समाजवादी पार्टी में मचे घमासान को कैसे सुलझाया जाए? कौन होगा साइकिल पर सवार? कौन चलेगा पैदल? किसकी होगी जीत? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए चुनाव आयोग 47 साल पुराना फॉर्मूला इस्तेमाल कर सकता है.
दोनों दलों को देनी पड़ेंगी तीन अग्नि परीक्षा
पहले हम, पहले हम की खींचातानी में लगे बाप-बेटे मुलायम और अखिलेश की लड़ाई अब चुनाव आयोग के दरबार में है. दोनों ने समाजवादी पार्टी पर अपनी दावेदारी ठोकी है. यूं तो चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में संभवतः चुनाव आयोग साइकिल का सिंबल फ्रीज कर दोनों को नए चुनाव चिन्ह पर लड़ने को कह सकता है, लेकिन अंत में साइकिल की सवारी कौन करेगा इसका फैसला चुनाव आयोग ट्रिपल टेस्ट के जरिए करेगा. चुनाव आयोग अपनी कानूनी किताब खोल 1969 की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विभाजन विवाद को अपना आधार मान सकता है.
दरअसल 1968 के सिंबल आदेश का पहला ट्रायल भी इसी के जरिए हुआ था. राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस दो समूहों में बंट गई थी. इंदिरा गांधी का गुट कांग्रेस 'जे' जिसकी अध्यक्षता पहले सी सुब्रह्मण्यम और बाद में जगजीवन राम ने की. दूसरा ग्रुप कांग्रेस ‘ओ’ का था, जिसका नेतृत्व एस निजलिंगप्पा ने किया. इसी पर सपा के दोनों गुटों को तीन टेस्ट से गुजरना पड़ेगा.
पहला टेस्ट: संविधान के नियमों का पालन
इसके लिए चुनाव आयोग देखेगा कि किस पार्टी ने संविधान के नियमों का उल्लंघन किया है. अखिलेश और मुलायम कैंप दोनों ही एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि दूसरे ने संविधान को ताक पर रखा. ऐसे में चुनाव आयोग दस्तावेजों का सहारा लेगा. 1969 में एस निजलिंगप्पा ने पार्टी संविधान को आधार बनाकर ही कांग्रेस पर अपना दावा ठोका था. इसके बाद दूसरा टेस्ट था पार्टी के लक्ष्य और उद्देश्य का पालन, जिसमें कांग्रेस(जे) और कांग्रेस(ओ) दोनों खरे उतरे थे.
दूसरा टेस्ट: लक्ष्य और उद्देश्य के पालन की परीक्षा
उत्तर प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना साइकिल पर दावा कर सकते हैं. वहीं मुलायम पार्टी की गतिविधियां दिखा खुद को सही साबित करने की कोशिश करेंगे.
तीसरा टेस्ट: बहुमत टेस्ट का फाइनल राउंड
चुनाव आयोग ये चेक करेगा कि सपा के संगठन, लोकसभा और विधानसभा में किसके साथ ज्यादा नेता हैं. इस राउंड में अखिलेश का पलड़ा भारी है. पहले ही रामगोपाल यादव एक भारी भरकम लिस्ट आयोग को थमा चुके हैं.
1969 की लड़ाई में कांग्रेस(जे) ने बाजी मारी थी. जगजीवन राम के समूह को संगठन और लोकसभा-विधानसभा के अधिकतर लोगों का बहुमत हासिल था. इस फैसले के खिलाफ जब निजलिंगप्पा सुप्रीम कोर्ट गए, तो कोर्ट ने भी कहा कि बहुमत और गिनती का टेस्ट सबसे अहम है. चुनाव अयोग ने 1 साल 20 दिनों में इसका फैसला किया था.