उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में गठबंधन की चोट खा चुकी आरएलडी ने अब अकेले चुनाव लड़ने के लिए कमर कस ली है. आरएलडी इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी. पिछले तीन चुनावों में ऐसा कभी नहीं हुआ जब आरएलडी इतने बड़े पैमाने पर चुनाव में उतरने की तैयारी में हो. इससे पहले 2007 के चुनावों में अजीत सिंह ने 254 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. हालांकि उन्हें जीत सिर्फ 10 सीटों पर ही हासिल हुई थी.
गठबंधन पर 'न' से नाराज हैं अजीत सिंह
आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह काफी लंबे समय से गठबंधन की आस में थे. उन्हें लग रहा था कि इस बार कांग्रेस, सपा और आरएलडी एकसाथ चुनावी मैदान में उतरेगी. कांग्रेस की तरह आरएलडी के लिए भी यह गठबंधन किसी संजीवनी से कम नहीं होता. लेकिन अंतिम वक्त में सपा ने आरएलडी संग हाथ मिलाने से मना कर दिया. कांग्रेस ने बातचीत की कोशिश की लेकिन सीटों के बंटवारे पर फैसला नहीं हो सका.
अंतिम समय में मिले इस झटके से नाराज अजीत सिंह ने अपनी ताकत दिखाने के लिए राज्य की पूरी की पूरी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. आरएलडी अब तक तीन लिस्ट जारी कर चुकी है. पहली लिस्ट में उसने 8, दूसरी लिस्ट में 35 और तीसरी लिस्ट में 18 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की थी. कुल मिलाकर अब तक आरएलडी ने 61 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. घोषणा के मुताबिक अभी उन्हें 342 नामों की घोषणा और करनी है.
छोटों के साथ मिल RLD दिखा सकती है बड़ी ताकत
सपा की ओर से गठबंधन पर न करने के बाद आरएलडी के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने कहा था कि उनकी पार्टी जेडीयू और अन्य छोटे दलों के साथ मिलकर पूरे राज्य में चुनाव लड़ेगी. हालांकि अभी जेडीयू ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लालू यादव ने अपनी पार्टी (आरजेडी) के यूपी में चुनाव न लड़ने और अखिलेश के लिए प्रचार करने की घोषणा करने के वक्त यह जरूर कहा था कि वे नीतीश कुमार को भी समझाने की पूरी कोशिश करेंगे. आरएलडी के साथ मिलकर कुछ छोटे दल अगर चुनाव लड़ते हैं तो उन सीटों पर फर्क जरूर पड़ सकता है जिन पर जीत का अंतर कम रहा हो.
इन सीटों पर पड़ सकता है फर्क
यूपी की 403 में से 23 ऐसी विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिनमें हार-जीत का अंतर एक हजार वोट से भी कम था, जबकि दस सीटों पर तो 500 वोट से ही हार-जीत का फैसला हुआ था. करीब 41 सीटें ऐसी हैं, जहां महज कुछ हजार वोटों ने प्रत्याशी की जीत को हार में तब्दील कर दिया. छोटे दल और निर्दलीय प्रत्याशी ऐसी सीटों पर बड़े दलों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.
आरएलडी की दलित-मुस्लिम साधने की कोशिश
आरएलडी ने शनिवार को पश्चिमी यूपी में 35 प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की थी. इस लिस्ट में बीजेपी और सपा से आए लोगों को तरजीह दी गई थी. आरएलडी ने इस लिस्ट में जाटों के साथ ही दलित और मुस्लिम वोटरों को भी साधने की पूरी कोशिश की थी. खास बात यह है कि आरएलडी ने लिस्ट में दागी गुड्डू पंडित और उसके भाई मुकेश शर्मा के साथ कुख्यात संजीव जीवा की पत्नी को भी चुनावी मैदान में उतारा है.
आरएलडी ने गैर संप्रदाय और गैर जाति में शादी करने वाली दो दलित बेटियों को रिजर्व सीट से मैदान में उतारा है. हापुड़ सुरक्षित सीट से बुलंदशहर की अंजु मुस्कान को टिकट दिया है, जिनकी शादी बुलंदशहर के आरएलडी नेता फरमान अली से हुई है. पुरकाजी से प्रत्याशी छोटी बेगम भी दलित हैं और उन्होंने भी मुस्लिम से शादी की है. इसी तरह मेरठ की हस्तिनापुर सीट से कुसुम को उम्मीदवार बनाया है, जिनकी शादी भी एक गैरजातीय गुर्जर युवक से हुई है.
आरएलडी यह मान कर चल रही है कि हापुड़ में दलित होने के कारण बेटी मानते हुए अंजु मुस्कान की तरफ दलितों और मुस्लिम से शादी होने पर बहू मानते हुए मुस्लिमों का रुझान उसकी तरफ संभव है. छोटे चौधरी के इस कदम को बहू और बेटी के नाम पर वोट हासिल करने की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है. इससे बीजेपी, बीएसपी, एसपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
अपने ही गढ़ में कमजोर हो चुकी है आरएलडी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का सबसे मजबूत जनाधार था. लेकिन अगर 2012 के आंकड़ों को देखें तो कमजोर आरएलडी ही नजर आती है. पिछले विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को 24, बीएसपी को 23, बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. मथुरा की मांट सीट उपचुनाव के दौरान बीजेपी के खाते में आ गई थी. वहीं मथुरा की गोवर्धन सीट से आरएलडी विधायक अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह से अलीगढ़ की बरौली विधानसभा से आरएलडी विधायक भी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
चुनाव-दर-चुनाव कम होता गया आरएलडी का जादू
आपको बता दें कि आरएलडी की पकड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिलवक्त निम्न स्तर पर है. 2002 के विधानसभा चुनावों में आरएलडी ने 38 उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 14 को जीत मिली थी जबकि 12 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.
2007 के चुनावों में आरएलडी ने 254 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसे सिर्फ 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. खास बात यह थी कि 222 सीटों पर आरएलडी के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. 2007 के चुनावों में आरएलडी का वोट प्रतिशत 3.70% था.
2007 के चुनावों में मिली करारी हार से सीख ले आरएलडी ने 2012 के चुनावों में महज 46 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे. इस बार भी परिणाम आरएलडी के आशानरुप नहीं रहा और उसे सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा. चुनावों में उसके 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. 2012 के चुनावों में आरएलडी का वोट प्रतिशत घटकर 2.33% ही रह गया.