यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार समाजवादी पार्टी के परिवार का झगड़ा पहली बार घर के बाहर गलियों से होते हुए यूपी की सड़कों तक देखने को मिला. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस लड़ाई में पार्टी में अपना वर्चस्व क़ायम किया और साथ ही पार्टी को लेकर बनी महिला विरोधी छवि को भी तोड़ने की कोशिश शुरू की.
अखिलेश यादव यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि उनके पांच साल के कार्यकाल में राज्य की कानून-व्यवस्था, पार्टी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी और महिलाओं की सुरक्षा बड़े मुद्दे हैं. कानून-व्यवस्था और कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी जैसे मुद्दे तो चाचा शिवपाल पर डाल कर अखिलेश ने अपनी छवि बेदाग बनाने की कोशिश कर ली, लेकिन उन्हें शायद यह एहसास हुआ कि महिला सुरक्षा का मुद्दा सिर्फ महिला नेता के सहारे ही पार लगाया जा सकता है.
इसके बाद अखिलेश यादव की पत्नी और सांसद डिंपल यादव ने इसकी ज़िम्मेदारी उठाई और अखिलेश यादव के कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया. डिंपल यादव अपनी रैली और सभाओं के साथ-साथ इंटर्व्यू में भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अखिलेश सरकार में शुरू की गई डायल-100 और डायल-109 जैसे हेल्पलाइन सेवाओं की जिक्र करने से नहीं चूकतीं. इसके साथ ही वह अपनी सरकार की तरफ से महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी देती हैं.
डिंपल को आगे लाने के पीछे अखिलेश यादव की एक मजबूरी यह भी मानी जाती है कि उनके छोटे भाई की पत्नी अपर्णा यादव इस बार लखनऊ कैंट से चुनाव लड़ रही हैं और वह जिस तरह से आए दिन बेबाक़ी से हर मुद्दे पर अपनी राय रखती रही हैं, उसके बाद अखिलेश को डर था कि कहीं पार्टी में महिला ब्रिगेड की कमान अपर्णा यादव के हाथ न चली जाए.
इतना ज़रूर है कि डिंपल यादव ने जिस तरह कांग्रेस के साथ गठबंधन में बड़ी भूमिका निभाई और इस चुनाव में प्रचार किया है, उससे एक बात साफ़ हो गई है कि अब समाजवादी पार्टी के सभी फैसलों में डिंपल यादव की भागीदारी बढ़ती जाएगी. हालांकि यह तो चुनाव के बाद ही साफ़ हो पाएगा कि महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर डिंपल कितनी कारगर साबित हुई.