझते हैं कि अगर टिकटों में भी शिवपाल की पूरी तरह से अनदेखी होती है तो वो कहीं के नहीं रह जाएंगे और इस स्थिति में बागी हो सकते हैं. पार्टी और परिवार में बगावत मुलायम के लिए इस समय एक कठिन चुनौती साबित हो सकती है.

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शिवपाल के नामों को शामिल करके मुलायम ने उन्हें कृतार्थ कर दिया है और अब शिवपाल के पास नेताजी और अखिलेश के लिए जी-जान से जुटने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता इस स्थिति को समझाते हैं, “पार्टी में अखिलेश मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं. शिवपाल उनका जवाब नहीं बन सकते. इसलिए जो आज शिवपाल की लिस्ट के लोग लग रहे हैं, कल अखिलेश को गद्दी तक पहुंचाने का काम करेंगे. शिवपाल का खुश होना अखिलेश के लिए कतई नुकसानदेह नहीं है.”

देखना यह है कि अखिलेश इस फैसले के साथ कैसे धैर्य और जीत, दोनों तरह के संकेत अपने समर्थकों और बाकी सूबे को दे पाते हैं क्योंकि अखिलेश का मज़बूत से कमज़ोर होना या नेताजी का उन पर हावी होना अंततः सपा के चुनावी गणित के लिए अच्छा नहीं होगा.

गठबंधन का सर्वेसर्वा
दूसरा दांव नेताजी ने खेला है सहयोग के लिए आतुर पार्टियों के साथ. ऐसे समय में जबकि कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी की ओर आस लगाए देख रहे हैं, नेताजी बार-बार यह दोहरा रहे हैं कि वो अकेले दम पर चुनाव में उतरेंगे भी और जीतेंगे भी.

अब 325 प्रत्याशियों की घोषणा के साथ नेताजी ने सहयोगी दलों को घुटनों पर ला दिया है. 78 सीटों के लिए कोई घोषणा नेताजी ने नहीं की है जो इशारा है कि अभी भी गठबंधन की गुंजाइश बाकी है. लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी संकेत दे दिया है कि अगर किसी भी राजनीतिक दल को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना है तो वो केवल और केवल उनकी शर्तों पर होगा.

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अमेठी और रायबरेली की पांच सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा करके नेताजी ने संभावित गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस को भी बता दिया है कि वो किसी भी कीमत पर उनकी शर्तों या दबाव में काम करने वाले नहीं है. यह भी इशारा कर दिया गया है कि जिसे गठबंधन करना हो, 78 की सीमित संख्या में रहते हुए करे.

नेताजी ने 325 का आंकड़ा इसलिए अपने कब्ज़े में रखा ताकि चुनाव में पार्टी के समर्थन में यदि कोई लहर बन पाती है तो बहुमत या उसके करीब की संख्या उनकी अपनी पार्टी से ही निकाला जा सके. बाकी दलों पर अपनी निर्भरता को वो कम से कम रखना चाहते हैं.

नेताजी कांग्रेस के साथ अजीब खेल खेल रहे हैं. वो कांग्रेस का साथ लेकर मायावती के दलित-मुस्लिम गणित को बिगाड़ना तो चाहते हैं लेकिन इसकी एवज में कांग्रेस को उसका हिस्सा देने के लिए तैयार भी नहीं हैं. हालांकि मुलायम के आंगन में दांव कभी भी बदल जाते हैं. आज का सच चुनाव के दरवाजे तक हूबहू रहेगा, ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता है.

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