उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं. चौथे चरण के लिए बुंदेलखंड के सात जिलों समेत कुल 12 जिलों की 53 विधानसभा सीटों पर 23 फरवरी को मतदान होना है. नेहरू-गांधी परिवार के इस गढ़ में इस बार उनके साथ समाजवादी परिवार भी मिलकर चुनाव लड़ रहा है. गठबंधन के बाद यूपी के दो लड़के यानी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी मिलकर चुनावी जनसभाएं कर रहे हैं और लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ यूपी का तीसरा लड़का चुनावी समर से बिल्कुल गायब है. इस लड़के का नाम है वरुण गांधी जो सुल्तानपुर से बीजेपी के सांसद हैं और यूपी में बीजेपी के सबसे चर्चित युवा नेता हैं.
वरुण गांधी को भारतीय जनता पार्टी ने यूपी चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की दूसरी लिस्ट में शामिल किया. हालांकि दूसरी लिस्ट में भी वरुण का नाम सबसे नीचे आया. वरुण को तीसरे और चौथे चरण में चुनाव प्रचार करना था. वरुण न तो तीसरे चरण में कोई जनसभा करते नजर आए और न ही कहीं चौथे चरण के लिए उनकी मौजूदगी सामने आ रही है. यहां तक कि अपने संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर में भी वरुण नदारद हैं.
2009 के लोकसभा चुनाव में वरुण ने पीलीभीत सीट से 50 फीसदी वोटों के साथ जीत दर्ज की जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में वरुण सुल्तानपुर लोकसभा सीट से करीब 43 फीसदी वोटों के साथ सांसद बने. इतना ही नहीं अपने संसदीय क्षेत्र में वरुण गरीबों से लेकर युवाओं के बीच काफी काम करने के लिए जाने जाते हैं. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि विरोधियों के खिलाफ सख्त लहजा रखने वाला बीजेपी का ये फायरब्रांड युवा नेता फिलहाल खामोश है.
इन वजहों से खामोश हैं वरुण
राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा ये है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी में वरुण का कद घटना शुरु हो गया. 2014 में बीजेपी के सबसे युवा राष्ट्रीय महासचिव के पद से वरुण को हटा दिया गया.
इसके अलावा 12 जून 2016 को इलाहाबाद में बीजेपी राष्ट्री य कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पूरे शहर में वरुण गांधी के पोस्टेर लगे. पोस्टरों में वरुण गांधी को यूपी का सीएम फेस बनाने की मांग उठाई गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की उस बैठक में पार्टी यूपी चुनावों को लेकर रणनीति को अंतिम रूप देने में लगी थी और इलाहाबाद की दीवारों पर पोस्टर चस्पा होने के बाद पार्टी में ये संदेश गया कि वरुण अपनी दावेदारी पेश करना चाह रहे थे. दरअसल वरुण खुद भी दो दर्जन वाहनों का काफिला लेकर शहर में रोड शो करते नजर आए थे.
माना ये भी जाता है कि गांधी परिवार से वरुण का गहरा ताल्लुक होना भी मोदी के नेतृत्व में उनके हाशिये का सबब बना है. दरअसल इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है. वरुण गांधी ने कभी पार्टी लाइन के तहत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या राहुल गांधी को लेकर टिप्पणी नहीं की. यहां तक कि वरुण ने सोनिया और राहुल के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी में बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार तक करने का दम नहीं भरा. सार्वजनिक मंचों पर गांधी परिवार को घेरने की बीजेपी की आकांक्षाओं को भी वरुण ने कभी पूरा नहीं किया.
वरुण की गैरमौजूदगी सिर्फ चुनावी मंचों पर नहीं है बल्कि सोशल मीडिया से भी चुनाव में उनकी घटती रूचि के प्रमाण मिल रहे हैं. एक तरफ पीएम मोदी से अखिलेश और राहुल की रैलियों का जहां सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण हो रहा है वहीं वरुण के ट्विटर और फेसबुक वॉल पर यूपी चुनाव से जुड़ी कोई तस्वीर तक दिखाई नहीं दे रही है. चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद वरुण की फेसबुक वॉल पर राजस्थान और केरल में छात्रों के बीच कार्यक्रमों की तस्वीरें और वीडियो ही अपलोड की गई हैं.
हाल ही में वरुण गांधी का आपत्तिजनक स्थिति में एक वीडियो भी वायरल हुआ था. चर्चा है कि वरुण की खामोशी और डिफेंसिव मोड के पीछे ये भी एक बड़ी वजह है. बहरहाल वरुण गांधी के गढ़ में 23 फरवरी को मतदान है. ऐसे में वरुण का चुनाव प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा न लेना पार्टी में उनके रुतबे और भूमिका दोनों पर सवाल खड़े करता है.