कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव महज एक जीत और हार का विषय नहीं है. 2017 के चुनाव ही कांग्रेस और राहुल गांधी का भविष्य भी तय करेंगे. पिछले काफी समय से कांग्रेस में कई नेता शीर्ष नेतृत्व के बदलाव की मांग कर चुके हैं. राहुल गांधी की ताजपोशी होते-होते एक बार फिर टल चुकी है. कयास लगाए जा रहे थे कि छुट्टी से लौटते ही राहुल गांधी की ताजपोशी हो जाएगी. लेकिन, चुनाव आयोग ने उसी बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा कर दी. जिस वजह से राहुल गांधी की ताजपोशी मुल्तवी हो गई.
औपचारिक घोषणा ही है बाकी
गौरतलब है कि कांग्रेस कार्यसमिति ने बीते 7 नवंबर को ही अपनी बैठक में एक सुर में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष पद सौंपने का सोनिया गांधी से आग्रह किया था. दस जनपथ के भरोसेमंद वरिष्ठ पार्टी नेता पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने कार्यसमिति में राहुल को तत्काल अध्यक्ष पद सौंपने की आवाज उठाई थी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत सभी सदस्यों ने इसका समर्थन किया था. ऐसे में कांग्रेस के अगले अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के नाम की घोषणा मात्र एक औपचारिकता भर रह गई है. नए अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया के तहत सोनिया गांधी का इस्तीफा कांग्रेस कार्यसमिति में पहले मंजूर होगा और फिर राहुल को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा.
सोनिया के नाम है ये रिकॉर्ड
सोनिया ने 1998 में पार्टी की अध्यक्षा की कुर्सी संभाली थी. कांग्रेस की वह सबसे लंबे समय तक रहने वाली अध्यक्ष हैं.
राहुल के नाम होगा ये रिकॉर्ड
राहुल की लीडरशिप में कांग्रेस पिछले 60 महीने में 20 चुनाव हार चुकी है. गांधी परिवार में शायद ही ऐसा कोई चेहरा होगा जिसने कांग्रेस के ऐसे हाल देखे होंगे. अब देखना होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राहुल कांग्रेस को किस दिशा में ले जाते हैं.
लगते रहे हैं 'राहुल हटाओ' के नारे
कांग्रेस का शीर्ष धड़ा भले ही राहुल गांधी को अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहता हो लेकिन कांग्रेस में समय-समय पर राहुल के खिलाफ आवाज भी उठती रही है. चुनावों में लगातार हार का मुंह देख रही कांग्रेस में कई बार 'राहुल हटाओ कांग्रेस बचाओ' के नारे भी लग चुके हैं.
यूपी है अहम
2017 में पांच राज्यों (यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर) में चुनाव हो रहे हैं. कांग्रेस की स्थिति सभी राज्यों में बेहतर नहीं है. सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस लड़ाई में है लेकिन गोवा और मणिपुर में नहीं. यूपी में पिछले 27 वर्षों से कांग्रेस की हालत खस्ता है. इस बार चुनाव में कांग्रेस के लिए कैंपेनिंग करने उतरे पीके और उनकी हाइटेक टीम भी कुछ खास नहीं कर पाई अब पार्टी के पास सपा से गठबंधन के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.
सपा का गठबंधन कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती उत्तराखंड बचाना और यूपी में कांग्रेस को सम्मानजनक स्थिति में लाना ही है. क्योंकि इसे लोग 2019 के आम चुनावों के सेमी फाइनल के तौर पर देख रहे हैं. अगर कांग्रेस को एक हार मिली तो राहुल के भविष्य पर सवाल फिर खड़ा हो सकता है.
2002 में कांग्रेस ने यूपी में 402 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. जिनमें से 25 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली जबकि 334 सीटों पर कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. कांग्रेस को कुल 8.96% वोट मिले थे. चुनावों में कांग्रेस सपा, बसपा और बीजेपी के बाद चौथे नंबर पर आई थी.2007 में कांग्रेस ने यूपी में 393 सीट पर ही उम्मीदवार उतारे. जिनमें से कुल 22 सीटों पर ही कांग्रेस को जीत हासिल हुई जबकि 323 सीटों पर कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. कांग्रेस को कुल 8.61% वोट मिले थे और पार्टी ने राज्य में चौथा स्थान बनाए रखा.
2012 के चुनावों में कांग्रेस ने यूपी में कुल 355 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जिनमें से कुल 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 240 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. कांग्रेस को कुल 11.65% वोट मिले थे और पार्टी ने राज्य में चौथा स्थान बनाए रखा. यहां यह बात गौर करने वाली थी कि इस बार कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा और 31 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही.