यूपी विधानसभा चुनावों के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है. कांग्रेस की निगाहें मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के झगड़े की तस्वीर साफ होने पर हैं. परदे के पीछे तेजी से कवायद चल रही है. यूपी में कांग्रेस की ओर से सीएम उम्मीदवार शीला दीक्षित ने आजतक से बातचीत में कहा है कि अखिलेश के साथ समझौता होता है, तो फायदेमंद रहेगा और वो खुद सीएम की उम्मीदवारी छोड़ने को तैयार हैं. सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन के लिए अंकगणित भी तैयार हो रहा है, खाका तैयार हो रहा है. महागठजोड़ के लिए तमाम दलों से अलग अलग बातचीत भी चल रही है. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, लोकदल, जदयू, पीस पार्टी और आरजेडी के अलावा संजय निषाद की निषादों की पार्टी, राजभर समाज की एक पार्टी, अपना दल का दूसरा गुट, इन सबको मिलाकर महागठजोड़ बनाने की तैयारी है.
बात आंकड़ों की करें तो कुल 125 से 140 के करीब सीटें अखिलेश छोड़ सकते हैं. इसमें कांग्रेस की जिम्मेदारी होगी कि वो बाकी दलों को सीटें दें. दरअसल, राहुल और जयंत चौधरी के संबंधों के चलते आरएलडी भी कांग्रेस से बात कर रही है. कांग्रेस आरएलडी को 18-20 सीटें दे सकती है. हालांकि आरएलडी 25 से कम पर राजी नहीं है. बाकी पार्टियों को थोड़ी बहुत सीटें दी जाएंगी, जिससे महागठबंधन नजर आए. साथ ही नीतीश कुमार के जरिये प्रदेश में कुर्मी मतदाताओं को खासतौर पर रिझाने की कोशिश होगी. साथ ही चर्चा इस बात की भी है कि शीला की उम्मीदवारी वापस होने पर महागठबंधन का सीएम चेहरा अखिलेश यादव होंगे, तो महागठबंधन से कांग्रेस उपमुख्यमंत्री पद के लिए नए चेहरे का ऐलान करने पर विचार कर सकती है. हालांकि, आरएलडी इस सूरत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फायदे के लिहाज से जयंत चौधरी को भी उपमुख्यमंत्री के तौर महागठजोड़ की तरफ से ऐलान करने की मांग रख सकती है.
कुछ पेंच सुलझने बाकी हैं
लेकिन अभी कुछ पेंच सुलझ गए हैं, तो कुछ सुलझने बाकी हैं. अमेठी की सीट से मुलायम के करीबी और विवादित गायत्री प्रजापति सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. इस सीट को राहुल की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए कांग्रेस मांग रही है. कांग्रेस को लगता है कि मुलायम के करीबी गायत्री का टिकट खुद अखिलेश ही उड़ा देंगे वर्ना वो उनकी सीट शिफ्ट कर देंगे. दूसरे कैबिनेट मंत्री मनोज पाण्डेय हैं, जो खुद रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक हैं. सोनिया के इलाके का मामला है, साथ ही मामला प्रियंका के करीबी अजयपाल सिंह उर्फ राजा अरखा का है, जो पिछला चुनाव हार गए थे. अब जानकारी मिली है कि, मनोज पाण्डेय खुद ही सीट बदलना चाह रहे हैं.
लेकिन गठजोड़ में असल दिक्कत उन सीटों पर आ रही है, जहां पहले और दूसरे नंबर पर सपा और कांग्रेस रहे हैं. ऐसी सीटों पर कांग्रेस और सपा के जो दिग्गज दूसरे नंबर पर रहे, उनको एडजस्ट करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. जैसे तकरीबन 40 सीटें ऐसी हैं जहां सपा का विधायक है और दूसरे नंबर पर कांग्रेस का उम्मीदवार. ऐसी सीटों पर दूसरे नंबर पर आए कई कांग्रेसी दिग्गज हैं, जिसको लेकर मुश्किल हो रही है. उदाहरण के तौर पर अलीगढ़ से विवेक बंसल और बांदा से विवेक सिंह जैसे सीनियर नेता हैं, जो पिछला चुनाव सपा के उम्मीदवार से मामूली अंतर से हार गए थे.
ऐसे में दोनों पक्षों के नेताओं का कहना है कि मुलायम और अखिलेश का मामला क्लियर हो तो उसके बाद छोटे मोटे पेंच भी दुरुस्त हो जाएंगे. लेकिन सूत्रों का मानना है कि वक़्त कम है, जो भी होना होगा अगले एक हफ्ते के भीतर हो जाएगा. लेकिन सभी ये भी कहते हैं कि गेंद अब अखिलेश के पाले में है, क्योंकि खुद कांग्रेस भी शुरू से फैसले लेने वाले अखिलेश के साथ तालमेल की शर्त रखती रही है. यानी बिहार की तर्ज पर यूपी में अखिलेश को नीतीश की भूमिका में बने रहना होगा. हालांकि राजनीति में कहते हैं कि गठजोड़ जब हो जाए, तभी मानिए, क्योंकि सियासी गठजोड़ की तार बहुत नाजुक होती है. वैसे भी 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच कई राउंड की बातचीत हुई, लेकिन आखिर में तालमेल नहीं हो सका था.