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अखिलेश अकेले लड़े तो चुनाव प्रचार में अहम होगा डिंपल यादव का रोल

अगर अखिलेश यादव अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ते हैं तो उनके बाद पार्टी की स्टार प्रचारक डिंपल यादव ही होंगी. कार्यकर्ता अभी से विकास की चाभी-डिंपल भाभी जैसे नारे गढ़ रहे हैं.

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी और सांसद डिंपल यादव
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी और सांसद डिंपल यादव

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समाजवादी पार्टी के पिछले दो महीने के घटनाक्रम को देखें तो कोई भी सपा और उसके नेताओं के बारे में दावे से कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता लेकिन आज के हालात देखकर इस बात की संभावना ज्यादा है कि अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद ही पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे. अगर ऐसा होता है तो उनकी पत्नी और कन्नौज से सांसद डिंपल यादव की भूमिका चुनाव प्रचार में काफी अहम होगी.

राजनीति में पर्याप्त अनुभव हासिल कर चुकी हैं डिंपल
कन्नौज से लोकसभा सांसद डिंपल यादव इसी महीने की 15 तारीख को 39 साल की हो जाएंगी. अखिलेश यादव से उनकी शादी को पूरे 17 साल हो चुके हैं. राजनीति में उनकी एंट्री 2009 में तब हुई जब पति अखिलेश यादव द्वारा छोड़ी गई फिरोजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाकर उतारा. हालांकि डिंपल ये महत्वपूर्ण चुनाव हार गईं लेकिन तीन साल बाद 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए जब अखिलेश ने कन्नौज सीट भी छोड़ दी तो वहां से डिंपल निर्विरोध जीतने में सफल रहीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे यूपी में मोदी की आंधी में विपक्ष का वोट बैंक उड़ा जा रहा था तब भी डिंपल कन्नौज की अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं. उन्होंने बीजेपी के सुब्रत पाठक को तकरीबन 20 हजार वोटों के अंतर से हराया.

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इस बार बढ़ जाएगी डिंपल की जिम्मेदारी
अगर अखिलेश यादव अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ते हैं तो उनके बाद पार्टी की स्टार प्रचारक डिंपल यादव ही होंगी. कार्यकर्ता अभी से 'विकास की चाभी-डिंपल भाभी' जैसे नारे गढ़ रहे हैं. डिंपल यादव पहले भी चुनाव प्रचार का काम देखती रही हैं. लेकिन अभी तक वे परिवार की बहू के रोल में ज्यादा दिखी हैं. चूंकि इस बार अखिलेश का चुनाव प्रचार वन मैन शो ज्यादा रहने वाला है, ऐसे में डिंपल यादव पर ही जिम्मेदारी होगी कि जहां अखिलेश नहीं जा पाएंगे, वहां वे पार्टी के पक्ष में चुनावी सभाएं करें.

सपा के लिए प्रियंका जैसी भूमिका निभा सकती हैं डिंपल
डिंपल के बारे में कहा जा रहा है कि वे समाजवादी पार्टी के लिए पूरे प्रदेश में वही काम कर सकती हैं जो रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी करती आई हैं. डिंपल के साथ खास बात ये है कि वे प्रियंका की तरह राजनीति से बाहर नहीं हैं बल्कि सपा में पूरी तरह से सक्रिय हैं. उन्हें चुनाव लड़ने का भी अच्छा खासा अनुभव हासिल है और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर उन्होंने कई बार अपनी बात सार्वजनिक रूप से रखी है.

प्रियंका-डिंपल की साथ-साथ रैली गेमचेंजर साबित हो सकती है
अगर अखिलेश यादव सपा पर हावी रहते हैं तो कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन तय माना जा रहा है. कांग्रेस लगातार संकेत दे रही है कि इस बार चुनावों में प्रियंका का रोल पहले के मुकाबले ज्यादा व्यापक होगा. अगर ऐसा हुआ तो डिंपल और प्रियंका साथ रैली कर सकते हैं. दोनों का एक मंच पर जुटना भीड़ जुटाने के लिहाज से इतना महत्वपूर्ण दांव होगा जिसकी काट खोजना विपक्षी बीजेपी और बीएसपी के लिए खासा मुश्किल होगा.

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युवा, ग्रामीण और महिला मतदाताओं पर असर डालेगी डिंपल की छवि
डिंपल यादव युवा हैं और वे युवा मतदाताओं से संवाद स्थापित करने में अखिलेश यादव की मदद कर सकती हैं. इसके अलावा महिलाओं के बीच भी वे खासी लोकप्रिय हैं. पिछले साल महिला शिक्षा और सुरक्षा अभियान कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मंच पर अखिलेश यादव की मौजूदगी में महिलाओं के मुद्दे पर सरकार को घेरा था. महिलाओं की लिए यूपी सरकार की हेल्प लाइन 1090 को भी उन्होंने काफी प्रमोट किया है. इसके अलावा उनकी यादव परिवार की बहू के रूप में ग्रामीण मतदाताओं के बीच जो छवि है उसका फायदा भी चुनावों में अखिलेश यादव को मिल सकता है.


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