उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए पहले दौर की वोटिंग 11 फरवरी को होगी और इस चरण के लिए अधिसूचना 17 जनवरी को जारी की जाएगी. समाजवादी पार्टी के लिए ये तारीख इस बार खासतौर पर अहम है क्योंकि अगर पार्टी अपने घर के घमासान को किसी अंजाम तक पहुंचाने में नाकाम रही तो इस तारीख के बाद उसके पास समझौते की गुंजाइश खत्म हो जाएगी और उसके दोनों धड़ों को नई पार्टी और नए नाम के साथ मैदान में उतरना होगा.
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बीच दो धड़ों में बंट गई है. दोनों ही खेमे पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह पर कब्जे की लड़ाई चुनाव आयोग में लड़ रहे हैं. जो भी इस लड़ाई में विजयी रहेगा समाजवादी पार्टी और सरकार उसी की मानी जाएगी लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि दोनों ही पक्ष फिलहाल जीत से दूर रहें और न पार्टी का नाम बचा सकें, न साइकिल का चुनाव चिन्ह.
पिछले दिनों खुद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने आजतक से विशेष बातचीत में साफ कर दिया था कि चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम पर सपा के दोनों धड़े जिस तरह दावा कर रहे हैं, चुनाव आयोग इसपर अपना कोई अंतिम फैसला लेने में कुछ महीने लगा सकता है. ऐसे में हो सकता है कि किसी भी धड़े को पार्टी का चुनाव चिन्ह न मिले. कुरैशी की इस बात से साफ है कि चुनाव के इस ऐन मौके पर पार्टी के दोनों धड़ों के पास बहुत सीमित विकल्प हैं.
पहला विकल्प-अखिलेश और मुलायम आपस में एकजुट हों. चुनाव आयोग में किए गए अपने दावे दोनों पक्ष वापस लें और सपा के बैनर तले साइकिल के चुनाव चिन्ह पर एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरें.
दूसरा विकल्प-अखिलेश और मुलायम में से कोई एक सपा और साइकिल पर अपना दावा छोड़े. अपनी अलग पार्टी बनाकर अपनी ताकत का अहसास कराए ताकि पार्टी और उसके सिंबल को कोई नुकसान न पहुंचे.
तीसरा विकल्प-अखिलेश और मुलायम सिंह दोनों ही साइकिल पर दावे जताते रहें. चुनाव आयोग इस चिन्ह को फ्रीज कर दे. दोनों ही गुट किसी नए निशान और पार्टी के बदले हुए नाम (सपा-अखिलेश और सपा-मुलायम) से चुनाव लड़ें और अपनी ताकत का अहसास कराएं.
सपा के घमासान का अभी तक जो सूरत-ए-हाल है उसे देखते हुए फिलहाल पहले और दूसरे विकल्प की संभावना कम ही दिखती है. ऐसे में ज्यादा संभावना इसी बात की है कि साइकिल चुनाव चिन्ह इन चुनावों में देखने को न मिले और समाजवादी पार्टी की जगह सपा-ए और सपा-एम जैसी दो नई पार्टियां चुनाव मैदान में दिखें.