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अभी तक 'डबल डी', अब 'सी' की बात करने लगे सीएम अखिलेश

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव खेला है. अखिलेश कैबिनेट ने ओबीसी के दायरे में आने वाली 17 जातियों को अनुसूचित जाति यानी दलित कोटे में शामिल किए जाने पर मुहर लगा दी है. सूबे में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के इस कदम से सियासी पंडित हैरान हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी में सभाएं कर रहे हैं और नोटबंदी के मसले पर दोनों के बीच सियासी शब्दबाण चल रहे हैं. इस दौरान खुद को 'विकास पुरुष' के तौर पर अपनी इमेज बनाने की कोशिश में जुटे सीएम अखिलेश यादव की ओर से 'जाति कार्ड' का दांव अचरज में डालता है.

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अखिलेश यादव
अखिलेश यादव

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव खेला है. अखिलेश कैबिनेट ने ओबीसी के दायरे में आने वाली 17 जातियों को अनुसूचित जाति यानी दलित कोटे में शामिल किए जाने पर मुहर लगा दी है. सूबे में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के इस कदम से सियासी पंडित हैरान हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी में सभाएं कर रहे हैं और नोटबंदी के मसले पर दोनों के बीच सियासी शब्दबाण चल रहे हैं. इस दौरान खुद को 'विकास पुरुष' के तौर पर अपनी इमेज बनाने की कोशिश में जुटे सीएम अखिलेश यादव की ओर से 'जाति कार्ड' का दांव अचरज में डालता है.

अखिलेश सरकार ने ऐसा क्यों किया?
सूबे में अगले साल चुनाव होने हैं. ऐसे में अखिलेश सरकार के इस कदम को चुनाव के मद्देनजर इन जातियों को लुभाने के लिए लिया गया फैसला माना जा रहा है. इन जातियों को दलित कोटे में शामिल किए जाने से इन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण का फायदा होगा.

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यूपी में इन 17 जातियों का वोट बैंक 14 फीसदी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में इनमें से ज्यादातर ने बीजेपी के समर्थन में वोट दिया था. समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में इन्हें अपने पाले में खींचना चाहती है. क्योंकि ये जातियां सूबे में करीब 250 विधानसभा सीटों के नतीजों पर असर डालती हैं.

सपा सरकार ने ऐसा दूसरी बार किया है. पिछली बार मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में भी ऐसा किया गया था. 2006 में मुलायम सरकार ने 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची और 3 अनुसूचित जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए शासनादेश जारी किया था. हालांकि मायावती सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद इसे वापस ले लिया था. अगस्त 2013 में अखिलेश सरकार ने इस संबंध में एक प्रस्ताव विधानसभा में पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजा था.

अभी तक 'डबल डी', अब 'सी' की बात
सीएम अखिलेश यादव डेवलपमेंट यानी विकास और डिमोनेटाइजेशन यानी नोटबंदी के मसले पर विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में थे. लेकिन अब वो 'कास्ट' यानी जाति की बात करने लगे हैं.

यूपी विधानसभा के मानसून सत्र के आखि‍री दिन यानी एक सितंबर 2016 को अखिलेश यादव ने कहा था, ‘यह सच है कि जाति और धर्म के समीकरण काम करते हैं, लेकिन अपने समीकरण ठीक करने के बजाय आपको विकास के बारे में बात करनी चाहिए. जनता को ऐसे लोग चुनने चाहिए जो विकास की बात करें.’

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वहीं 21 दिसंबर को भी सीएम अखिलेश ने कुछ ऐसा ही कहा था, 'जाति के आधार पर राजनीति के दिन अब पूरे हो गए हैं. अब सिर्फ दो ‘डी’ ही मायने रखते हैं और वो है डेवलेपमेंट और डिमोनेटाइजेशन (विकास और नोटबंदी). कोई भी व्यक्ति पार्टियों के भीतर गुटबाजी या कैबिनेट में हुए फेरबदल की बातें नहीं कर रहा. लोग पिछले पांच सालों के काम को देखकर हमें वोट देंगे. नोटबंदी के कारण लोगों को जिस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, वो भी हमें जीत दिलाने में मदद करेगा. बैंक और एटीएम के सामने जो लंबी लाइनें लगी हैं, वे ही कल समाजवादी पार्टी के वोटर होंगे.’

लेकिन जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, अखिलेश को लगने लगा है कि वोटरों का दिल जीतने और सियासत पर असर डालने के लिए क्या जरूरी है.

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