अमेठी-रायबरेली में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी का प्रचार कार्यक्रम टल सकता है. पहले प्रियंका गांधी 13 फरवरी को रायबरेली पहुंचकर वेलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी को यहां प्रचार का बिगुल फूंकने वाली थीं. लेकिन सूत्रों की मानें तो जमीन से मिल रही रिपोर्ट्स ने प्रियंका को नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है.
प्रियंका के प्रचार पर कैंची?
माना जा रहा है कि अब प्रियंका का ये दौरा 1-2 दिन के लिए टल सकता है. अगर चीजें दुरुस्त नहीं हुईं तो प्रियंका अपने कार्यक्रम को सीमित भी कर सकती हैं. अमेठी-रायबरेली के पार्टी नेताओं ने उन्हें सलाह दी है कि गठबंधन के पेंच और उम्मीदवारों पर जारी सस्पेंस के चलते कांग्रेस के इस गढ़ में नतीजे इस बार विपरीत हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो हार का ठीकरा प्रियंका गांधी के सिर फूट सकता है. लिहाजा प्रियंका गांधी को सलाह दी गई है कि वो यहां प्रचार से बचें.
उम्मीदवारों पर फंसा पेंच
दरअसल, रायबरेली में भले ही कांग्रेस सभी सीटों पर लड़ रही हो, लेकिन सपा के मौजूदा विधायक, जिनका टिकट कटा है, वो आरएलडी या किसी छोटी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस के प्रत्याशियों को हो सकता है. साथ ही रायबरेली की ऊंचाहार सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के सामने सपा के मौजूदा विधायक मनोज पांडेय भी मैदान में हैं. वहीँ अमेठी से गायत्री प्रजापति और गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह साइकिल निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं.
जीत की राह मुश्किल
2012 के चुनाव में प्रियंका गांधी ने अमेठी-रायबरेली की 10 सीटों में 100 से ज़्यादा नुक्कड़ सभाएं और रोड शो किये थे. हालांकि पार्टी को सिर्फ 2 ही सीटों पर जीत हाथ लगी थी. जबकि 2007 में कांग्रेस ने 10 में 7 सीटें जीतीं थीं. अब 10 में से 7 सीटें तो कांग्रेस को मिल गयीं, कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोंक रहे सिटिंग विधायकों को अखिलेश ने बाहर का रास्ता भी दिखाया, पर कई जगह वो दूसरी छोटी पार्टियों का टिकट लेकर कांग्रेस की राह में रोड़ा बने हुए हैं.
इसके अलावा रायबरेली के मौजूदा निर्दलीय विधायक अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह इस बार कांग्रेस के टिकट पर लड़ रही हैं, लेकिन अगर वो जीतती भी हैं तो उसका श्रेय प्रियंका को नहीं मिलने वाला.
फूंक-फूंक कर कदम
इसी सब के चलते प्रियंका पहले दिल्ली से सियासी कील-कांटे दुरुस्त करके आगे बढ़ना चाहती हैं. उनकी रणनीति शुरुआत में नुक्कड़ सभाओं के बजाय अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के सम्मेलन आयोजित करने की है. जिससे आखिर तक गठबंधन की गांठ सुलझाने का वक्त भी मिल जाये.