उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर 14 फरवरी को वोटिंग होनी है. इससे पहले किच्छा विधानसभा सीट सुर्खियों में आ गई है. उधम सिंह नगर जिले की किच्छा विधानसभा में दो दिग्गज नेता 15 साल बाद आमने-सामने हैं. यहां एक ओर भाजपा के सामने अपना किला बचाने की चुनौती है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पास इस सीट को जीतकर राजनीतिक गणित सुधारने का मौका है.
परिसीमन के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में किच्छा और रूद्रपुर को अलग-अलग विधानसभा बना दिया गया था. तब से लेकर अब तक किच्छा विधानसभा से भाजपा के सिम्बल पर राजेश शुक्ला जीत दर्ज करते हुए आ रहे हैं, जबकि रूद्रपुर विधानसभा से पूर्व मंत्री तिलक राज़ बहेड दो बार चुनाव हार चुके है. अब तिलक राज़ बहेड एक बार फिर जीत के लिए अपनी कर्म भूमि पर दोबारा चुनावी मैदान पर अपनी राजनीति की नैय्या को पार लगाने की प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि वह इस बार भारी मतों से विजय होंगे. किच्छा की जनता जानती है कि किच्छा का विकास कौन कर सकता है.
15 साल बाद दोबारा किच्छा की सरजमी पर लौट कर चुनाव लड़ रहे तिलक राज़ बहेड को अब किच्छा विधायक भी हल्के में ले रहे हैं. किच्छा विधायक राजेश शुक्ला उन्हें अपनी विधानसभा से थके और हारे बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब काफी कुछ बदल चुका है. जमीन कौन छोड़ता है, योद्धा कभी अपनी जमीन नही छोड़ता जो छोड़ता है, वो योद्धा और विजेता कभी नहीं बन सकता. उन्होंने आरोप लगाया है जिन लोगो ने किच्छा को पीछे धकेलने का काम किया है वो आज अपनी विधानसभा को छोड़ किच्छा से ही अपनी किस्मत आजमा रहे है.
मौजूदा विधायक ने पूर्व सीएम को हराया था
आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो साल 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में रूद्रपुर किच्छा विधानसभा चुनाव में तिलक राज़ बहेड को 21614 मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी सपा प्रत्याशी राजेश शुक्ला को 14576 मत मिले थे. 2007 में तिलक राज बहेड को 46800 मत मिले थे जबकि बीजेपी उम्मीदवार राजेश शुक्ला को 40568 मत मिले थे. वहीं, जबकि 2012 में भाजपा के राजेश शुक्ला को 33388 मत मिले, जबकि कांग्रेस के सरवरयार खान को 25162 मत मिले थे. 2017 के चुनाव में किच्छा विधायक राजेश शुक्ला ने पूर्व मुख्यमंत्री को चुनाव हराया था. विधायक राजेश शुक्ला को 40363 वोट मिले थे जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को 38236 मत मिले थे.
अब 15 साल बाद एक बार फिर राजनीति के दो तगड़े दिग्गज आमने-सामने खड़े हैं. ऐसे में क्या किच्छा की जनता इतिहास दोहराएगी या फिर भाजपा हैट्रिक लगाएगी, ये तो 10 मार्च को साफ हो जाएगा.