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उत्तराखंड बीजेपी में विजय बहुगुणा का बढ़ता कद?

उत्तराखंड में चुनाव करीब आने के साथ ही बीजेपी के बड़े नेताओं की पेशानी पर बल पड़ते जा रहे हैं. आखिर हो भी क्यों नहीं, क्योंकि बीजेपी दफ्तर में हर उथल-पुथल सिर्फ विजय बहुगुणा के इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आती हैं.

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विजय बहुगुणा
विजय बहुगुणा

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उत्तराखंड में चुनाव करीब आने के साथ ही बीजेपी के बड़े नेताओं की पेशानी पर बल पड़ते जा रहे हैं. आखिर हो भी क्यों नहीं, क्योंकि बीजेपी दफ्तर में हर उथल-पुथल सिर्फ विजय बहुगुणा के इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आती हैं.

सूत्रों की मानें तो दिल्ली में बैठे आलाकमान से बहुगुणा को सीधा निर्देश मिल रहे हैं. शायद यही वजह है कि कांग्रेस के जो भी बड़े नेता बीजेपी का दामन थाम रहे हैं, उनकी ताजपोशी खुद बहुगुणा की अगुवाई में ही हो रही है. ये अलग बात है कि बहुगुणा इस तोड़फोड़ के लिए कांग्रेस सरकार की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री हरीश रावत को जिम्मेदार बता रहे हैं.

जिसने पहुंचाया मुख्यमंत्री पद पर, उसी से बगावत
अपने अलग अंदाज़ में रहने के लिए मशहूर विजय बहुगुणा को कांग्रेस आलाकमान ने उस समय उत्तराखंड की कमान सौंपी, जब हरीश रावत का सीएम बनना लगभग तय माना जा रहा था और शायद रावत और बहुगुणा के बीच आगे टकराव की यही वजह भी बनी.

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एक वक्त कांग्रेस आलाकमान के काफी नजदीक रहे बहुगुणा को 2013 की आपदा के बाद सीएम पद से हटना पड़ा था और फिर हरीश रावत ने उनकी जगह राज्य की बागडोर संभाली.

राज्य के पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री के बीच बढ़ती तल्खियों ने धीरे-धीरे इतना बड़ा रूप ले लिया कि बहुगुणा ने 2016 में राज्य के कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत सहित कई दूसरे नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस को अलविदा कहते हुए सरकार को अस्थिर कर दिया.

दिमाग के धनी विजय बहुगुणा अब अपना सारा जोर हरीश रावत को अकेला छोड़ने में लगा रहे हैं. खुद बहुगुणा की मानें, तो ये सिर्फ ट्रेलर है, पिक्चर तो अभी बाकी है.

बहुगुणा के बढ़ते कद से पुराने भाजपाइयों को चिंता?
विजय बहुगुणा के बीजेपी में आने से जहां आलाकमान के राजनीतिक अर्थ सधते दिखें तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व की चिंता उभर कर सामने आने लगी हैं. सूत्रों की मानें, तो जिस तरह से बागी कुनबे ने अपनी पकड़ और कद को बढ़ाया है, उससे बीजेपी के अंदर असंतोष की आग सुलगने लगी है. सालों से बीजेपी के झंडे की बुलंदी की कामना करने वाले कई ऐसे भाजपाई हैं, जो कहीं न कहीं खुद को ठगा सा महसूस करने लगे हैं. दबी जुबान में ही सही लेकिन अब अंदरखाने शिकवे और शिकायत आने लगी हैं. बीजेपी के कई नेता यह भी कहते सुने गए कि बीजेपी अब धीरे-धीरे बदलती जा रही है और अपने सच्चे सिपाहियों को ही पहचान नहीं रही है.

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बहरहाल यह मुद्दा भी बीजेपी का अंदरूनी है और इस मुद्दे पर गंभीर होते नेता और कार्यकर्ता भी बीजेपी के ही सिपाही हैं. ऐसे में आने वाला वक़्त ही बताएगा कि राज्य में कमल दोबारा खिल पाएगा या नहीं.

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