उत्तराखण्ड में चुनावी घमासान के बीच समीकरण लगातार बदल रहे हैं. पहले हरक का बीजेपी की कोर ग्रुप की बैठक में न पहुंच कर दिल्ली चले जाना और फिर पार्टी का अचानक उनको 6 साल के लिए निलंबित करना. माना जा रहा था हरक सिंह कांग्रेस में वापसी कर लेंगे पर इतने दिन बीत जाने के बाद भी न हरक की कांग्रेस में ज्वाइनिंग हो पाई और न बीजेपी ने उनसे कोई सम्पर्क किया. हरक फिलहाल मझधार में लटके हुए हैं. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और चार साल प्रदेश की सत्ता चलाने वाले त्रिवेंद्र रावत ने भी टिकटों के ऐलान से पहले चुनाव न लड़ने के ऐलान कर दिया है. इन दो घटनाओं ने भाजपा को अपनी रणनीति दोबारा बदलने पर मजबूर कर दिया है.
हरक का क्या होगा, क्या बन रहे समीकरण
हरक के बीजेपी से निष्काषन के बाद ये तो साफ लग रहा था कि अब हरक कांग्रेस में ही जाएंगे. लेकिन हरक जिस वजह से भाजपा से नाराज हुए थे वही कांग्रेस में उनकी इंट्री का रोड़ा बन गई. भाजपा कोर ग्रुप की बैठक से किनारा कर वे दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे. वे चाहते थे कि भाजपा उनकी सीट बदले और उनकी बहू को भी टिकट दे. वे दिल्ली में कांग्रेस के सम्पर्क में भी थे. लेकिन भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया.
कांग्रेस के कुछ नेता समर्थन तो कुछ विरोध में
कांग्रेस पार्टी का एक धड़ा उन्हें शामिल करने के पक्ष में है. नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदिया तक हरक को पार्टी में शामिल कराना चाहते हैं. ताकी गढ़वाल क्षेत्र में पार्टी मजबूत हो. हरक गढ़वाल की कई सीटों पर मजबूत पकड़ रखते हैं. लेकिन कांग्रेस के प्रदेश चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के विरोध के चलते कांग्रेस में उनकी एंट्री रुकी हुई है.
हरक को टिकट नहीं देगी कांग्रेस, बहू को मिलने की संभावना
विरोध की 2016 में हरीश रावत की सरकार गिरना है. उस घटना का सूत्रधार हरक सिंह को ही माना जाता है. हरीश रावत से लेकर अन्य कांग्रेस नेताओं के मन में यही टीस है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हरक की कांग्रेस में बिना शर्त ही एंट्री होगी. हालांकि सूत्र यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस हरक को टिकट नहीं देगी. लेकिन पर उनकी बहू अनुकृति गुसांई को लेन्सडॉउन विधानसभा से टिकट मिल सकता है.
त्रिवेंद्र रावत का चुनाव लड़ने से इनकार
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखा लिखकर चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर की. उन्होंने हाईकमान से आग्रह किया कि उन्हें चुनाव ना लड़ाया जाए. उन्होंने पत्र में लिखा कि वे राज्य में फिर से भाजपा की सरकार लाने के लिए काम करना चाहते हैं. त्रिवेंद्र वर्तमान में देहरादून की डोईवाला सीट से विधायक हैं. जानकारी ये मिल रही है कि त्रिवेंद्र का चुनाव न लड़ने के पीछे हाईकमान का ही निर्देश है. और जल्द हाईकमान त्रिवेंद्र को बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है. सूत्रों की माने तो त्रिवेंद्र को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सहित चुनाव संचालन का पूरा जिम्मा दिया जा सकता है.
इस तरह बदल सकते हैं 3 समीकरण
जैसे ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नड्डा को पत्र लिखा बीजेपी के तीन चेहरों पर मुस्कान नजर आई. बताया जा रहा है ऋषिकेश विधायक प्रेम चंद अग्रवाल, नरेंद्र नगर से सुबोध उनियाल और ओम गोपाल रावत तीनों उनके फैसले से खुश हैं. तीनों लंबे समय से जो चाहते थे कि उन्हें त्रिवेंद्र की चिट्ठी से वह मिल गया. तीनों का रास्त अब साफ हो गया है.
क्या हो सकता है अब बीजेपी का समीकरण
1. ऋषिकेश से बीजेपी विधायक और विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल अब डोईवाला सीट से लड़ सकते हैं. वे लंबे समय से ये चाहते थे. दरअसल, ऋषिकेश में उनके खिलाफ नाराजगी है. डोईवाला में बनिया वोट अच्छे खासे हैं. भाजपा उन्हें डोईवाला से लड़ा सकती है.
2. नरेंद्र नगर सीट से विधायक और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का भी उनके क्षेत्र में बहुत विरोध है. उनियाल ऋषिकेश से लड़ सकते हैं. ऋषिकेश में उन्हें टक्कर जरूर मिलेगी, लेकिन नरेंद्र नगर के मुकाबले चुनौती कम होगी. पार्टी उन्हें ऋषिकेश से लड़ा सकती है.
3. ओम गोपाल रावत लंबे समय से बीजेपी से टिकट की मांग कर रहे थे. मौजूदा विधायक और कैबिनेट मंत्री का टिकट काटकर पार्टी उन्हें टिकट नहीं दे पा रही थी. ओम गोपाल रावत नरेंद्र नगर से बहुत ज्यादा मजबूत प्रत्यासी माने जा रहे हैं. वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतरने जा रहे थे. आंकड़ों की माने तो वो जीत भी सकते थे. इसी का जर सुबोध उनियाल को भी था.