जिस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में बड़ी घोषणाओं और धुंआधार प्रचार की बदौलत विधानसभा में कमल खिलाने की कोशिश कर रहे थे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने एक साक्षात्कार में आरक्षण विरोधी बयान देकर चुनाव की दिशा ही बदल दी थी.
इतिहास उसी क्षण को शायद फिर से दोहरा रहा है. संघ के ही एक वरिष्ठ नेता और विचारक मनमोहन वैद्य ने कहा है कि आरक्षण खत्म कर देना चाहिए.
वैद्य ने कहा, 'आरक्षण अलगाववाद बढ़ाता है. आरक्षण खत्म हो और सबको समान शिक्षा और समान अवसर मिले'. यह चुनाव के लाक्षागृह को आग की सलाई दिखाने जैसा बयान है और ऐसा लगता है कि संघ ने भाजपा के पैर पर यह बयान देकर कुल्हाड़ी मार दी है. भागवत के इस बयान को तब नीतीश कुमार ने बढ़-चढ़कर प्रचारित किया था. लालू प्रसाद ने अपने लगभग हर भाषण में इसका ज़िक्र किया था और इस तरह अति पिछड़ों और दलितों के बीच जारी भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग धरी रह गई थी.
अगड़ों के वोटों तक सिमटी भाजपा बिहार विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हारी. यह हार भाजपा की हार थी. लेकिन विश्लेषक मानते हैं और भाजपा को जिन कारणों से इस हार का सामना करना पड़ा था, भागवत का बयान उनमें से एक प्रमुख कारण था.
उत्तर प्रदेश में भाजपा का समीकरण
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का सारा गणित ही जिन जातियों के इर्द-गिर्द है, वो आरक्षण की परिधि में आने वाली जातियां हैं. भाजपा को वोट का विश्वास केवल अगड़ों से है. लगभग 40 प्रतिशत वोट ऐसा है, जिसमें भाजपा को शायद ही कुछ हिस्सा मिले. ये वोटबैंक है मुसलमानों, जाटवों और यादवों का.
भाजपा केवल अगड़ों के वोट के सहारे सत्ता के सिंहासन पर बैठ नहीं सकती. इसीलिए वो अपना ध्यान ग़ैर-जाटव दलितों और यादवों के अलावा अन्य ओबीसी और अति पिछड़ों पर केंद्रित कर रही है.
भाजपा का आकलन है कि जीत के लिए ज़रूरी संख्या इन्हीं जातिवर्गों से आ सकती है. लेकिन अगर मनमोहन वैद्य का बयान भाजपा विरोधी दलों के प्रचार का नारा बन जाता है तो भाजपा के लिए यह एक बुरी खबर है. और ऐसा कोई कारण नहीं है कि अन्य राजनीतिक दल इस अवसर को चूकेंगे.
भाजपा अब मुश्किल में है. एक तरह से यह भाजपा के प्रचार अभियान को बड़ा झटका है और भाजपा के लिए अब वोट मांगने में खासी मुश्किल सामने आ सकती है. बिहार इस तरह के बयानों के प्रतिकूल असर का प्रमाण है.
(इति)