उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा यश भारती सम्मान को ताबड़तोड़ तरीके से बांटने को लेकर दायर की गई एक याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा कि पुरस्कार के लिए रकम सरकारी खजाने से दी जाती है यह टैक्स पेयर्स का पैसा होता है और इसे मनमाने तरीके से नहीं बांटा जा सकता. कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि अवार्ड के लिए जिन लोगों को चुना जा रहा है उसका आधार क्या है?
चुनावी साल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यश भारती पुरस्कार बांटने का जोश चढ़ा कि इस साल वो अभी तक 146 लोगों को यश भारती पुरस्कार से नवाज चुके हैं. साल भर के भीतर ही इस पुरस्कार को बांटने के लिए सरकार चार बार समारोह कर चुकी है. हद तो तब हो गई जब पिछले महीने यश भारती पुरस्कार बांटने के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस समारोह का संचालन कर रही उद्घोषिका को भी तत्काल यश भारती देने की घोषणा कर दी. आमतौर पर इस तरह के पुरस्कार सरकारी अफसरों को रिटायरमेंट से पहले नहीं दिए जाते. लेकिन अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में एक सचिव ही नहीं उनकी पत्नी को भी यश भारती दे दिया.
गौरतलब है कि यश भारती सम्मान उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा सम्मान है जिसमें 11 लाख रुपए का पुरस्कार तो दिया ही जाता है, आजीवन ₹50,000 महीने की पेंशन भी मिलती है. इसकी शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने 1994 में इस पुरस्कार की स्थापना की थी. पहले यह पुरस्कार साल में कुछ चुनिंदा लोगों को मिलता था. इसे पाने वाले लोगों में अमिताभ बच्चन, गोपालदास नीरज, नसीरुद्दीन शाह, अनूप जलोटा, नवाजुद्दीन सिद्दकी जैसी मशहूर हस्तियां शामिल हैं.
मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी को होनी है जब कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह इस अवार्ड से जुड़े सभी दस्तावेज अदालत में पेश करें.
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