उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो रही है. पहले चरण की 73 सीटों पर वोटिंग शुरू हो गई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 27 जिले ऐसे हैं जहां जाट और गुर्जर निर्णायक हैं. आपको बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश लहर को बीएसपी की ओर से कड़ी टक्कर मिली थी.
सपा-बीएसपी में हुई थी कड़ी टक्कर
2012 में हुए विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को 24, बीएसपी को 23, बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. मथुरा की मांट सीट उपचुनाव के दौरान बीजेपी के खाते में आ गई थी. वहीं मथुरा की गोवर्धन सीट से आरएलडी विधायक अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह से अलीगढ़ की बरौली विधानसभा से आरएलडी विधायक भी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
ध्रुवीकरण का फायदा बीजेपी के हक में
अगस्त 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश दो वर्गों में बंटा हुआ नजर आता है. राज्य के इस हिस्से में लोकसभा चुनावों के दौरान ध्रुवीकरण का प्रभाव साफ नजर आया था. हिन्दु बाहुल्य इलाका होने के चलते बीजेपी को थोड़ी राहत की उम्मीद है. वहीं मायावती दलित-मुस्लिम गठजोड़ साधने में लगी हुई हैं.
बदल चुका है समीकरण
आरक्षण के मुद्दे पर नाराज जाट बिरादरी इस बार बीजेपी से अलग आरएलडी की ओर जाने का मन बना चुकी है. अजीत सिंह पिछली रैलियों में साफ कहते आ रहे हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए वे बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. मतलब साफ है जाटों में पनपे गुस्से को भुनाने में चौधरी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.
तो क्या इस वजह से अखिलेश ने किया था किनारा
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक अखिलेश को जाटों की बीजेपी से नाराजगी का भान था. वे जानते थे कि अगर आरएलडी के साथ गठबंधन किया तो जाट वोट गठबंधन के साथ नहीं आएगा. वजह साफ है, पश्चिमी यूपी में बढ़ती कम्यूनल टेंशन. ताजा हालात इस बात से साफ इंकार करते हैं कि मुस्लिम और जाट एक ही पार्टी को वोट दें. इसी वजह से आरएलडी का अलग चुनाव लड़ना कहीं न कहीं अखिलेश के लिए ही फायदेमंद होगा.
माया ने भी चली बेहतरीन चाल
यूपी में चुनावी परिणाम मुद्दा आधारित कम जाति आधारित ज्यादा होते हैं. यूपी में सियासी कहावत आम है कि "जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी''. पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने मायावती ने बीएसपी के उम्मीदवार चुन-चुन कर उतारे हैं. इस क्षेत्र में जाट, मुस्लिम और दलितों की अच्छी खासी संख्या है. मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है.
आरएलडी भी है तैयार
पश्चिमी यूपी में मजबूत पकड़ वाली आरएलडी अपने बुरे दौर में है. पिछले चुनावों में आरएलडी को कुल 9 सीटें मिली थीं. सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद राजनीतिक समीकरण काफी बड़े स्तर पर बदल जाएंगे. अगस्त 2013 में मुज़फ्फरनगर के दंगे के बाद से जाट और मुस्लिमों में बिखराव आ गया था आरएलडी इन्हें फिर से एकजुट करने की कोशिश में पिछले काफी समय से लगी हुई है. जाट और मुस्लिम ही आरएलडी का वोटर रहा है. अगर चौधरी का प्लान कामयाब हो गया तो एक बार फिर उनकी पार्टी पश्चिमी यूपी में अपना प्रभाव जमाती नजर आएगी.
स्थानीय मुद्दे रहेंगे भारी
विधानसभा चुनावों में बीजेपी की स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतर नहीं रही लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अप्रत्याशित सफलता अर्जित की थी. आम चुनावों में बीजेपी को मिले इस समर्थन पर विधानसभा चुनावों में सामाजिक मुद्दे हावी हो सकते हैं। पश्चिमी यूपी जाट और मुस्लिम बाहुल्य है तो मुद्दे भी इन्हीं वर्गों से जुड़े हुए होंगे. मुस्लिम वर्ग सपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है ऐसे में जाट समुदाय से जुड़े मुद्दे बीजेपी को चुनावों में भारी पड़ सकते हैं। आपको बता दें कि जाट आंदोलन से जूझ रही बीजेपी के पास इस क्षेत्र से अभी 13 सीटें हैं.
ये हैं बड़े चेहरे
मायावती, कल्याण सिंह, जनरल वी के सिंह, अजीत चौधरी, जयंत चौधरी, संगीत सोम, रामवीर उपाध्याय, सुरेश राणा, जगदीश सिंह राणा, राजेन्द्र सिंह राणा, राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, ठाकुर मूलचंद, ठाकुर जयवीर सिंह, सर्वेश सिंह, विमला सोलंकी, महावीर राणा, आशु मलिक, गेंदालाल चौधरी और प्रताप सिंह बघेल.
यहीं से होगी यूपी के रण की शुरुआत
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों पर चुनाव होगा. इस चरण में शामिल सभी विधानसभा सीटों के लिए मंगलवार को अधिसूचना जारी होनी है. पहले चरण का मतदान 11 फरवरी को होगा. इस चरण में जहां चुनाव होंगे, उनमें शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, ऐटा और कासगंज जिले शामिल हैं.
जिलेवार विधानसभा सीट
शामली: कैराना, थाना भवन और शामली विधानसभा सीट.
मुजफ्फरनगर: बुधाना, चरथावल, पुरकाजी (एससी), मुजफ्फरनगर, खटऊली और मीरापुर विधानसभा सीट.
बागपत: छपरऊली, बराऊत और बागपत विधानसभा सीट.
मेरठ: सिवालखास, सरधाना, हस्तिनापुर (एससी), किथोर, मेरठ कैंट, मेरठ और मेरठ साउथ विधानसभा सीट.
गाजियाबाद: लोनी, मुरादनगर, शाहिबाबाद, गाजियाबाद और मोदी नगर विधानसभा सीट.
गौतम बुद्ध नगर: नोएडा, दादरी और जेवर विधानसभा सीट.
हापुड़: धउलाना, हापुड़ (एससी) और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट.
बुलंदशहर: सिकंदराबाद, बुलंदशहर, सयाना, अनूपशहर, देबई, शिकारपुर और खुरजा (एससी) विधानसभा सीट.
अलीगढ़: खैर (एससी) बरउली, अटरौली, छार्रा, अलीगढ़ और इगलास (एससी) विधानसभा सीट.
मथुरा: छाता, मान्त, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव (एससी) विधानसभा सीट.
हाथरस: हाथरस (एससी), सदाबाद और सिकंदराराव विधानसभा सीट.
आगरा: इटमारपुर, आगरा कैंट (एससी) आगरा दक्षिण, आगरा उत्तर, आगरा ग्रामीण, फतेहपुर सिकरी, खेरागढ़, फतेहाबाद और बाह विधानसभा सीट.
फिरोजाबाद: टुंडला (एससी), फिरोजाबाद, जसराना, शिकोहाबाद और सिरसागंज विधानसभा सीट.
ऐटा: अलीगंज, ऐटा, मतहारा और जलेसर (एससी) विधानसभा सीट.
कासगंज: कासगंज, अमनपुर और पटियाली विधानसभा सीट.