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यूपी चुनाव: सेमरा के इन विस्थापितों की सुध लेने वाला कोई नहीं

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जहां राजनीतिक दल मतदाताओं को रिझाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपना रहे हैं, वहीं गाजीपुर जनपद के मोहमदाबाद तहसील के सेमरा गांव के लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं. साल 2013 में हुए गंगा के कटान में सेमरा गांव आंशिक रूप से अपना वजूद खो चुका है.

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सेमरा के विस्थापित परिवार स्कूलों में सिर छुपाने को मजबूर
सेमरा के विस्थापित परिवार स्कूलों में सिर छुपाने को मजबूर

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जहां राजनीतिक दल मतदाताओं को रिझाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपना रहे हैं, वहीं गाजीपुर जनपद के मोहमदाबाद तहसील के सेमरा गांव के लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं. साल 2013 में हुए गंगा के कटान में सेमरा गांव आंशिक रूप से अपना वजूद खो चुका है. ऐसे में सेमरावासी विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं. कुल विस्थापित 558 लोगों में से 378 लोग पिछले कई सालों से आसपास के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में आसरा लिए हुए हैं. आजतक की टीम ने ऐसे ही एक स्कूल का जायजा लिया.

मिडिल स्कूल के परिसर में खेलते ये बच्चे सेमरा से विस्थापित हुए परिवारों के हैं. आज कल स्कूल में विधानसभा चुनाव के कारण पढ़ाई का काम स्थगित है. आम दिनों में एक क्लास रूम में 3 से 4 परिवार के सदस्यों को गुजर बसर करना पड़ता है. अंदाज़ा लगाइए जब स्कूल चल रहा होता है, तो क्या नज़ारा होगा. बाहर मैदान में गाय, मुर्गे, बकरी और विस्थापितों के छोटे बच्चे और महिलाएं बगल में होते होंगे.

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अब चुनाव में स्कूल खाली करने के फरमान ने इनकी परेशानी में इजाफा कर दिया है. ऐसे में सेमरा विस्थापितों का दर्द छलक ही आता है. वह कहते हैं, 12 घंटे की मजदूरी करके 200 रुपये मिलते हैं, कहां जाएंगे... हमारा गांव तो गंगा में समा गया, सरकार से भी कुछ नहीं मिलता. इन्हीं विस्थापितों में शामिल अमरनाथ कहते हैं, 'हम चुनाव के दिन बाहर चले जाएंगे. लेकिन हमारे जानवर और बच्चों का क्या होगा?

स्कूल के कमरे में ही पुआल के ऊपर फटा कंबल बिछाकर बिस्तर बनाए महिला कहती हैं, बस किसी तरह गुज़र रही है. इन 100 परिवारों की महिलाओं ने अपने लिए मजबूरी में बाथरूम तैयार किया है, जो किसी को भी शर्मसार कर दे. बस लकड़ी की टेढ़ी-मेढ़ी 3 फुट की चारदीवारी फटी धोतियों से ढंककर इज़्ज़त बचाने का साधन है.

सरकार ने सेमरा विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पास के ही शेरपुर गांव में जमीन की पैमाइश की है, लेकिन उस जमीन को मुआवजे के तौर पर विस्थापितों ने लेने से इनकार कर दिया है. स्थानीय पत्रकार गोपाल बताते हैं कि सरकार ने जिस जमीन पर पुनर्वास की योजना बनाई है, वो गंगा नदी के किनारे का इलाका है, जो कि बाढ़ और कटान प्रभावित है. ऐसे में इनकी समस्या का स्थाई निदान होता नहीं दिख रहा.

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वहीं गांव बचाओ संघर्ष समिति के प्रेम गुप्ता विस्थापन को लेकर विगत सालों में सरकार की नीतियों को सहराहन करते हैं. गुप्ता का कहना है, '2012 के पहले विस्थापन के लिए जमीन आवंटन की कोई योजना नहीं थी, लेकिन अब सरकारी नियम के अनुसार विस्थापित पुनर्वास के लिए जमीन पाने के हकदार हैं. लेकिन सेमरा विस्थापितों को पुनः बाढ़ प्रभावित इलाके में जमीन आवंटित करके सरकार ने उनके साथ भद्दा मजाक किया है.

इस इलाके में 8 मार्च को मतदान होना है. प्रशासन ने विस्थापितों से स्कूल खाली करने को कहा है. ऐसे में सेमरा के ये विस्थापित मतदान वाले दिन अपने मूल गांव में वोट देने जाने का हवाला देते हुए स्कूल परिसर खाली करने पर राजी हो गए हैं.

विधानसभा में बह रही सियासी बयार में जहां वादों और आश्वासन की झड़ियां लगी हुई हैं. वहीं राजनीतिक उदासीनता के शिकार ये लोग उस दिन के इंतज़ार में है, जब उनके ऊपर से विस्थापित का तमगा हटेगा और ये पुनर्वासित होकर नए जीवन की शुरुआत कर पाएंगे.

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